जनहित याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एक अध्ययन का हवाला दिया गया। अध्ययन के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाएं जितने दर्द से गुज़रती है, वह एक व्यक्ति द्वारा हार्ट अटैक के समय महसूस करने वाले दर्द के समान होता है।
महावारी के दौरान महिला छात्रों व कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म की छुट्टी की मांग करते हुए जनहित याचिका (Public Interest Litigation) दायर की गयी थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 24 फरवरी को सुनवाई की जायेगी।
यह याचिका अधिवक्ता शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी द्वारा दायर की गयी थी। जब याचिका को जल्द से जल्द सूचीबद्ध करने की बात कही गयी तो भारत के मुख्य डी वाई चंद्रचूड़ ने इसे 24 फरवरी के लिए सूचीबद्ध किया।
बता दें, 16 फरवरी को स्पेनिश संसद ने पीरियड्स के दौरान महिलाओं को छुट्टी देने की मंज़ूरी दे दी है। इसके साथ ही स्पेन ऐसा करने वाला यूरोप का पहला देश बन गया है। इसके तहत अगर महिलाएं पीरियड्स के समय अस्वस्थ महसूस करती हैं या दर्द में हैं तो वह तीन से 5 दिन की छुट्टी ले सकती हैं।
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कई भारतीय कंपनियां देती हैं पेड लीव
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एक अध्ययन का हवाला दिया गया। अध्ययन के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाएं जितने दर्द से गुज़रती है, वह एक व्यक्ति द्वारा हार्ट अटैक के समय महसूस करने वाले दर्द के समान होता है। आगे कहा कि दर्द एक कर्मचारी की काम करने की क्षमता व उसके साथ-साथ उसके काम को भी प्रभावित करता है। याचिका में तर्क दिया गया कि कुछ भारतीय कंपनियाँ जैसे जोमाटो, स्विग्गी, बायजु, गोजूप, एआरसी, फ्लाईमायबिज़ आदि मासिक धर्म यानी पीरियड के दौरान पेड छुट्टी देती हैं।
याचिकाकर्ता ने अन्य चीज़ों की भी की मांग
दिल्ली के रहने वाले याचिकाकर्ता शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने केंद्र और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 (Section 14 of the Maternity Benefit Act, 1961) का पालन करने का निर्देश देने की भी मांग की, जो उचित सरकार द्वारा निरीक्षकों की नियुक्ति से संबंधित है और स्थानीय सीमाओं को परिभाषित करता है।
कई देश दे रहें हैं पीरियड्स के दौरान अवकाश
याचिकाकर्ता के वकील विशाल तिवारी ने कहा कि यूनाइटेड किंगडम, चीन, वेल्स, जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन और जाम्बिया पहले से ही किसी न किसी रूप में पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द को लेकर छुट्टी प्रदान कर रहे हैं।
बिहार राज्य में मिलता है पीरियड्स के दौरान अवकाश
याचिकाकर्ता ने बताया कि बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य है जो 1992 से महिलाओं को दो दिन का विशेष अवकाश पीरियड्स में होने वाले दर्द (menstrual pain leave) को लेकर प्रदान कर रहा है।
मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 क्यों ज़रूरी?
याचिकाकर्ता ने कहा, 1961 अधिनियम के तहत कानून के प्रावधान संसद द्वारा कामकाजी महिलाओं के मातृत्व और मातृत्व को पहचानने और सम्मान करने के लिए उठाए गए “महानतम कदमों” में से एक हैं।
इसमें कहा गया है कि केंद्रीय सिविल सेवा (central civil services) अवकाश नियमों में महिलाओं के लिए उनकी पूरी सेवा अवधि के दौरान 730 दिनों की अवधि के लिए चाइल्ड केयर लीव जैसे प्रावधान किए गए हैं, ताकि उनके पहले दो बच्चों की देखभाल 18 वर्ष की आयु तक की जा सके।
याचिका में कहा गया कि नियम ने पुरुष कर्मचारियों को एक बच्चे की देखभाल के लिए 15 दिन का पितृत्व अवकाश भी दिया है जो कामकाजी महिलाओं के अधिकारों और समस्याओं को पहचानने में राज्य द्वारा लिए गया एक और बड़ा कदम है।
बजट सत्र में भी ‘मासिक धर्म लाभ विधेयक’ की रखी गयी थी बात
याचिका में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि 2018 में, डॉ. शशि थरूर ने महिला यौन, प्रजनन और मासिक धर्म अधिकार विधेयक पेश किया था, जिसमें प्रस्तावित किया गया था कि सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा अपने परिसर में महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इसके अलावा अन्य संबंधित विधेयक, मासिक धर्म लाभ विधेयक, 2017 को बजट सत्र के पहले दिन 2022 में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन विधानसभा द्वारा इसे ‘अशुद्ध’ विषय के रूप में कहकर नजरअंदाज कर दिया गया था। याचिका के अनुसार, विधानसभा का यह रवैया पीरियड्स के दौरान छुट्टी की अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए उनकी इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है।
कुछ कंपनियां व राज्य पीरियड्स में महिलाओं को होने वाले दर्द को लेकर उन्हें छुट्टी प्रदान कर रहे हैं पर पीरियड्स के दौरान महिलाओं को होने वाली समस्या हर जगह से जुड़ी है। देखना है कि जनहित याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनाती है।
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