कोरोना संकट के कारण स्कूल बंद, देखिए गाँवों में क्या है ऑनलाइन पढाई का हाल? लॉकडाउन और कोरोनो महामारी बीमारी के चलते मार्च 2020 से पूरे देश मे चारों तरफ अफरा तफरी सी मच गई है। इस बीमारी को लेकर सरकार ने सारे स्कूल कॉलेज और ट्रैवल जैसी सुविधाएं बंद कर थी। जिससे इस बीमारी से बचा जा सके। उत्तर प्रदेश सरकार ने 15 अप्रैल से सभी प्राइमरी, जूनियर स्कूलों में और कॉलेज में ऑनलाइन पढ़ाई करवाने के आदेश दिए है। जिससे बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो। टीचर व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए बच्चों को पढ़ाएंगे। पर यह सुविधा गिने-चुने बच्चों तक ही पहुंच पाई है। वह भी इस पढ़ाई के लिए अगर हम ये कहें कि खानापूर्ति की गई है तो कहना गलत नहीं होगा। क्योंकि जब हमने इस रिपोर्टिंग के लिए गांव के बच्चे थे बात की तो हमें जानकारी जीरो प्राप्त हुई। यह लाभ उसी बच्चे को मिल पाया है जो उच्च वर्ग और थोड़ी संपन्न घर से है।
गहरा गाँव के पंकज ने बताया कि वह कक्षा 7 का छात्र है। मेरे मम्मी पापा मजदूरी का काम करते है। मैं घर में सबसे बड़ा हूं, हमारे घर में किसी के पास टच का मोबाइल नहीं है । जब से यह लॉकडाउन हुआ तब से स्कूल बंद है, हम कोई भी पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं।जो भी है वही पुरानी किताबें घर में थोड़ी बहुत पढ़ते हैं, हमें इस ऑनलाइन पढ़ाई के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
बरबई गाँव रजनी ने बताया कि मेरी उम्र लगभग 12 साल है। मैं कक्षा 9 में पढ़ती हूं, मैंने सोचा था कि पढ़ लिख कर पुलिस की नौकरी करूँगी, गरीब होने के कारण अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ पाये, हम लोग सरकारी स्कूल में पढ़े हैं, एक तो समय से स्कूल में टीचर नहीं आते हैं, थोड़ी बहुत अगर आते भी हैं तो पढ़ाई भी अच्छे थे नहीं होती है। अगर हम टीचर से कुछ पूछते हैं तो वह चिल्लाकर बात करते हैं। कहते हैं जितना कहा जाए उतना ही पढ़ो। अब इस लॉकडॉउन और करोना की वजह से वह भी पढ़ाई बंद पड़ी है। अभी एक आदेश आया था जिसमे ऑनलाइन पढ़ाई के लिए कहा गया था। पर हमारे पास तो कोई मोबाइल ही नही है। भाई के पास है तो वो कभी देते नही है। जिससे हम पढ़ाई कर सके। हमारी तो ये ढाई महीने की पढ़ाई चौपट हो गई।
रामबाबू ने बताया कि मैंअखण्ड इन्टर कॉलेज कबरई में कक्षा 11 में पढ़ता हूं। मेरे पास मोबाइल तो है पर डेटा नही है। जिससे मैं नेट चला सकूं। लॉक डाउन के पहले घर वालो के साथ हम भी थोड़ी बहुत मजदूरी कर लेते थे। जिससे नेट पैक डलवा लेते थे। पर अब तो सब कुछ बन्द ही है। न मजदूरी करने जाते है, न नेट चलाते है। जिससे पढ़ाई भी नही होती है। घर मे खाने पीने के लाले पड़े है। नेट पैक कौन डलवा रहा है।
गहरा गाँव के रामस्वरूप बताते है कि ये सब बातें बयानबाजी में ठीक लगते है। हमारे गांव में करीब सौ से ऊपर बच्चे है जो पढ़ाई करते थे। अगर गाँव का सर्वे किया जाए तो सबसे कम मोबाइल आपको मिलेंगे। क्योंकि यहाँ पर ज्यादातर लोग मजदूर वर्ग के रहते है। लॉक डाउन भर लोगो को खाने और पहनने की चीजें तो मिल नही पाई, रिचार्ज कहा से मिलेगा। हमारे घर के खुद 3 बच्चे है जो पढ़ते है, पर इस लॉकडाउन में कोई पढ़ाई नही हुई है। न ही कभी कोई टीचर का फोन आया है, पढ़ाई के मामले में। अब वो किसको पढ़ा रहे है हमें जानकारी नही है।
गहरा गाँव के प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य रामगोपाल बताते है की हम मोबाइल में व्हाट्सएप ग्रुप बनाये है। जिसमे बच्चे तो कम पर उनके माता पिता के नंबर जुड़े है। बच्चे माता पिता के मोबाइल से पढ़ते है। हम उन्हें सवाल या प्रश्न बोल देते है। जिसका उत्तर वो लोग अपने कॉपी में लिखते है और उसी ग्रुप में भेजते है। हा ये बात सही है कि सारे बच्चे नही इससे पढ़ पा रहे है। क्योंकि बड़ा मोबाइल हर किसी के पास नही है। अगर है भी तो रिचार्ज नही है या नेटवर्क प्रोबलम है। पर हम लोग भी क्या कर सकते हैं। हम तो पूरी कोशिश कर रहे हैं कि इस लॉकडाउन में जितना हो उतनी शिक्षा दे सके।
अगर हम महोबा बाँदा या चित्रकूट जिले की बात करें तो इन जिलों के कई हज़ार ऐसे गांव आज भी है जहां पर बिजली और नेटवर्क की प्रॉब्लम है। जिससे लोग तो अंधेरे में रहते ही है पर बच्चों का भविष्य भी अंधकार में डूब रहा है। लोगो के मोबाइल चार्ज नही होते। अगर हम शिक्षा की बात करें तो शिक्षा न के बराबर होती है। तभी तो आज हर जगह लोग प्राइवेट स्कूलों में बच्चों का एडमिशन लेने को मजबूर हो रहे है। क्योंकि स्कूलों में टीचर ही पूरे नही है। कई ऐसे स्कूल है जहां पर एक या दो ही टीचर है। जिसमे एक टीचर पूरी साल मीटिंग और बाकी के काम संभालने में लगा रहता है। और एक टीचर पूरा स्कूल संभालता है। जब स्कूल के टाइम टीचर बच्चों को नही पढ़ा पाते तो इस लॉकडाउन में कैसे बच्चों की पढ़ाई पूरी हो सकती है। इस पढ़ाई से हमारे आने वाली पीढ़ी पर एक खतरा मंडराता नजर आ रहा है। क्योंकि शिक्षा की कमी का जो अभाव दिख रहा है वह छोटी और मजदूर वर्ग के बच्चों पर ज्यादा दिखाई दे रहा है। सरकार को बयानबाजी और नियम कानून बनाने से पहले छोटे मजदूर तपके के लोगो के बारे में सोचना चाहिए। जिससे लोगो को उस सुविधा का लाभ मिल सके।
-सुनीता प्रजापति, सीनियर रिपोर्टर