खबर लहरिया National राजनीति! अजीब है न मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ती, राजनीति रस राय

राजनीति! अजीब है न मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ती, राजनीति रस राय

नमस्कार दोस्तों, आज मैं अपने शो राजनीति रस राय में बात करूंगी नेता जी की। नेता जी का नाम सुनते ही आप सब जान गए होंगे कि मैं किसकी बात कर रही हूं। नेता जी मतलब समाजवादी पार्टी के संस्थापक अब इस दुनिया में नहीं रहे। सब लोग उनकी जीवनी को याद कर रहे हैं। नेता जी की पहलवानी, मास्टरी और राजनीतिक सफर को याद कर रहे हैं। सोशल मीडिया के प्लेटफार्मस भरे पड़े हैं।

यह जीवन और राजनीति कितनी अजीब है न। जिंदा तो जिंदा मरने के बाद भी सुकून से मरने नहीं देती। शोशल मीडिया के प्लेटफार्मस तो आप देख ही रहे होंगे। वहां पर चल रही बातें और कमेंट भी पढ़ रहे होंगे। बहुत लोग उनकी अच्छाइयां गिना रहे हैं। आज के माहौल में नेताओं को सीधे मुंह बात करते नहीं देखते वह अपने साथ उनकी फोटो शेयर कर रहे हैं। तो वहीं बहुत लोग उनकी बुराई करने से नहीं चूक रहे। ऐसा लगता है कि यही एक मौका मिला है विरोधी पार्टी के खिलाफ अपशब्द बोलने का।

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भई बात तो चाहे लोग जो करें लेकिन राजनीति के अच्छे खिलाड़ी थे। उनको धरती पुत्र का नाम दिया गया साथ ही जमीनी पकड़ उनमें बताई गई। उत्तर प्रदेश पर नज़र रखने वाले कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुश्ती के इस गुर की वजह से ही मुलायम राजनीति के अखाड़े में भी उतने ही सफल रहे, जबकि उनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी लेकिन 28 साल की उम्र में वह विधायक बने थे। 1967 में जसवंतनगर विधानसभा सीट से चुनाव जीते और यहीं से उनके राजनीतिक कैरियर की शुरूआत हुई थी।

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चुनाव के समय नेता जी कई बार बांदा समेत बुंदेलखंड के जिलों में ही नहीं जिलों के अंदर छोटे कस्बों में भी गए। 28 अप्रैल 2014 को वह अतर्रा हिन्दू इंटर कॉलेज और 2009 में वह बांदा के राइफल क्लब मैदान में चुनावी रैली करने आये थे। किसी मतभेद के चलते उनका विरोध किया गया था लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ भी उनकी रैली में देखने को मिली थी।

सब कह रहे हैं कि ऐसा नेता न आया है न आएगा। उनमें राजनीतिक पकड़ बहुत थी और अब वैसी राजनीतिक पकड़ किसी और नेता में नहीं होगी। अगर यह सही सवाल है तो सोचिएगा जरूर और कमेंट करके हमें भी बताइएगा।

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