खबर लहरिया Blog ‘डायन प्रथा’ के चलते किन महिलाओं को किया गया केंद्रित? कितनों की हुई हत्या? जानें सर्वे रिपोर्ट 

‘डायन प्रथा’ के चलते किन महिलाओं को किया गया केंद्रित? कितनों की हुई हत्या? जानें सर्वे रिपोर्ट 

सर्वे के अहम बिंदुओं के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि सर्वे में शामिल 83 फीसदी महिलाएं ऐसी थीं जो शादीशुदा थीं और इसके बावजूद भी उन्हें किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं दी गई। इस सर्वे ने समाज द्वारा कथित उस विचारधारा को भी तोड़ने का काम किया जो यह कहता है कि सिर्फ़ अकेली महिला जिसके पति की मृत्यु हो गई है, या जो अपने पति से अलग हो गई हैं या जो विधवा है; इन महिलाओं को ही डायन बताए जाने का खतरा सबसे ज़्यादा होता है।

The dark realities of Witch Hunting: Know what the survey report of Bihar says

          9 दिसंबर 2024 को नई दिल्ली के इंडियन विमेन प्रेस कॉर्प्स में निरंतर ट्रस्ट और बिहार महिला फेडरेशन द्वारा बिहार डायन अधिनियम 2000 को लेकर चर्चा का आयोजन किया गया था ( फोटो साभार – संध्या/खबर लहरिया)

“बिहार डायन निषेध अधिनियम 2000 के 25 साल: कितनी गई हैं मारी और कितनी हुई हैं बेघर” को लेकर 9 दिसंबर 2024 को नई दिल्ली के इंडियन विमेन प्रेस कॉर्प्स में निरंतर ट्रस्ट और बिहार महिला फेडरेशन द्वारा चर्चा का आयोजन किया गया। मिली जानकारी के अनुसार, प्रेस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य बिहार के 10 ज़िलों में किए गए सर्वेक्षण के महत्वपूर्ण नतीज़ों को सामने लाना था। 

यह सर्वे उन महिलाओं के अनुभवों को सामने लाने का काम करती है जिन्होंने डायन प्रथा की वजह से हिंसा का सामना किया है व करती आ रही हैं। 

इसका उद्देश्य सार्वजनिक मंचों पर इससे जुड़ी बहस को नए नज़रिये से रखना भी है ताकि जब भी इस मुद्दे पर बात हो तो वह सिर्फ सतह पर आकर ही न खत्म हो जाए। 

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डायन के रूप में पहचानें जाने का खतरा किन महिलाओं को है?

निरंतर संस्था द्वारा इस सर्वे का नेतृत्त्व करने वाली संतोष शर्मा जोकि जेंडर आधारित हिंसा पर सालों से काम कर रही हैं बताया, “फरवरी 2023 की शाम बिहार फेडरेशन की महिला नेताओं ने बताया कि करीब 20-30 लोगों की भीड़ ने बिहार के गया जिले के डुमरिया ब्लॉक में एक दलित महिला के घर पर हमला किया और डायन होने के शक में उसे जिंदा जला दिया। इस घटना ने फेडरेशन की महिलाओं को भीतर तक झकझोर दिया। इसके बाद दरभंगा, दानापुर, और मुजफ्फरपुर में भी ऐसी घटनाएं देखने को मिलीं। असल में इन मामलों को घरेलू हिंसा से अलग तरह की हिंसा के रूप में देखना बहुत ज़रूरी है।”

सर्वे के अहम बिंदुओं के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि सर्वे में शामिल 83 फीसदी महिलाएं ऐसी थीं जो शादीशुदा थीं और इसके बावजूद भी उन्हें किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं दी गई। इस सर्वे ने समाज द्वारा कथित उस विचारधारा को भी तोड़ने का काम किया जो यह कहता है कि सिर्फ़ अकेली महिला जिसके पति की मृत्यु हो गई है, या जो अपने पति से अलग हो गई हैं या जो विधवा है; इन महिलाओं को ही डायन बताए जाने का खतरा सबसे ज़्यादा होता है।

‘डायन’ बताने की शुरुआत कहां से होती है?

चर्चा को संचालित कर रहीं निरंतर संस्था की डायरेक्टर अर्चना द्विवेदी ने कहा, “डायन बताकर महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा, घर-परिवार या पड़ोस में शुरू हो सकती है और घरेलू झगड़ों या विवादों से जुड़ी हो सकती है, लेकिन इसका अंजाम एक सार्वजनिक हिंसा के रूप में होता है।” उन्होंने यह भी बताया कि इस सर्वे को तैयार करने और गांव-गांव जाकर इसे पूरा करने में बिहार फेडरेशन की महिला नेताओं की भूमिका सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण रही है।

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‘डायन प्रथा’ को लेकर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का क्या है कहना?

बिहार महिला फेडरेशन की सचिव एवं इस सर्वे को करने वाली सर्वेकर्ताओं में से एक लक्ष्मी साहू ने ज़मीनी स्तर पर सर्वे करने में किस तरह की जटिलताएं सामने आती हैं, इसके बारे में बताया। उन्होंने कहा कि “इस सर्वे को करना आसान नहीं था। कई बार महिलाएं अपनी आप-बीती सुनाते हुए रो पड़ती- जैसे उन्हें गांव की गलियों में नग्न घुमाया गया या ज़बरदस्ती उनके बाल मुंडवा दिए गए, या उन्हें मैला खिलाया गया। उनकी बातें सुनकर हम भी रो पड़ते थे। कई महिलाएं तो डर के मारे हमसे कुछ कहती ही नहीं थीं, क्योंकि उन्हें डर था कि उनकी बात गांव में फैल जाएगी।” लक्ष्मी, बिहार के बेतिया जिले में संघ की नेता है। 

चर्चा में असम की एक सामाजिक कार्यकर्ता मामोनी सैकिया भी शामिल थीं। मामोनी, पिछले 25 साल से ज़मीनी स्तर पर जेंडर आधारित हिंसा पर काम करती आ रही हैं। अपनी बात रखते हुए मामोनी ने कहा कि “काग़ज पर असम में डायन हिंसा एवं प्रताड़ना से जुड़ा कानून सबसे सख्त कानूनों में से एक है। बावजूद इसके एक एफआईआर दर्ज़ कराने में हमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है। पुलिस अक्सर हमसे पूछती है, ‘मैडम, यह बाकी तरह की हिंसा या घरेलू हिंसा से कैसे अलग है?’ सच यही है कि डायन कुप्रथा को रोकने के लिए कानूनी प्रावधान अलग हैं, लेकिन ज्यादातर अधिकारी और पुलिस इस कानून के बारे में जानते ही नहीं हैं।”

बातचीत में बिहार और झारखंड में डायन निषेध अधिनियम के बनने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अधिवक्ता अजय जायसवाल भी शामिल थे। झारखंड में आशा (ASHA) संस्था के संस्थापक अजय ने कहा कि डायन करार दिए जाने का डर महिलाओं में बहुत गहरे तक धंसा रहता है। उन्होंने कहा कि “झारखंड में हमें अक्सर ऐसी महिलाओं के फोन आते हैं जो रात में सो नहीं पाती, क्योंकि उन्हें डर होता है कि किसी भी वक्त उन्हें मार दिया जाएगा। कभी आपको इस लिए डायन बोला जा सकता है कि आप उस आदिवासी समुदाय से हैं जो पारंपरिक रूप से शराब बनाता है, तो इसलिए भी कह दिया जाता है कि आपके पड़ोस में किसी बच्चे की मृत्यु हो गई है। “

अजय ने यह भी कहा कि ओझा सबसे पहला व्यक्ति होता है जो किसी महिला को डायन करार देता है। 

चर्चा के समापन तक सबके सामने कई सवाल थे जिनके जवाब मिलकर ही ढूंढ़े जा सकते हैं। इसके साथ चर्चा में शामिल कई लोगों ने मुद्दे को लेकर अपने सुझाव भी रखें जिसमें कानून को और सख़्त बनाने से लेकर जवाबदेही पर ज़ोर दिया गया। 

 

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