क्रिमिनल जस्टिस एंड पुलिस अकाउंटेबिलिटी प्रोजेक्ट ने मध्य प्रदेश के आबकारी कानून से संबंधित पुलिसिंग पर एक वीडियो ज़ारी किया है। यह वीडियो मध्य प्रदेश के आबकारी अधिनियम और 2021 में उसमे लाए गए संशोधन के बारे में है।
मध्य प्रदेश का आबकारी अधिनियम ब्रिटिशों द्वारा भारत पर किये गए शासन काल के समय को दर्शाता है। यह नियम शराब के आयात, निर्यात, निर्माण और बिक्री को नियंत्रित करता है। प्रमाणित सार्वजनिक एकाउंटेंट (सी.पी.ए.) ने हाल ही में अपने एक शोध ‘ड्रंक ऑन पावर – अ स्टडी ओफ़ इक्साइज़ पुलिसिंग इन मध्य प्रदेश’ में स्वतंत्र समुदायों पर इस अधिनियम से होते हुए प्रभावों का अध्ययन किया। यह समुदाय अपनी संस्कृति के अनुसार महुए (एक तरह का फल) का शराब बनाते हैं।
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शराब नियंत्रण पर जब हमने इस बारे में पुलिस से चर्चा की तो हमें पता चला, यह अधिनियम सिर्फ शराब नियंत्रण के लिए सख़्त कानून बनाने तक ही सीमित है। जबकि हक़ीक़त यह है कि इस अधिनियम के द्वारा रोज़ाना ही आदिवासी, दलित, बहुजन और आज़ाद समुदायों को निशाना बनाया जाता है। उन्हें कम मात्रा में शराब रखने के लिए गिरफ़्तार कर लिया जाता है। जब साल 2021 ने नया संसोधन आया तो इन समुदायों और जातियों के ख़िलाफ़ नए नियम को गलत तरह से इस्तेमाल करने का खतरा और भी ज़्यादा बढ़ गया।
यह वीडियो आबकारी अधिनियम कानून के इतिहास और लोगों की बनी हुई धारणा से बिलकुल अलग चीज़ों को सामने रखती है जिसमें अधिनियम का गलत तरह से उपयोग किया गया है। साथ ही इस वीडियो में यह भी दिखाया गया है कि देश के दूसरे हिस्सों की तरह किस तरीके से पुलिस तंत्र ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ काम करता है।
वीडियो को ठाकुर फाउंडेशन फ़ेलोज़ के समर्थन से सी.पी.ए. प्रोजेक्ट द्वारा लिखा और निर्मित किया गया है। इसकी व्याख्या हर्ष किंगर द्वारा की गयी है। इसे संपादित करने का काम दिशांत बटूले व यशराज वडालकर ने किया है।
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