देश में पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए भले ही सरकारें हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही हों, लेकिन जमीनी स्तर पर जानलेवा बने प्रदूषण का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है| इसका कबरेज मैंने तीन अलग-अलग जगहों पर किया कहीं सीमेंट प्रदूषण है, तो कहीं पर बालू क्रैशर और चमडा, लोहा फैक्ट्री से होने वाला प्रदूषण है और इस प्रदूषण से फैक्ट्री के आस-पास बनी बस्तियां और गरीब मजदूर वर्ग के लोग बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं|
मध्यप्रदेश के सतना और उत्तर प्रदेश के कानपुर और प्रयागराज जिले में देखा कि फैक्ट्री और क्रैशर के आस-पास बसे गांव की सड़कें और पेंड़ पोधों में सफेदी छाई है| इतना प्रदूषण है की लोगों का नाक और मुँह ढंके बिना रास्ते से निकलना और उन जगहों पर काम करना मुश्किल हो रहा है| जमीन में फसल की हरियाली तो कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है, तब मैं हैरान रह गई| जब मैंने इस बारे में लोगों से जानना चाहा तो लोग दबी जुबान बोल रहे थे की क्या करें अब तो उन लोगों को इस प्रदूषण में रहने की आदत सी हो गई है| शुरुवाती दौर में बहुत दिक्कत होती थी रात-रात भर नींद नहीं आती थी और घर पुरी तरह धूल से भर जाते हैं खाना,पानी और कपड़ा सब इसी प्रदूषण के साथ ही करना पड़ता है, तो अब यह प्रदूषण भी उनके जिन्दगी का एक हिस्सा सा बन गया है| क्योंकि बड़े-बड़े उधोग पतियों के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सकते और अगर उठाते हैं तो भी उनको खतरा है| साथ ही उन्ही फैक्ट्रियों और क्रैशरों में काम भी करना है, अगर काम नहीं करेंगे तो परिवार कैसे चले गा| यही कारण है की लोग प्रदूषण के कारण टीबी, स्वास और हैजा जैसी बडी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और जहाँ वह 80 साल जीते थे|वहां अब वह 50 साल में ही अपनी जिन्दगी गवा देते हैं| क्योंकि खेतों और पेंड़ पौधों की हरियाली तो अब नाम मात्र की ही रहे गई है| जो पेड़ पौधे हैं भी वह प्रदूषण के कारण पुरी तरह जल चुके हैं दिन रात सिर्फ धूल और धुंआ की गुंग ही दिखती है| जिसके कारण प्रदूषण घटने का नाम ही नहीं ले रहा ना सरकारी तंत्र और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस पर कोई ठोस कदम उठा कर काम कर रहा काम के नाम पर सिर्फ कागजों की खाना पुर्ती की जाती है और उसका परिणाम आम जनता को भुगतना पड़ रहा हैं|
एक तरफ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपने काम को नियमित करने कि बात कर रहा है और ये दावा कर रहा है कि उनके वजह से प्रदूषण कम हो रहा है दुसरी तरफ लोग प्रदूषण का प्रकोप से बुरी तरह तबाह हो रहे हैं| अब सवाल ये उठता है कि सीमेंट फैक्ट्री हो या क्रैशर और अन्य फैक्ट्रियां अगर पर्यावरण को प्रदूषण से बचना है, तो सरकारी तंत्र क्यों नहीं इस पर ध्यान दे रहा की ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगवाए जाऐ उनका कटान न कराया जाए| क्या जो सरकारें हजारों करोंड़ रुपये खर्च कर रही हैं वह एक दिखावा है और प्रदूषण के नाम पर सरकारी धन का बंदरबाट किया जा रहा है| सरकारी तंत्र को जमीनी हकीकत और लोगों की जिन्दगी से कोई परवाह नहीं है या फिर वह लोग जिम्मेदारी से भाग रहे हैं| कहीं ऐसा तो नहीं की सरकारी तंत्र भी इस गंभीर समस्या को जानते हुए अन्जान है और आम जनता परेशान है| अगर ऐसा है तो इसके लिए भी सरकार को कोई ठोस कदम उठाने चाहिए और जिम्मेदार तंत्र पर कारवाई करनी चाहिए|