बुंदेलखंड का नाम सुनते ही आपके जेहन में यहाँ की गरीबी, किसानों की तंगहाली और सूखे की तस्वीर बन जाती होगी। उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड सबसे पिछडा और किसानों की समस्याओं से घिरा इलाका माना जाता है| लेकिन दुसरी ओर बुन्देलखण्ड के बांदा जिले का धान विदेशो तक फेमस है|
1904 के बाद जब केन कनाल निकला तबसे इस जनपद में धान की पैदावार बढ़ गई|
यहाँ के किसानों का कहना है कि बांदा जिले में धान की पैदावार के लिए यहाँ का पानी और मिट्टी बहुत ही उपयोगी है कई अलग अलग तरह के धान यहाँ पैदा होते है | अतर्रा कस्बे को धान का कटोरे के नाम से जाना जाता था ,यहाँ पैदा किया गया बहुत ही सुगन्धित होता है जिसमे से प्रसिद्ध है महा चिन्नावर और परसन बादशाह नाम का चावल बहुत ही फेमस हैं |
लेकिन अब जब से किसान यूरिया खाद का इस्तेमाल करने लगे है तो वो खुशबू नहीं रह गए जो गोबर की खाद डालने में जो धान की पैदावार होती थी लेकिन नाम तो अभी भी चल रहा है और लोग खरीद ही हे हैं |धान उगाने से लेकर चावल पकाने तक का सफर महिलाओं के साथ
साथ ही चावल निकालने वाली मिलें भी जिससे किसान ज्यादा तर धान पैदा करता है और यह एरिया धान कटोरी के नाम से जाना जाता है| किसान ये भी बताते है कि एक समय यहाँ से एक माल गाडी रोज लद के चावल विदेशो में जाता था और ट्रक लिए तो व्यापारी किसानों के घरो में पड़े ही रहते थे
आस पास के लोगो की तो लाइन ही लगी रहती थी| क्योंकि यहाँ के चावल जैसी खुशबू और मिठास कही के चावल में नहीं है क्योंकि इस चावल को ज्यादा तर देशी खाद से ही उगाया जाता है और जगह का फर्क होता है| लेकिन बुंदेलखंड की ज़मीन पर यहाँ के किसानो की महनत से तैयार धान की खुशबू बुंदेलखंड ही नही बल्कि बहुत दूर दूर विदेशो तक उड़ती है |