बुंदेलखंड क्षेत्र के कई जिलें आज भी विकास से बहुत दूर है। इन गाँवों में न तो विकास के पहुँचने का रास्ता है और न ही लोगों के निकलने का। आधे घंटे के रास्ते को लोग डेढ़ घंटे में पूरा करते हैं। नदी के बीच बसे इन गाँवों में सरकारी लाभ लोगों की पहुँच से बहुत दूर है।
भारत में सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश माना जाता है। अगर यहां होने वाले चुनाव की बात की जाए तो हर किसी की निगाहें उस पर बड़ी ही दिलचस्पी से टिकी रहती है। चुनाव के दौरान एक से बढ़कर एक लुभावने वादे किये जाते हैं। जनता इस विश्वास के साथ वोट देती है कि शायद अब उनके गाँव का भी विकास होगा। जब कुछ नहीं होता तो वह पांच साल के बीतने का इंतज़ार करती है। सोचती है कि शायद इस बार चुनाव में खड़ा प्रत्याशी उनके लिए काम करेगा।
ऐसा ही हाल बुंदेलखंड क्षेत्र के बाँदा जिले के नरैनी तहसील का है। यह तहसील सबसे पिछड़ा और पहाड़ी इलाके के नाम से जाना जाता है। वह इसलिए क्यूंकि इस जगह नदी के किनारे कई ऐसे गाँव बसे हैं। जहां से न तो निकलने का रास्ता है और न ही पहुंचना का। यहां के लोग दशकों से रास्ते के लिए परेशान है। हर बार चुनाव में खड़े नेता यहां के रास्तों के बारे में बातचीत करते हैं। लेकिन वह दिलासा देने के अलावा और कुछ नहीं करते। इस बार के पंचायती राज चुनाव में भी कई नेता इस मुद्दें को लेकर मैदान में उतरे हैं। इस बार लोगों की उम्मीद की तस्वीर पूरी होगी या फिर टूट जाएगी। यह भी देखा जाएगा।
अस्पताल और स्कूल जाने तक का नहीं है रास्ता
नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले जमवारा ग्राम पंचायत के मजरा केवटन पुरवा के रहने वाले लोग सालों से रास्ते की आस में है। यह लोग 40 सालों से पुरवा में रह रहे हैं। एक तरफ नदी है और दूसरी तरफ खेत। इन दोनों के बीच बसा हुआ है पुरवा गाँव। इस गाँव में चार पहिया गाड़ी का पहुंचना तो दूर, दो पहिये वाली मोटरसाइकिल, यहां तक की साइकिल भी मुश्किल से निकल पाती है। जिसकी वजह से यहां के लोग स्वास्थ्य, विकास आदि समस्याओं से जूझ रहे है।
जब किसी गर्भवती महिला की डिलीवरी होती है तो उसे गाँव से दो किलोमीटर दूर जमावरा तक खटिया पर उठा कर ले जाया जाता है। अगर किसी की तबयत खराब हो तो अस्पताल तक पहुँच पाना ही बहुत बड़ा काम होता है। जिसकी वजह से कई बार तो रास्ते में ही कई लोगों की मौत हो जाती है क्यूंकि उन्हें सही समय पर इलाज ही नहीं मिल पाता।
रास्ता न होने की वजह से बच्चे पढ़ाई-लिखाई के लिए स्कूल तक नहीं जा पाते। पैदल जा पाना तो मुश्किल है। ऊपर से कोई साधन भी नहीं है। बारिश के मौसम में तो जा पाना बिल्कुल भी संभव नहीं लगता। वहीं जब खेतों में जुताई-बुवाई हो जाती है तो निकलने का रास्ता ही नहीं निकल पाता।
लोगों ने बताई अपनी परेशानी
रास्ता न होने की वजह से गाँव वालों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जैसे:-
– रास्ता न होने से लड़के-लड़कियों की शादी नहीं हो पाती। जो रिश्ते आते हैं, वे देखकर वापस चले जाते हैं क्यूंकि गाँव के अंदर आने तक का रास्ता नहीं है।
– वह कहते हैं कि शादी के बाद उनकी बहु-बेटियों को गांव के अंदर तक चलकर आ पाना मुश्किल होता है। शादी होती है तो गाड़ियों का जमावड़ा लगा होता है।
– कोई सामान बाज़ार से लाना हो तो मोड़ धरकर लाना पड़ता है।
– इसके आलावा एक नदी का टीला रास्ता है पर उस रास्ते में बहुत ज़्यादा चढ़ाई है। रास्ते में चार जगह बैठते हैं तब जाकर घर पहुँचते हैं। वहां से भी रास्ता पैदल ही है।
योजना आने से भी नहीं मिली ख़ुशी
जब खबर लहरिया ने लोगों से उनकी परेशानियों को लेकर बात की। उनका कहना था कि उनके गाँव में भी प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कई लोगों के आवास आये हैं। लेकिन जितनी ख़ुशी उन्हें आवास आने में नहीं हुई। उससे ज़्यादा उन्हें आवास बनवाने में रोना पड़ा है। वह कहते हैं कि आवास बनवाने के लिए सीमेंट, बालू आदि चीज़ों को वह सर पर रखकर जमवारा तक लेकर आये हैं।
कचड़े के डब्बे की तरह पड़ी है एप्लीकेशन
लोगो ने बताया कि उन्होंने कई बार चुनाव का बहिष्कार भी किया। उसमें बहुत बार रास्ते को लेकर मुद्दा भी रखा ताकि उनके यहां भी रास्ते बन जाए। वह आगे कहते हैं कि कई फाइलें तहसील में पड़ी हुई है। डीएम, एसडीएम, सांसद विधायक, ग्राम प्रधान आदि लोगों को उन्होंने कई बार एप्लीकेशन भी दी है। जिसकी कोई गिनती नहीं है। लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। “उनकी फाइलें कुछ इस तरह दबा दी गयी मानों किसी कचड़े के डब्बे में बंद कर दी गयी हो।”
उनकी मांग है कि उनके गांव में भी रास्ता बने। उनके यहां भी विकास हो ताकि उनके बच्चों का भविष्य भी उज्ज्वल हो। उनके गाँव में सब पांचवी या आठवीं तक ही पढ़ पाते हैं। आगे जा ही नहीं पाते। किसी को आगे नौकरी भी नहीं मिल पाती क्यूंकि उनकी शिक्षा ही पूरी नहीं हो पाती।
रास्ता बनाने के लिए नहीं है सरकारी ज़मीन
मामले को लेकर खबर लहरिया ने निवर्तमान प्रधान रेखा के पति मनोज कुमार से भी बात की। मनोज का कहना था कि वह भी इस समस्या से परेशान है। उन्होंने रास्ता बनवाने के लिए कई बार सांसद विधायक को भी कहा। लेकिन उन्हें आश्वाशन के आलावा और कुछ नहीं मिला। वह यह भी बतातें हैं कि गाँव में ग्राम समाज की कोई भी ज़मीन नहीं है। जो ज़मीन है वह लोगों की है। इसलिए लोग अपने खेतों से रास्ता निकालने की मंज़ूरी नहीं देते।
ग्राम प्रधान के खाते में भी इतने पैसे नहीं कि वह किसानों से ज़मीन खरीद कर रास्ता बनवा सके। यही वजह है कि गाँव में रास्ता नहीं बन पा रहा है। लोग सालों से इस समस्या का सामना कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर प्रशासन या सरकार लोगों को मुआवज़ा देकर ज़मीन खरीद ले तो रास्ता बन सकता है।
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दो नदियों के बीच बसा गाँव, आने-जाने में देता है परेशानी
मजरा केवटन पुरवा की ही तरह नरैनी ब्लॉक का शाहपाटन गांव रंज और बागै नदी के बीच बसा हुआ है। इस गाँव की आबादी लगभग 4 हज़ार की है। लोगों का कहना है कि नदियों के बीच गांव होने की वजह से उनको आने-जाने में काफ़ी दिक्क्तें होती हैं। जब भी उन्हें कहीं जाना होता है तो वह 25 किलोमीटर नरैनी बाज़ार घूमकर जाते हैं। मजरा और गाँव के बीच नदी होने की वजह से भी लोगों को दिक्क़ते होती हैं। लोगों का कहना है कि गाँव में कोटा है और मजरे के लोगों को वहां गल्ला लेने जाने पड़ता है। नदी में हमेशा एक ही नाव चलती है।
कई बार की गयी रपटा बनवाने की मांग
लोगों से उनकी समस्याओं को लेकर और गहराई में बात की गयी। उनका कहना था कि बहुत मुश्किल से एक बार कुंइयां कगरे के पास रंज नदी में रपटा ( छोटे रास्ते के लिए बनाया गया पुल ) बना था। यह पुल मायावती की सरकार के समय बनवाया गया था। लेकिन घटिया सामग्री होने की वजह से जल्द ही टूट गया। इसके बाद अखिलेश सरकार ने क्षेत्र पंचायत से रपटा बनवाया था। जो बनते ही एक ही बारिश में टूट गया। इसमें में खराब सामग्री का इस्तेमाल किया गया था।
बीतें दस सालों में, लोगों द्वारा कई बार प्रशासन, विभाग, सांसद विधायक और क्षेत्र पंचायत से रपटा बनवाने की मांग की गयी। लोगों का कहना है कि जहां उन्हें गाँव से नरैनी पहुँचने में सात से आठ किलोमीटर की दूरी तय करके सिर्फ आधा घंटा लगना चाहिए। उन्हें वहां 25 से 30 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। जिसमें नरैनी पहुँचने में उन्हें डेढ़ घंटे लग जाते हैं।
लोगों का कहना है कि यूँ तो सरकार उन्हें गल्ला दे रही है। लेकिन उस तक पहुँचने का रास्ता ही नहीं है। अगर रास्ता होता तो वह अपने बच्चों को भेजकर भी गल्ला ले आते। लेकिन रास्ता ऐसा है कि डर बना रहता है कि कहीं उनका बच्चा नदी में न गिर जाये। इस बार के पंचायत चुनाव में गाँव में इसी मुद्दे को लेकर चुनाव भी लड़ा जा रहा है। लोगों का कहना है कि अगर प्रत्याशी काम के बाद चुनाव लड़ने के लिए आये तो ठीक है। नहीं तो लोग बहुत से वादे करते हैं और कुर्सी पर बैठने के बाद सब भूल जाते हैं।
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यह थे दो गाँवों के उदाहरण, जहां विकास का रास्ता तक नहीं बना है। इसके आलावा नरैनी ब्लॉक में और भी बहुत सारे गाँव है। जहां रहने वाले लोगों से खबर लहरिया ने बात की। यहां रहने वाले लोग भी अपने गाँवों में रास्ते की मांग कर रहे हैं। नरैनी ब्लॉक में एक पूर्वा है जो की कस्बे से बिलकुल सटा हुआ है। लेकिन वहां भी कोई रास्ता नहीं है। यहां पर एक महिला ने कुछ समय पहले खुद को आग लगा ली थी। लेकिन उसे सही उपचार नहीं मिल पाया। यहां तक की जब पुलिस को इस बारे में जानकारी दी गयी तो वह भी महिला को खटिया ( चार पैरों वाली बैठने की एक चीज़) पर उठाकर अस्पताल ले गयी। इतनी सारी समस्याएं होने के बावजूद भी आज तक स्थानीय अधिकारीयों द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। क्या इसे ही सरकार ग्रामीण विकास कहती है ? जहां न तो विकास पहुंचाने का रास्ता है और न ही लोग खुद विकास तक पहुँच पा रहे हैं।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए गीता देवी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।