मज़दूर घर तो वापस आ रहे लेकिन साथ में कोरोना भी ला रहे.
अब शहरों से गांवों तक कोरोना वायरस का संकट बढ़ता ही जा रहा है क्योकि शहर से गांव को लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की न ठीक से जांच हो पा रही और न ही कवारेन्टीन। अगर बांदा जिले की बात की जाएं तो जितने भी केस कोरोना के पॉजिटिव पाए गए ज्यादातर प्रवासी मज़दूरों में ही मिले हैं। ऐसे में सरकार से सवाल करना तो बनता ही है कि जब देश में बहुत कम मामले थे तब लोकडाउन का ऐलान करके हवाई यात्रा, रेल यात्रा, सरकारी और निजी संसाधनों में रोक लग गई और अब जब मामले लाख को पार लार गये तब लोकडाउन खोल दिया गया। ऐसे बीमारी का भयंकर रूप देखने को मिल सकता है।
बहुत सारे मज़दूर मुसीबतों के पहाड़ को पार करके अपने दम पर पैदल या साधन से घर पहुंचे। शासन प्रशासन स्तर में उनके जांच और कवारेन्टीन में कई तरह की अव्यवस्था हैं। बहुत लोग घर में दो चार दिन बिताने के बाद जांच को गए और फिर उनको कवारेन्टीन किया गया। कुछ लोग अपनी मनमानी और नेतागिरी के चलते कुछ दिन वहां रहे फिर वापस आ गए। कई लोग तो चुपके से अपने घर में दुबक गए जांच कराने के डर से। इसका जिम्मेदार वह लोग खुद हैं जिन्होंने ऐसे किया जबकि उनकी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी बनती है अपनी जांच करना और कवारेन्टीन में रहना। उससे बड़ी जिम्मेदारी शासन प्रशासन स्तर की है कि ऐसी चूक कैसे हुई। ये अच्छी बात है कि ऐसे लोग बहुत कम इस महामारी के चपेट में आ पाए वरना अब तक में इसको संभाल पाना मुश्किल हो जाता इस संक्रमण की कड़ी तोड़ने में। एक कमी और कि कवारेन्टीन स्थलों में अव्यवस्था का अंबार। इससे बड़ी गलती शासन स्तर की कि प्रवासी मज़दूरों को वापस लाने में इतनी देर और इतने कमजोर निर्णय लेने की। जो मज़दूर आ गए हैं वह अब हॉट बाज़ार और जरूरी कामों के लिए घर से बाहर जाएंगे लोगों के संपर्क मे आएंगे। ऐसे में मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।