भारतीय युवाओं और किसानों के लिए कितना फायदेमंद होगा यह केन्द्रीय बजट?
1 फरवरी को भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केन्द्रीय बजट 2020-21 पेश किया जहाँ सरकार ने फिर से ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का वादा किया। बढ़ती हुई बेरोजगारी, लगातार कृषि क्षेत्र में पिछड़ने के बाद हम में से बहुत सारे लोगों ने बजट से उम्मीदें लगा रखी थीं। परन्तु बुन्देलखण्ड के लोगों को इस बजट से कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा।
वाराणसी जिले के घनश्याम कहते हैं, ‘ मैं नहीं जानता कि इसका क्या मतलब है। मुझे बजट से बहुत उम्मीदें थीं पर इसे सुन कर समझ नहीं आ रहा कि क्या इसमें मेरे जैसे लोगों के लिए भी कुछ है। इस बजट से आम लोगों को निराशा हुई है और लोगों का मोहभंग हुआ है। इसका एक कारण यह भी है कि कमजोर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बावजूद प्रमुख ग्रामीण योजनाओं को इस बजट से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला है। मनरेगा को पिछले वर्ष में 60,000 करोड़ के बजट की तुलना में इस वर्ष 61,500 करोड़ का बजट मिला है। पीएमएवाई-जी का बजट भी इस वर्ष पिछले साल की तरह , 10,000 करोड़ का ही है। इसी तरह आयुष्मान भारत और पीएमएवाई-जी में भी पिछले वर्ष से कोई बढ़त नहीं है।
बुन्देलखण्ड के महत्त्वपूर्ण इलाक़े में इन सभी योजनाओं के लिए उत्साह था वह लोग अब मायूस हैं। हमने अनेक इंटरव्यू लिए जिनमें स्थानीय लोगों ने बजट को हर वर्ष किया जाने वाला एक सैंवैधानिक अभ्यास बताया। बांदा जिले के दलित चेतना युवा संघ के राजेंद्र इस बात से ख़ुश हैं कि सरकार ने इस बार हाऊसिंग स्कीम, शिक्षा और फर्टीलाईज़र्स के लिए अलग से धन रखा है। ‘परन्तु यह सब तब ही ठीक है जब सरकारी तंत्र, सरकार के प्लान के मुताबिक मिल कर उस तरह कार्य करे जैसा बजट में बताया गया है। सिर्फ तब ही किसान और मजदूरों को कुछ हासिल होगा अन्यथा यह कागज़पूर्ति के लिए अच्छा है।
मनरेगा को इसमें मुख्य मुद्दा बनाते हैं। लगभग 26.4 करोड़ लोग इसके अंतर्गत काम करने योग्य थे परन्तु मनरेगा वेबसाईट एफवाई 20 के अनुसार सिर्फ 13.53 करोड़ लोगों ने ही सक्रिय रूप से भाग लिया। प्रधानमंत्री किसान योजना भी क्रियान्वयन की कमी का शिकार हुई। लगभग 9 करोड़ लोगों के खातों में सीधा पैसा पहुंच रहा था परन्तु केन्द्र के प्रति जवाबदेही में पहल करने वालों की कमी, फंड़ जारी करने में देर होना और भेजी गई रकम का अन्य कहीं पहुंचने की गड़बड़ भी रही। भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था पिछले पाँच दशकों की सर्वाधिक बेरोजगारी झेल रही है। पोलिसी के क्रियान्वयन का काम यदि ठीक से नहीं हुआ तो यह बहुत ख़राब हालात तक पहुंच जाएगा और ख़ासतौर पर यदि जिनकी मदद के लिए यह लाया गया है, उन तक ना पहुंचने से हालात ख़राब हो सकते हैं।
सरकार की 16 बिंदुओं वाली कार्ययोजना जो किसानों की आमदनी को 2022 तक दोगुना करने का दावा करती है, वह भी इसी तरह दिखाई दे रही है। 16 बिंदुओं वाली कार्ययोजना में रेलगाड़ी, हवाई जहाज और वे किसान जो पानी की किल्लत झेल रहे हैं, उनको भी शामिल कर रही है। एक्सपर्ट्स के अनुसार लगभग 10 प्रतिशत किसानों को ही इससे फायदा होगा। और तो और जिन मुद्दों को एक्शन प्लान में स्थान दिया गया है उन्हें पहले से ही किसी अन्य नाम से किसी अन्य टॉपिक में कवर किया जा चुका है। और ऐसा नहीं लगता कि ये स्कीम ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कुछ अंतर लाएंगी। कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ इसे ‘एक बार फिर से चूक गये मुद्दा’ कह रहे हैं। वाराणसी की सुमन सरकार के द्वारा दलितों और गरीबों के लिए की गई घोषणाओं को ‘दिखावटी प्रेम’ कहती है। ‘बहुत बड़े-बड़े बजट हैं पर जिन्हें उनका लाभ मिलना है, वे तो यह भी नहीं जानते कि वे इसको पाने के हकदार हैं। उन्हें यह जानना होगा कि इस तक कैसे पहुंचा जाए। वैसे जो भी है, यह बजट ही है। ज़मीनी हक़ीक़त में कुछ भी ट्रांसफर नहीं होगा।’
‘बजट किसी भी तरह से हमारे लिए अच्छा नहीं है। मिडिल क्लास को दिखावटी गाजर तो दी है परन्तु गरीबों की पूरी तरह अनदेखी हुई है। साफ लगता है कि बजट अमीर बिजनेस मैन, बड़े कारपोरेट्स और फाइनेंशियल सेक्टर के लिए बना है। इसकी जगह सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर ध्यान दिया होता तो हम आम लोगों के लिए जीवन जीना आसान हो जाता।’ वाराणसी के अमित कुमार ने कहा।
हम में से अधिकतर लोगों को सुकून देने वाले और आगामी वर्ष को सुखद बनाने वाले बजट का इंतजार था। माना कि यह बजट भारत को उन्नति और प्रगति के नए दशक में ले जाएगा समझौता के बावजूद एक लंबा रास्ता है जिसे सरकार को तय करना है। कृषि योजनाओं के सही कार्यान्वयन की कमी, बढ़ती बेरोजगारी और शिक्षा व्यवस्था में सुधार की संघर्ष पूर्ण स्थिति, स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बहुत सारे काम किए जाने हैं। ‘अब सरकार को वह करना चाहिए जो वह कहती है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि वास्तव में वह हो जाए जो कहा जा रहा है।’ राजेन्द्र ने कहा। हमारे बुंदेलखंड के लोगों के मन में इस समय आशा के साथ संदेह भी है।