जिला बांदा: जहां एक तरफ बुंदेलखंड में खनिज के कारण ओवरलोडिंग ट्रक और ट्रैक्टर से सड़कें ध्वस्त हो रही हैं। वहीं पोकलेन मशीनों से नदियों का अस्तित्व समाप्ति की ओर दिख रहा है। जल स्तर घट गया है और प्रदूषण बढ़ रहा है और इस चीज़ की लड़ाई यहां का किसान आए दिन बराबर लड़ता रहा है। लेकिन खनन के मामले में कोई सुधार नहीं हो रहा। अब वहीं दूसरी तरफ इस खनन बालू ढुलाई के मामले में रेलवे भी कूद पड़ा है। जिससे यहां के किसान और आम जनता चिंतित नजर आ रहे हैं।
लोगों का कहना है कि जिस तरह से नियम के विरुद्ध बालू का खनन हो रहा है और रात-दिन बड़ी बड़ी पोकलेन मशीनों से नदियों का सीना चीरा जा रहा है, बड़े बड़े माफिया ठेकेदारों को ठेके दिए जा रहे हैं, उससे यहां का अस्तित्व पूरी तरह खतरे में है। अगर ऐसा ही हाल रहा तो कुछ समय बाद बुंदेलखंड का पानी पूरी तरह खत्म हो जाएगा और यह रेगिस्तान बन जाएगा।
बड़े-बड़े लोग और नेता, मंत्री तो बिसलेरी का पानी पी लेंगे लेकिन गरीब लोग बिसलेरी का पानी कहां से पिएंगे। किसानों को सिंचाई के लिए पानी चाहिए होगा, तब क्या होगा? पहले भी ट्रकों और ट्रैक्टरों से बालू का खनन होता था पर जो सरकार ने अब ट्रेन भी शुरू कर दी है जिसे दिसंबर 2020 से शुरू किया गया है उससे तो और नुकसान होगा। पहली ही बार में एक मालगाड़ी में 27 रैक बालू गई है तो अगर एक बार में 27 रैक बालू जाएगी तो खनन कितना बढ़ जाएगा इसलिए वह चिंतित नजर आ रहे हैं। दूसरी तरफ उनका यह भी कहना है कि अगर बुंदेलखंड की खनिज संपदा जो बहुत ही फेमस है और उसके लिए ट्रेन चलाई गई है, अगर उस ट्रेन से होने वाली इनकम बुंदेलखंड में ही लगाई जाए तो यहां का विकास भी हो सकता है लेकिन ऐसा तो नहीं होगा, सारा पैसा सरकार बाहर ही ले जाएगी।