रोजगार गारंटी के काम में मजदूरी करने वाले मजदूरों को उनकी मज़दूरी नहीं दी गई है। मामला प्रयागराज जिले के ब्लॉक शंकरगढ़ गांव गोल्हैया का है। यहाँ ज्यादातर आदिवासी निवास करते हैं। एक मजदूर का परिवार मज़दूरी से मिलने वाली रकम से ही चलता है। ये बात सही है कि मनरेगा मजदूरी लेट हो सकती है लेकिन मिलेगी जरूर, तब तक मजदूर आखिर परिवार का खर्च कैसे चलाए?
ये भी देखें – महोबा : 1 माह से मनरेगा मज़दूरों को नहीं मिला वेतन
ग्रामीणों का आरोप है कि तपातारा, चन्द्राय तारा, मेड़बंदी, नाली और कचारी नाला में सालभर पहले लगभग 15 ग्रामीणों ने दो महीने काम किया लेकिन मजदूरी नहीं मिली। गरीबी से तंग लोग लकड़ी बेचकर गुजारा कर रहे हैं। 1700 की आबादी में लगभग 600 मजदूर हैं लेकिन मनरेगा योजना यहाँ ढीली पड़ी है। खेती-बाड़ी है नहीं जीविका कहाँ से पाले?
मनरेगा को “एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों की गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, जिसमें मनरेगा में काम के इच्छुक व्यस्क सदस्य अपने गांव के 5 किलोमीटर के अंदर में कहीं भी काम कर सकते हैं।” काम के लिए आवेदन करने के 15 दिन के अंदर मनरेगा में काम मिलने का नियम है।
ये भी देखें – बाँदा : गाँव में मनरेगा कार्यों में घोटाले के बाद प्रशासन ने की जांच
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’