खत्री पहाड़ गिरवां कस्बा का क्षेत्र नदी और पहाड़ों से घिरा हुआ है। गिरवां मुख्य चौराहा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सीमा पर है। यहां से मध्यप्रदेश की ओर से आने वाले मौरंग के भरे ओवरलोड ट्रैक्टर, ट्रक और पहाड़ों में लगी क्रशरों से गिट्टी के ट्रक गुजरते हैं। इससे आए दिन जाम लगता है। गर्मी में यह जाम स्थानीय लोगों और दुकानदारों पर तो भारी पड़ता ही है, लेकिन आने जाने वाले लोगों को हमेशा इस जाम का सामना करना पड़ता है।
जब आप किसी काम के लिए सड़क पर जा रहे हो और जाम लग जाए तो कितना गुस्सा आता है न? छोटे से रास्ते को पार करने के लिए लम्बी वाहनों की कतार, आपको ट्रैफिक जाम में फंसा देती है। आपको लगता है आप वाहन से जल्दी पहुँच जाओगे तो ऐसा नहीं है क्योंकि आप यदि शहर में रह रहे हों या फिर ग्रामीण कस्बों में आपको जाम का सामना करना पड़ता ही होगा।
यूपी के बांदा जिले के खत्री पहाड़ गिरवां कस्बा के मुख्य चौराहे का हाल भी कुछ इसी तरह का है जहां अक्सर शाम 5 बजे के बाद जाम देखने को मिलता है। लोग घंटों इंतजार करते हैं रास्ता खुलने का, पर उन्हें अक्सर देर हो जाती है। यह छोटा क़स्बा है इसलिए यहां ट्रैफिक पुलिस भी मौजूद नहीं रहती इसलिए लोगों को इस जाम को रोजाना झेलना पड़ता है।
मौरंग के भरे ओवरलोड ट्रैक्टर, ट्रक जाम लगने का कारण
खत्री पहाड़ गिरवां कस्बा का क्षेत्र नदी और पहाड़ों से घिरा हुआ है। गिरवां मुख्य चौराहा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सीमा पर है। यहां से मध्यप्रदेश की ओर से आने वाले मौरंग के भरे ओवरलोड ट्रैक्टर, ट्रक और पहाड़ों में लगी क्रशरों से गिट्टी के ट्रक गुजरते हैं। इससे आए दिन जाम लगता है। गर्मी में यह जाम स्थानीय लोगों और दुकानदारों पर तो भारी पड़ता ही है, लेकिन आने जाने वाले लोगों को हमेशा इस जाम का सामना करना पड़ता है।
शाम होते ही मध्य प्रदेश की तरफ से आने वाले ओवरलोड ट्रकों की इतनी लम्बी कतार लगती है कि शाम पांच बजे का लगा जाम देर रात तक खुलता है। ये चौराहा एक तरह का तिगड़ा है और नहर के ऊपर बने पुल के पास से ही मोड़ की जगह है। कई बार तो जाम में फंसे लोग,जाम खुलवाने के लिए थाना में फोन लगाते रहते हैं,कई बार तो घंटों तक पुलिस भी नहीं पहुंचती। इसकी वजह से लोग समय रहते काम पर और घर वापस नहीं पहुंच पाते क्योंकि ये जाम पूरे दिन की समस्या है लेकिन शाम के टाइम तो बहुत ही ज्यादा है।
भागदौड़ भरी जिंदगी में सबसे बड़ी बाधा है जाम
नरैनी से बांदा जा रहे कर्मचारी दिनेश बताते हैं कि आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और ट्रैफिक जाम, सिर्फ बड़े शहरों के रोजमर्रा की जिंदगी की कहानी नहीं हैं। बांदा जिले जैसे छोटे शहरों और कस्बों में भी लंबे समय तक ट्रैफिक जाम में फंसे रहना पड़ता है ।
घंटों जाम की वजह से पड़ता है शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
जाम में फंसने पर ये न सिर्फ शारीरिक रूप से थकाऊ होता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। घंटों सड़क पर फंसे रहने से काम में हो रही देरी और बार-बार रुकने के कारण चिड़चिड़ापन, तनाव, और गुस्सा बढ़ने लगता है जिससे
शारीरिक असहजता महसूस होने लगती है। काम पर समय से न पहुंचने से दिल की धड़कन तेज हो जाती है, सांसें भारी होने लगती हैं, और ऐसा लगता है कि हमारा काम छूट जाएगा, कुछ गलत होने वाला है क्योकि उस स्थिति में आप कुछ कर नहीं पाते और तनाव धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।
जाम के कारण रोजगार में भी आती है बाधा
ऑटो चालक अशोक कहते हैं कि बड़े शहरों में जहां जाम की समस्या बहुत ज्यादा होती है, वहां के मुकाबले छोटे शहरों में ट्रैफिक जाम की समस्या भले ही कम होती है पर कुछ अलग ही रूप में सामने आती है। यहां की समस्या सिर्फ स्थानीय लोगों या दुकानदारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यात्रा करने वाले लोगों के लिए भी यह जाम परेशानी का कारण बन गया है। वह लोग आटो चला कर अपना परिवार चलाते हैं, नरैनी से बांदा के लिए पर सवारी 50 रुपए किराया है,लेकिन कई जाम के कारण सीधी रास्ता जल्दी न पहुंच पाने और सवारियों को समय से पहुंचे के कारण 10-10 किलोमीटर घुमा कर जाना पड़ता है। सवारी भी लड़ाई करने लगती है, जिससे उनके रोजगार पर भी बाधा आती है। इतना ही नहीं जाम के कारण चार चक्कर की जगह तीन चक्कर ही लगते हैं।
सिंगल पुल भी है जाम लगने की वजह
जाम में फंसे करतल के शिवदयाल का कहना है कि, “जाम का मुख्य कारण सिंगल पुल है। खासकर शाम के समय जब ये ट्रक अधिक संख्या में आते हैं, तो जाम देर रात तक खुलने का नाम नहीं लेता। पुलिस की ओर से भी उचित कदम नहीं उठाए जाते जिससे लोगों को घंटों तक जाम में फंसे रहना पड़ता है। मीटिंग में जाना है, लेकिन लगभग आधे घंटे से जाम में फंसे हैं वो भी सुबह का टाइम है तो उम्मीद है कि जल्दी खुल जाएगा। अगर शाम होती तो पुलिस आने के बाद भी जल्दी जाम नहीं खुलता लोगों दो-दो तीन-तीन घंटे फंसे रहते हैं।
इस समस्या का समाधान सड़क का चौड़ीकरण, ट्रकों के आवागमन को कम करने और पुलिस की बराबर निगरानी रखने से हो सकता है। इसके साथ ही ट्रक चालकों के लिए वर्किंग ऑवर्स और रूट प्लानिंग का सख्त पालन सुनिश्चित किया जाए तो इस तरह की समस्याओं में कमी आ सकती है, वरना जाम की समस्या खत्म कर पाना मुश्किल है।
जाम में फंसे होने से समय और ईंधन दोनों होते हैं बर्बाद
स्योढा से आये गोबिंदा कहते हैं कि, “ट्रैफिक जाम में फंसने से कई नुकसान होते हैं, क्योंकि इससे समय और ईंधन दोनों बर्बाद होता है। ट्रैफिक जाम में वाहन चलाना चालकों और यात्रियों दोनों के लिए परेशानी का कारण बन गया है। लेकिन क्या करें? सड़कों पर निकलना बंद नहीं कर सकते हैं।”
आगे वह बताते हैं कि, “अस्पताल जाना है और पहुंचना भी जल्दी है लेकिन वह तो जाम में फंसे हैं अगर जल्दी नहीं पहुंचा तो पर्चा भी नहीं कटेगा क्योंकि प्राइवेट में पर्चा कटने के भी कुछ टाइम होते हैं।
खबर लहरिया रिपोर्टर गीता ने बताया कि, नरैनी से बांदा आना-जाना मेरा अक्सर होता है। ऑफिस के लिए मैं सुबह कोशिश करती हूँ कि जल्द से जल्द घर से निकलूं और 10:00 ऑफिस पहुंच जाऊ, लेकिन कई बार समय रहते न आफिस पहुंच पाती हूं और न शाम को घर। जबकि घर जाने के लिए मैं ऑफिस से कई बार शाम को 5:00 ही निकल जाती है फिर भी घर पहुंचने में मुझे 8:00 बज जाता है क्योंकि दो से ढाई घंटे मुझे गिरवा चौराहे में जाम पर फसना ही फसना है।
]शाम के समय 1 दिन मैं देख रही थी कि शाम के समय एम्बुलेंस मरीज को लेकर आ रही थी और इतना जाम था कि कुछ कहने को नहीं। पुलिस लगी थी लोगों के वाहनों में डंडे मार रही थी इधर-उधर हटा रही थी फिर भी एंबुलेंस को निकालने में पुलिस को घंटे कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी।
इस तरह की स्थिति शाम के टाइम पैदा होती है। फिलहाल अब यह भी सुनने को मिल रहा है कि यह रोड फोर लाइन के लिए पास हो गई है और जल्द ही काम शुरू होने वाला है। अगर 4 लाइन बन जाएगी तो लोगों को जाम से कुछ राहत मिल जाएगी। अब देखते हैं कि इस समस्या का समाधान होता कब तक है?
रिपोर्ट – गीता देवी, लेखन – सुचित्रा
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