सावित्रीबाई फुले ने उस समय महिलाओं के साथ होते अन्याय को लेकर लड़ाई लड़ी जिस समय उन पर बेहद अत्याचार हो था था। वह पहली मॉडर्न भारतीय फेमिनिस्ट थी जो महिलाओं के अधिकारों के लिए व विधवा महिलाओं के सिर मुंडवाने के खिलाफ खड़ी हुई।
सावित्रीबाई फुले, अपने समय की एक प्रमुख समाज सुधारक होने के साथ-साथ भारत की पहली महिला शिक्षिका हैं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों की शिक्षा के लिए सबसे पहला स्कूल खोला था।
सावित्रीबाई फुले ने जातिवाद के साथ-साथ पितृसत्ता के खिलाफ भी अन्य समाज सुधारकों के साथ लड़ाई लड़ी। हालांकि, यह लड़ाई आज भी ज़ारी है।
फुले ने अपनी कविताओं के ज़रिये शिक्षा की मांग की। भेदभाव व जातिवाद के मुद्दों को अपनी कविताओं के ज़रिये उठाया। वह बाल विवाह, सति प्रथा, छुआछूत आदि जैसे सामाजिक बुराइयों के खिलाफ सक्रीय तौर पर अपनी आवाज़ उठाई। सावित्रीबाई को भारत की पहली ‘फेमिनिस्ट आइकॉन’ भी कहा जाता है।
आज उनकी जयंती पर हम कुछ ऐसे तथ्यों के बारे में बात करेंगे जिसके बारे में कम लोग जानते हैं।
– फाइनेंसियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कवयित्री और समाज सुधारक, सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के एक किसान परिवार में हुआ था। सावित्रीबाई को महाराष्ट्र के सामाजिक सुधार आंदोलनों में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।
– सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ ब्रिटिश राज के दौरान भारत में महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
– सावित्रीबाई ने साल 1848 में अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ एक स्कूल शुरू किया जिसमें सिर्फ नौ छात्र थे और वे शिक्षिका हुआ करती थीं। छात्र स्कूल ना छोड़े इसके लिए उन्होंने वजीफे की भी पेशकश की। वह छात्रों के माता-पिता के साथ शिक्षक बैठकें भी करती थी, जैसा बिलकुल आज किया जाता है।
– सावित्रीबाई फुले ने उस समय महिलाओं के साथ होते अन्याय को लेकर लड़ाई लड़ी जिस समय उन पर बेहद अत्याचार हो था था। वह पहली मॉडर्न भारतीय फेमिनिस्ट थी जो महिलाओं के अधिकारों के लिए व विधवा महिलाओं के सिर मुंडवाने के खिलाफ खड़ी हुई।
साल 1998 में सावित्रीबाई के सम्मान में इंडियन पोस्ट द्वारा एक डाक टिकट भी ज़ारी किया गया था।
– सावित्रीबाई फुले ने गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए एक देखभाल केंद्र खोला। उनके देखभाल केंद्र को “बालहत्या प्रतिबंधक गृह” कहा जाता था।
– जब 1897 में पुणे के आस-पास के क्षेत्र में प्लेग (plague) दिखाई दिया, तो सावित्रीबाई फुले और उनके दत्तक पुत्र (अडॉप्टेड) यशवंत ने बुबोनिक प्लेग की तीसरी महामारी से प्रभावित लोगों के इलाज के लिए एक क्लिनिक खोला।
– सावित्रीबाई अपने रोगियों की देखभाल करते हुए खुद इस रोग से ग्रस्त हो गईं और 10 मार्च, 1897 को एक प्लेग रोगी की सेवा करते हुए उनकी मृत्यु हो गई।
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