उत्तर प्रदेश को वैसे तो भारत का वो राज्य माना जाता है जहाँ संस्कृति और कला कूट कूट कर भरी है। लेकिन इसके साथ यूपी महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और महिलाओं की सुरक्षा में पीछे रहने के लिए भी महशूर है। लेकिन प्रदेश की कुछ महिलायें अपने घर की कठिन परिस्थितियों को सुधारने के लिए समाज की रूढ़िवादी सोच को चुनौती दे रही हैं और वो अपने पैरों पर खड़ी होकर अपना घर चला रही हैं ।
इन महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि अगर आपके अंदर कुछ कर दिखाने की लगन हो तो आप लोगों की सोच को हराकर जग जीत सकते हैं। इन महिलाओं ने रोज़गार के छोटे-छोटे जरिया ढूंढ निकाले हैं जिसकी मदद से यह घर के कामों को करने के साथ-साथ परिवार की आर्थिक रूप से भी सहायता कर रही हैं। बांदा ज़िले की ग्रामीण महिलाएं आज राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ कर स्वयं सहायता समूह का हिस्सा बनी हैं और वो दुग्ध उत्पादन का काम कर रही हैं।
चित्रकूट जिले के पंडरी गाँव की महिलाएं भी एक स्वयं सहायता समूह से जुड़कर घर पर ही फिनायल, हार्पिक और विम लिक्विड बना रही हैं और आज आत्मनिर्भर हैं। वाराणसी की कंचन जैस्वाल की कहानी भी काफी प्रेरणादायक हैं जिनकी स्कूल में बनी कैंटीन पिछले साल लॉकडाउन लगने के बाद ठप्प पड़ गयी तो उन्होंने बिना किसी झिझक के ई-रिकशा चलाना शुरू कर दिया और परिवार का सहारा बनी। ये महिलाएं हमारे लिए एक मिसाल हैं। गाँव में रहकर भी न सिर्फ आज ये महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हैं बल्कि बराबर से घर में आर्थिक योगदान भी दे रही हैं। हम सभी को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और सीखना चाहिए कि जीवन में चुनौतियाँ तो हज़ार आएंगी लेकिन उनको हराकर उम्मीद के दरवाज़े कैसे खोलना बिलकुल भी मुश्किल नहीं है।
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