सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि केंद्र ने राज्यों से मामले पर अपनी राय देने को कहा है। उन्होंने कहा कि उन्होंने सभी मुख्य सचिवों को पत्र लिखा है कि क्योंकि विवाह समवर्ती सूची में है, इसलिए सुनवाई चल रही है।
शादी को लेकर भी हमारे देश में कई कानून बनाये गए हैं जिसके तहत किसी भी व्यक्ति की शादी को कानून मान्यता प्रदान की जाती है। इस समय समलैंगिक विवाह को कानून मंज़ूरी दिलाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। आज सुनवाई का दूसरा दिन है। सुनवाई में बार-बार स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की बात की जा रही है व समलैंगिक विवाह को मंज़ूरी दिलाने के लिए तर्क-वितर्क भी लगे हुए हैं।
बुधवार को अदालत में सुनवाई शुरू होने से पहले सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि केंद्र ने राज्यों से मामले पर अपनी राय देने को कहा है। उन्होंने कहा कि उन्होंने सभी मुख्य सचिवों को पत्र लिखा है कि क्योंकि विवाह समवर्ती सूची में है, इसलिए सुनवाई चल रही है।
समलैंगिक विवाह पर आज शुरू हुई बहस में याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी (Senior Advocate Mukul Rohatgi) कहते हैं, “मैं वास्तव में शादी की घोषणा के लिए जो अनुरोध कर रहा हूं, वह वास्तव में इसका एक उदाहरण है कि जब मैं अपने साथी के साथ एक सार्वजनिक स्थान पर चलता हूं, यह जानते हुए कि राज्य में कानून इस बंधन को विवाह के रूप में मान्यता देता है, कोई भी मेरे खिलाफ उंगली नहीं उठाएगा।”
मंगलवार, 18 अप्रैल को हुई सुनवाई में सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी (Senior Advocate Mukul Rohatgi) ने तर्क देते हुए कहा था कि लोकप्रिय स्वीकृति के लिए परीक्षण एक समुदाय के मौलिक अधिकारों को अस्वीकार करने के लिए काफी नहीं है। “उस स्टिग्मा का क्या जो चल रहा है? यह सिर्फ संवैधानिक घोषणा द्वारा ही हटाया जा सकता है।”
आगे कहा, “यौन अभिमुखता के आधार पर भेदभाव किसी व्यक्ति की गरिमा और खुद के मूल्य को लिए अपमानजनक है।”
बता दें, यौन अभिमुखता यानि sexual orientation भावनात्मक, रोमांटिक या यौन आकर्षण है जो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति महसूस करता है। यह लैंगिक पहचान से अलग होता है।
सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने यह भी कहा, “मानव की यौनिकता को एक “कार्य” के रूप में, “प्रजनन के साधन” के रूप में संकीर्ण रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “लैंगिकता को एक मौलिक अनुभव के रूप में समझा जाना चाहिए जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन के अर्थ को परिभाषित करते हैं।”
पहले दिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह व्यक्तिगत कानूनों के क्षेत्र से दूर रहेगा लेकिन वह केवल यह जांच करेगा कि क्या विशेष विवाह अधिनियम के तहत अधिकार प्रदान किया जा सकता है (The Special Marriage Act (SMA)), 1954।
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जानें क्या है विशेष विवाह अधिनियम 1954 / Special Marriage Act 1954
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सभी विवाह संबंधित व्यक्तिगत कानून हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954, या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत पंजीकृत किए जा सकते हैं। न्यायपालिक का यह कर्तव्य होता है कि वह सुनिश्चित करे कि पति व पत्नी के अधिकार सुरक्षित हो।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत की संसद का अधिनियम है जिसमें भारत के लोगों के लिए नागरिक विवाह और विदेशों में रह रहे सभी भारतीय लोगों के लिए प्रावधान है, चाहें वह किसी भी पक्ष द्वारा धर्म या आस्था का पालन करते हो।
विशेष विवाह अधिनियम
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954) दो अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों को शादी के बंधन में बंधने की इज़ाज़त देता है। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 विवाह के अनुष्ठान (धूमधाम से मनाना) और पंजीकरण दोनों के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है, जहां पति या पत्नी या दोनों हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं हैं।
इस अधिनियम के अनुसार, जोड़ों को शादी की निर्धारित तारीख से 30 दिन पहले संबंधित दस्तावेजों के साथ विवाह अधिकारी को एक नोटिस देना होता है। हालांकि, इस प्रक्रिया को https://www.onlinemarriageregistration.com/ पर ऑनलाइन सक्षम कर दिया गया है, लेकिन जोड़े को शादी के अनुष्ठान के लिए विवाह अधिकारी के पास जाना होगा।
विशेष विवाह अधिनियम की उतपत्ति
विशेष विवाह अधिनियम की उतपत्ति 19वीं शताब्दी के आखिर में प्रस्तावित कानून के एक अंश से हुई थी। यह जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में फैला हुआ है और उन भारत के नागरिकों पर भी लागू होता है जो उन क्षेत्रों में निवास करते हैं जिन पर यह अधिनियम लागू होता है जो जम्मू और कश्मीर राज्य में हैं।
फिलहाल समलैंगिक विवाह को कानूनी मंज़ूरी देने के लिए अदालत में सरकार व याचिकाकर्ताओं के वकीलों के बीच बहस ज़ारी है जिसका अभी कोई परिणाम नहीं निकल पाया है।
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