अधिकारी एक तरफ कहते हैं कि सचिवालय होने से लोगों को अपने कामों को करने के लिए ब्लॉकों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे लेकिन यह देखा गया कि बने हुए सचिवालयों में कोई सुविधा नहीं है। वहीं कई सचिवालय खंडहर पड़े हैं जिसे देखने वाला भी कोई नहीं है।
जिला बांदा- उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कहा गया था कि गांव की सरकार सचिवालय में चलेगी और गांव के लोगों को सुविधा मिलेगी। इसी उद्देश्य के साथ हर ग्राम पंचायत में मिनी सचिवालय बनवाएं गए हैं। इन सचिवालयों में अकाउंटेंट और सहायक ऑपरेटर की नियुक्ति भी तय की गयी है। सचिवालय निर्माण का काम ज़ोरों से चल रहा है। इसके साथ ही भर्तियों के लिए भी फॉर्म भरे गए हैं जिससे गांव की सरकार गांव में ही चल सके। गांव के लोगों को किसी भी काम के लिए ब्लॉक के चक्कर न काटने पड़े।
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सचिवालय पड़ें हैं वीरान
वहीं अगर बने सचिवालयों को देखा जाए तो बहुत से सचिवालय निर्माण होने के बाद वीरान पड़े हुए हैं जबकि उनमें करोड़ों रुपए की लागत लगी है। उसके निर्माण में ज़मीन भी गई है। सचिवालय की बिल्डिंगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। आज भी गांव की जनता को अगर कोई भी काम करवाना हो तो उन्हें ब्लॉक के चक्कर काटने पड़ते हैं।
सोचा था नहीं लगाने पड़ेंगे चक्कर – ग्रामीण
आपको बता दें कि पहले प्रधानी से जुड़े कार्य प्रधान अपने घरों से ही करते थे। लोगों को सेक्रेटेरिएट से मिलने के लिए ब्लॉक के कई-कई चक्कर लगाने पड़ते थे। जब हर ग्राम पंचायत में मीनी सचिवालय बनने का आदेश हुआ और यह हुआ कि यहां काम करने के लिए एक अकाउंटेंट और सहायक ऑपरेटर की भर्ती होगी तो लोगों में खुशी का माहौल जगा।
लोगों को लगा की अब उन्हें ब्लॉकों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। वह लोग ब्लॉक स्तर के अपने सारे काम अपने ही गांव के सचिवालय में जाकर करवा सकेंगे। जब भी उन्हें सचिव से मिलने की ज़रुरत होगी तो उसके लिए भी वहीं जाकर वह मिल पाएंगे। इससे न केवल गांव में लोगों को सुविधा होगी बल्कि जो गांव में सचिवालय की बिल्डिंग बनी है उसका भी महत्त्व हो जाएगा।
इसके पहले भी बहुत से गांव में पंचायत भवन और सचिवालय की बिल्डिंग बनी थी। बिल्डिंग आज भी कायम है लेकिन खंडहर की तरह। यूं कहें कि सरकार के धन का उन बिल्डिंगों में बंदरबांट हुआ है। भले ही वह काफी समय की बनी हुई है लेकिन उस समय भी लागत कम नहीं लगी होगी। आज लोगों को उनकी की हुई उम्मीदों पर पानी फिरता नज़र आ रहा है।
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अधिकारी कर रहें पैसों का बंदरबाट – ग्राम पंचायत मूडी
नरैनी ब्लॉक के ग्राम पंचायत मूडी कि बात करें तो यहां ग्राम सचिवालय असहाय एवं वीरान पड़ा हुआ है। इसकी कोई देख-रेख करने और सुनने वाला नहीं है। राधेश्याम ने बताया कि इसमें बाहरी लोग ईंटा पाथने का काम करते हैं। ये लोग यहीं रहते हैं, यहीं खाना बनाते हैं।
ग्राम पंचायत मूडी का सचिवालय आज से लगभग 10 साल पहले बनवाया गया था जब उसकी कीमत लगभग 17 लाख थी। सचिवालय की देख-रेख न तो प्रधान करता है, न ग्राम पंचायत और न खंड विकास अधिकारी। अब यह बिल्डिंग धीरे-धीरे टूटती जा रही है। सचिवालय के सामने बने शौचालय भी खराब पड़े हुए हैं। सचिवालय की बाउंड्री भी टूट चुकी है। आखिर ग्राम पंचायत का पैसा अधिकारी कहाँ लगा रहे हैं? ऐसा आरोप है कि मूडी पंचायत का ग्राम पंचायत प्रधान, ग्राम रोजगार सेवक और ग्राम पंचायत अधिकारी तीनों मिलकर पैसे का बंदरबांट करते हैं और जनता को धोखा देते हैं।
लोगों का कहना है कि उनके गांव जैसी समस्या हर जगह देखने को मिलती है। लोग अपनी ग्राम पंचायत के बारे में कहते हैं कि अगर सरकार आम जनता के हित के लिए कोई कार्य करती है तो उसमें इस तरह का धंधागर्दी क्यों किया जाता है। अगर गाँव में सचिवालय चालू हो जाए और यहां पर जिन लोगों की नियुक्ति हुई है वह बैठने लगे और ग्राम विकास अधिकारी भी आने लगे तो लोगों की आधी से ज़्यादा समस्याएं दूर हो जाएंगी। जो उन्हें ब्लॉक के चक्कर काटने के दौरान होती है।
हज़ारों खर्च करके सचिवालय जाने पर भी नहीं मिलते सचिव
तिंदवारी ब्लॉक के पैलानी डेरा में भी सचिवालय बना हुआ है। वह भी अन्य सचिवालयों की तरह वीरान पड़ा हुआ है। न तो उसमें खिड़कियों का पता है और न ही दरवाजों का। लोगों से ज़्यादा यहां जानवर रहते हैं। जब हमने इस बारे में वहां के लोगों से बात की तो लोगों ने बताया कि यह सचिवालय पिछले पंचवर्षीय में बना था। यह कहा गया था कि यहां पर लोगों को सुविधाएं होंगी। उनको ब्लॉक नहीं जाना पड़ेगा। सुविधा देना तो दूर की बात है यहां बिल्डिंग को ही देखने वाला कोई नहीं है।
लोगों का कहना है कि उनके यहां से ब्लॉक लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है। अगर किसी को किसी काम के लिए जाना हो तो एक बार में सौ से डेढ़ सौ रुपए खर्च होता है। जाओ तो एक बार में काम भी नहीं होता क्योंकि सचिव जल्दी मिलते नहीं हैं। उनका कोई ठिकाना नहीं रहता कि वह कब मिलते हैं और कब नहीं। जब लोग फोन भी करते हैं तो भी वह कुछ साफ़ तौर पर नहीं बताते। इसी वजह से उन्हें एक काम के लिए कई-कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसमें हजारों की तादाद में रुपया भी खर्च होता है। गरीब लोग एक-एक रुपए जोड़ते हैं। काम की मजबूरी है इसी वजह से उन्हें पेट काटकर पैसे खर्च करने पड़ते हैं। वह चाहते हैं कि जिस तरह से सरकार ने सुविधा के लिए यह सचिवालय बनवाए थे ताकि लोगों को ब्लॉक न जाना पड़े। अगर यहां पर उसी तरह से सुविधा हो जाए तो उनके लिए बहुत ही अच्छा होगा।
सचिवालय हैं पूरे, दी जा रहीं हैं सुविधाएँ – नरैनी के बीडीओ
इस मामले को लेकर खबर लहरिया ने नरैनी के बीडीओ मनोज सिंह से बात की थी। हमने पूछा कि सचिवालय की बिल्डिंग बनी है और जिस तरह का आदेश है क्या उस तरह से सब चीज़ों का पालन हो पा रहा है? क्योंकि कई जगहों पर हमने देखा है कि बिल्डिंग वीरान पड़ी हुई है। सचिवालय का निर्माण लोगों की सुविधा के लिए किया गया था तो क्या नियुक्त किये हुए लोग काम कर रहे हैं?
जवाब देते हुए बीडीओ मनोज सिंह ने कहा कि कई ग्राम पंचायतों में सचिव और प्रधान बैठते हैं। वहीं जिन लोगों की नियुक्ति की जानी है उसका भी काम चालू है। जो भी सचिवालय पूरे हो गए हैं वह खुल रहे हैं। लोगों का काम भी हो रहा है। वहां पर सुविधाएं भी हो रही है। जिले स्तर से अधिकारियों ने निरीक्षण भी किया है। जिस भी सचिवालय में कमी पाई गई है वह नहीं खुले हैं। उसके लिए कार्यवाही भी की गई है। इन सबके बाद भी यहां यह सवाल उठता है कि अभी भी बहुत से सचिवालय वीरान पड़े हुए हैं तो आखिर किस तरह की कार्यवाही हो रही है और किस तरह का काम हो रहा है? यह सवाल अधिकारी खुद ही खुद पर खड़े कर रहे हैं जिसका उदाहरण मुडी ग्राम पंचायत के सचिवालय की तस्वीरें हैं।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
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