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धर्म की राजनीति या राजनीति का धर्म? राजनीति, रस राय

नमस्कार दोस्तों मैं मीरा देवी खबर लहरिया की प्रबन्ध संपादक अपने शो ‘राजनीति रस राय’ में आपका बहुत-बहुत स्वागत करती हूं। ये सच है कि हमारी पारंपरिकता में बदलाव आया है। त्यौहारों को मनाने में दिखावा बढ़ गया है। अब दिखावा और राजनीति हावी हो गयी है।

मानती हूं कि युग और समय के साथ बदलाव आना स्वाभाविक है पर हमें हमारे जीवन में शामिल त्यौहारों की परम्परा के पीछे छुपे सुख-दुःख और संस्कारों को बदलाव से बचाना चाहिए। त्यौहारों के मौके पर पहले एक-दूसरे के घर जाकर बधाइयां दी जाती थी पर अब ऐसा नहीं है कि अब तो हर कोई मैसेज में बंध गया है।

उससे बड़ी बात तो यह है कि त्यौहारों के माहौल को पूरी तरह से राजनीतिक बना दिया गया है। नेता खुद भगवान बन बैठे हैं। ऐसा नहीं है कि इसमें आवाज न उठी हो। यहां तक कि धर्मगुरुओं तक ने इस पर आवाज उठाई है।

दो महीने पहले दैनिक भास्कर में छपी खबर में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा था कि चाहें भाजपा हो, कांग्रेस हो, सपा-बसपा हो, दक्षिण की पार्टियां हों, उत्तर की पार्टियां हों, जो भी राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में पंजीकृत हुआ वह धर्मनिरपेक्ष हो जाता है, क्योंकि राजनीतिक दलों ने बदले में धर्मनिरपेक्षता की शपथ लेकर खुद को रजिस्टर कराया है। जो भी राजनीतिक पार्टी का सदस्य बन गया, वह धर्मनिरपेक्ष हो गया। ऐसे में एक ही साथ आप धार्मिक भी हो और धर्मनिरपेक्ष भी हो, दोनों नहीं हो सकते।

देखा जाए तो 2014 से मतलब जब से बीजेपी पार्टी सत्ता में आई है तब से त्यौहारों में राजनीति हावी है। साल दर साल इसका बढ़ता ग्राफ देखा जा रहा है। हर छोटे से छोटे त्योहारों को बड़ा बनाने और उसका प्रदशर्न दिखावे के रूप में किया जा रहा है। इस साल 18 फरवरी को शिवरात्रि और 30 मार्च को रामनवमी का त्यौहार ही देख लीजिए। बड़े-बड़े जूलूस, नशे में धुत्त होकर नाचना गाना वह भी अश्लीलता फैलाने वाले गानों के साथ और फिर वह खुद भगवान बन जाते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हीं से लोग जिंदा रहेंगे और मरेंगे भी।

रामनवमी का त्योहार हो या शिवरात्रि का, चुनिंदा मंदिरों और आम लोगों के घरों तक ही सीमित था। लेकिन अब जहां पर जो पार्टी सत्ता में हैं वहां की पार्टियों के लिए सियासत का प्रमुख अस्त्र बन गया है। बीजेपी पार्टी के ऊपर धर्म की राजनीति का आरोप लगता आया है लेकिन आज के माहौल में धर्म राजनीति का हथियार बन गया है और सभी पार्टियां धर्म की आड़ में राजनीति कर रहे हैं क्योंकि धर्म की राजनीति से बीजेपी को बहुत बड़ा फायदा हुआ है।

इससे सारी पार्टियों को लगता है कि राजनीति में धर्म एक ऐसी जादू की छड़ी है जो एक साफ सुधरा छवि वाला नेता बना सकती है। अब इस छवि को बनाने के लिए नेताओं में होड़ लगी हुई है। सब एक दूसरे को पछाड़ना चाहते हैं। इसके लिए सोशल मीडिया में रोज के डोज दिए जाते हैं। इस डोज की लत अब लोगों में आग की तरह फैल गई है। लोग भी ऐसे नेताओं को भगवान मान बैठे हैं, उनकी पूजा करते हैं, उनके मंदिर बनाते हैं। सच बताइये, ले रहे हैं न आप रोज के डोज? अगर हां या न भी तो कमेंट करके ज़रूर बताइएगा। फिर मिलूँगी किसी नए मुद्दे के साथ, तब तक के लिए नमस्कार!

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