पिछले साल जब कोरोना महामारी की वजह से देश में लॉकडाउन की घोषणा की गयी थी। तब हमने लाखों मज़दूरों को शहरों से गांवो की तरफ पलायन करते हुए देखा था। वह इसलिए क्योंकि शहर से उनकी रोज़ी–रोटी छिन चुकी थी। सारे काम बंद हो चुके थे। ऐसे में उनका गांव ही उनका और उनके परिवार के भरन–पोषण करने का एकमात्र साधन था।
लॉकडाउन खत्म हुआ तो फिर एक बार गांवो से शहरों की तरफ़ पलायन शुरू हुआ। कुछ समय बीता ही था कि कोरोना की दूसरी लहर ने सबको अपने बहाव में फिर से जकड़ लिया। जिस तरह से पिछले साल मज़दूरों की भीड़ रेलवे स्टेशनो और बस अड्डे पर नज़र आ रही थी। कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए अब वो समय दूर नहीं कि वो मंज़र हम फिर से देखेंगे।
रेलवे द्वारा कोरोना मामलों को देखते हुए मज़दूर प्रवासियों के लिए अतिरिक्त ट्रेनें चलानी शुरू कर दी गयी है। एनडीटीवी की 16 अप्रैल की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार रेलवे ने कोविड को देखते हुए अपनी सेवाएं अब 70 फीसदी तक कर दी है।
रेलवे ने बढ़ाई अपनी सेवाएं, चला रही है अधिक ट्रेनें
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, रेलवे ने अगले दो हफ्तों में 133 अतिरिक्त ट्रेनों – 88 समर स्पेशल और 45 फेस्टिवल स्पेशल– ट्रेनों को शुरू करने की योजना बनाई है।
बीते बुधवार तक, रेलवे ने साप्ताहिक सहित 9,622 विशेष ट्रेनों को मंजूरी दी थी
रेलवे 5,387 उपनगरीय रेलगाड़ियां (कोविड पूर्व समय की 92 प्रतिशत) चला रहा है। जिसमें मध्य रेलवे क्षेत्र में ज़्यादा सेवाएं संचालित होती हैं। जिसके तहत मुंबई और पुणे आते हैं। इस समय 82 फीसदी मेल एक्सप्रेस और 25 फीसदी लोकल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। गोरखपुर, पटना, दरभंगा, वाराणसी, गुवाहाटी, बरौनी, प्रयागराज, बोकारो, रांची और लखनऊ जैसे बड़ी मांगो वाले क्षेत्रों में भी ज़्यादा ट्रेनें चलाई जा रही हैं।
कोरोना की दूसरी लहर एक बार फिर आर्थिक स्थिरता को गिराने की तरफ दस्तक दे रही है। इससे सबसे ज़्यादा परेशानी मज़दूरों,उद्योगपतियों, मध्यम वर्ग के लोग, असमर्थ व्यक्ति इत्यादि लोगों को हो रही है। हर जगह वीकेंड लॉकडाउन और नाईट कर्फ्यू लगाया जा रहा है। इस बीच मज़दूरों को डर है कि अगर पूर्ण लॉकडाउन लग गया तो वह अपने घर, अपने गांव नहीं पहुंच पाएंगे। जिसकी वजह से उन्होंने धीरे–धीरे शहरों को छोड़ना शुरू कर दिया है।
पिछले साल हमने देखा कि डर की वजह से मज़दूर पैदल ही अपने परिवार के साथ अपने गांवो की तरफ चल पड़े थे। हर टीवी के चैनल पर उनकी खबर थी। लेकिन उनमें से कई घर ही नहीं पहुंच पाए। लंबा रास्ता और भूख, ऊपर से महामारी ने उनकी जान ले ली। कुछ दोष सरकार का भी था कि लॉकडाउन के दौरान दिहाड़ी मज़दूरों को लेकर गौर नहीं किया गया। जब धीरे–धीरे उनकी समस्याएं देश के सामने आई तब सरकार ने श्रमिक एक्सप्रेस की शुरुआत की। जो कि खासतौर पर मज़दूरों के लिए चलाई गयी थी।
इस दौरान इनके नाम पर सरकार ने कई योजनाएं भी चलाई। कहा गया कि उनके भोजन की व्यवस्था की जाएगी। लेकिन यह लाभ कुछ तक पहुंचा और कुछ सिर्फ उसकी आस ही करते रह गए।
आज देश में कोरोना के 14,291,197 मामले दर्ज हो चुके हैं। जिसमें 174,335 लोगों की मौत हो चुकी है। अगर मामले इस तरह से ही बढ़ते रहे तो हालत पिछले साल से भी ज़्यादा बिगड़ने में देर नहीं लगेगी।