“तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हे आजादी दूंगा” का नारा देकर भारत की आजादी की भावना को नई दिशा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 123वीं जयंती है। आजाद हिंद फौज की स्थापना कर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में भला कौन नहीं जानता! लेकिन उनके जीवन के व्यक्तिगत और निजी पहलुओं के बारे में अब कम ही चर्चा होती है। पर आज उनके जन्म दिवस पर जगह-जगह उनकी जयंती मनाई जा रही है। नेताजी सुभाष चन्द्रर बोस की वीरता पर सभी भारतीयों को गर्व है। उनकी जयंती पर हम महान व्यक्तित्व वाले नेताजी को नमन करते हैं।
फैजाबाद जिले नगरपालिका परिसर में बनी नेताजी की मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। जनौस के प्रदेश महासचिव कामरेड सत्यभान सिंह जनवादी ने कहा कि आज देश मे क्रांतिकारियों की विरासत को कुचला जा रहा है और उनके बिचारो को बदला जा रहा है।सविंधान के साथ खेलवाड़ किया जा रहा है और देश मे नफरत और हिंसा फैलाये जा रहे है। सरकार को देश मे युवाओं के रोजगार और शिक्षा की व्यवस्था बनाये लेकिन यह सरकार इस काम को करने में फेल रही और सिर्फ जाति व धर्म के नाम पर लोगो को बांटने की कोशिश की जारही है, जिसका संगठन विरोध करता है। क्रांतिकारियों ने अपने लिए नही अपनो के लिए गर्दन कटाई है।
Remembering #NetajiSubhasChandraBose on his birthday anniversary. My students created SandArt at puri beach . pic.twitter.com/RFzQ4WCMI2
— Sudarsan Pattnaik (@sudarsansand) January 22, 2020
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी ने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया था इस वजह से आज के दिन संस्थाओं के लोग रक्तदान शिविर लगाकर ब्लड डोनेट भी करते हैं जिससे लोगों का भला हो सके।
हलाकि सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के कई राज दफ़न हैं कहा जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को जापान जा रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फोरमोसा (ताईवान) में एक विमान दुर्घटना में मौत हो गयी। तोक्यो रेडियो ने 22 अगस्त, 1945 को इसकी घोषणा की। लेकिन, नेताजी के अनुयायी और आजाद हिंद फौज के जीवित सेनानियों का दावा है कि आजादी के बाद वह गुमनामी बाबा के रूप में उत्तर-प्रदेश के अयोध्या और देश के अन्य भागों में रहे।
गुमनामी बाबा की कहानी इतनी उलझी हुई है कि कोई यकीन के साथ न तो उन्हें नेताजी स्वीकार करता है और न ही उसे झुठला सकता है कि ये नेताजी की समाधी नहीं है। 18 सितंबर, 1985 को गुमनामी बाबा के निधन के बाद फैजाबाद में सरयू किनारे गुप्तार घाट में उनकी समाधि बनी। किसी ने उनके पेरिस में होने की बात कही, तो किसी ने कहा कि सोवियत संघ में उन्हें श्रमिक शिविर में बंद कर दिया गया। चूंकि, कभी उनका मृत शरीर नहीं मिला, उनकी मृत्यु इतिहास का बड़ा रहस्य बना हुआ है।