मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत गर्भावस्था के 24 सप्ताह के समय में नियमों के अनुसार महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिया गया है। यह अधिकार उन महिआलों के लिए लाभकारी होगा जिन्हें मज़बूरन गर्भधारण करना पड़ता है।
सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार है, चाहें वह विवाहित हो या अविवाहित। महिलाओं के हक़ में यह फैसला 29 सितंबर, वीरवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाया गया। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि क्योंकि महिला विवाहित नहीं है तो इससे उसके अधिकारों को वंचित नहीं किया जा सकता। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का खुशी से स्वागत किया गया।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत गर्भावस्था के 24 सप्ताह के समय में नियमों के अनुसार महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिया गया है। यह अधिकार उन महिआलों के लिए लाभकारी होगा जिन्हें मज़बूरन गर्भधारण करना पड़ता है।
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2021 के संशोधित गर्भपात कानून पर आया कोर्ट का फैसला
बीबीसी की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, अदालत का फैसला 2021 के संशोधित गर्भपात कानून पर स्पष्टता की मांग करने वाली याचिका पर आया जिसमें कई समूहों को सूचीबद्ध किया गया था लेकिन इसमें सिंगल (एकल) महिलाएं शामिल नहीं थी।
आगे कहा कि सहमति से बनाये हुए संबंध के मामलों में महिलाओं को इस अधिकार से बाहर रखना “असंवैधानिक” होगा।
अल जज़ीरा की प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि गुरुवार का फैसला एक 25 वर्षीय महिला की याचिका के जवाब में आया था जिसमें कहा गया था कि उसकी गर्भावस्था सहमति से हुई थी, लेकिन असफल होने पर उसने गर्भपात की मांग की थी।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट
पिछले साल सरकार ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (Medical Termination of Pregnancy Act) में संसोधन करते हुए सभी श्रेणियों की महिलाओं को 20 से 24 सप्ताह के अंदर गर्भपात करने की अनुमति दी थी।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की बेंच ने एक अविवाहित गर्भवती महिला की याचिका पर फैसला सुनाया, जो सहमति से संबंध में थी और क्योंकि वह गर्भपात के अधिकार के अनुसार 20 सप्ताह की सीमा पार कर चुकी थी तो उसे गर्भपात के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। इस मामले में अदालत ने यह स्पष्ट किया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रावधानों की व्याख्या 20 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था के बाद एकल महिलाओं के अधिकार से इंकार करने के लिए नहीं की जा सकती है।
भारत में गर्भपात का कानून 1971 से है लेकिन पिछले कई सालों में अधिकारियों द्वारा इन नियमों को कन्या भ्रूण गर्भपात को देखते हुए काफ़ी सख्त कर दिए गए हैं कि कौन गर्भपात करवा सकता है। पारम्परिक तौर पर भारत में बेटियों की तुलना में लड़कों को प्राथमिकता दी गयी है, बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया।
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आर्टिकल 21 के बारे में जानें
उच्च अदालत ने कहा कि पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न को एमटीपी कानून के तहत “वैवाहिक बलात्कार” के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। भारतीय कानून वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं मानता, हालांकि इसे बदलने के प्रयास किए जा रहे हैं।
संविधान के अनुच्छेद 21 को बताते हुए अदालत ने कहा “यदि किसी महिला का मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य दांव पर है तो वह उसे गर्भावस्था को समाप्त करने का अधिकार देता है और उसकी रक्षा करता है। एकल रूप से महिलाओं का ही अपने शरीर पर पूरी तरह से अधिकार है और इस सवाल पर आखिरी फैसला लेने वाली भी वही है कि वह गर्भपात कराना चाहती है। महिलाओं को न सिर्फ उनके शरीर बल्कि उनके उनके जीवन पर से भी स्वायत्तता से वंचित करना उनकी गरिमा का अपमान है।”
बेंच ने यह भी कहा कि बलात्कार की परिभाषा में एमटीपी अधिनियम के उद्देश्य के लिए वैवाहिक बलात्कार भी शामिल होना चाहिए। अगर इसे किसी अन्य व्याख्या से समझा जाएगा तो यह महिला को अपने साथी के साथ बच्चे को जन्म देने और उसे पालने के लिए मज़बूर करेगा जो उसे मानसिक और शारीरिक नुकसान पहुंचाता है।
आगे कहा, “1971 का अधिनियम काफी हद तक ‘विवाहित महिलाओं’ से संबंधित था। गौरतलब यह है कि 2021 का स्टेटमेंट ऑफ ऑब्जेक्ट्स एंड रीज़न विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच अंतर नहीं करता है। बल्कि, सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात के लाभ की हकदार हैं।”
सुप्रीम कोर्ट की वकील ने फैसले को बताया ऐतिहासिक
जेंडर लॉ (लिंग कानून) में विशेषज्ञता रखने वाली सुप्रीम कोर्ट की वकील करुणा नंदी ने अदालत के फैसले को ऐतिहासिक फैसला बताया।
“एक ऐसी दुनिया में जहां अमेरिका पीछे की ओर बढ़ रहा है और महिलाओं के अपने शरीर के अधिकार को पहचानने में विफल हो रहा है, यह निर्णय शरीर की प्राइवसी व विवाहित और अविवाहित, तलाकशुदा महिलाओं के बीच गैर-भेदभाव पर आधारित है। यह इन सभी अधिकारों को संवैधानिक और सकारात्मक शब्दों में मान्यता देता है,” नंदी ने अल जज़ीरा को बताया।
गर्भपात को अपराध घोषित करने से गर्भपात नहीं रुकता
उच्च अदालत के आये फैसले पर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ट्वीट करते हुए लिखा, “गर्भपात को अपराध घोषित करने से गर्भपात नहीं रुकता, यह गर्भपात को कम सुरक्षित बनाता है।”
Criminalising abortion does not stop abortions, it just makes abortion less safe.
— Amnesty International (@amnesty) September 28, 2022
बता दें, एमनेस्टी इंटरनेशनल एक ग़ैर सरकारी संगठन ( NGO ) के रूप में एक वैश्विक संस्था है। जो प्रमुख रुप से मानवाधिकारों के लिए कार्य करती है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिलाओं को उनके अधिकारों से और करीब लेकर आता है। हालांकि, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में अभी भी महिलाओं के अधिकारों को देखते हुए काफ़ी संसोधन होना बाकी है जिसमें मैरिटल रेप शामिल है जिसे रेप की परिभाषा में जल्द ही शामिल करने की बात कही गयी है।
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