बिहार पलायन को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहता है। खबर लहरिया ने अपनी कवरेज के दौरान देखा कि कई स्थानों पर ईंट-भट्ठे का काम चल रहा है। लोग अलग-अलग राज्यों से यहां आकर लगभग 8 महीने रहकर मज़दूरी कर रहे हैं। हमने यहां काम कर रहे कुछ लोगों से बात की। लोगों ने बताया कि वह पिछले 10 साल से ईट-भट्ठों में काम कर रहे हैं। वह अलग-अलग स्थानों पर जाते हैं और कार्य करते हैं। इससे उनका फायदा होता है। 8 महीने तक उन्हें काम नहीं ढूढ़ना पड़ता और वह बस 4 महीने के लिए ही घर जाते हैं। इसके बाद फिर उन्हें काम की तलाश करनी पड़ती है लेकिन उन्हें काम नहीं मिलता।
महिलाओं ने कहा, अगर उनके गांव में काम होता तो यहां क्यों आते। काम नहीं है तभी तो यहां आना पड़ता है। इस काम में उनको बहुत ही मेहनत करनी पड़ती है। रात 1 बजे जगकर काम करते हैं और सुबह 8:00 बजे तक ईंट सांचे से बाहर निकाल देते हैं। कभी मिट्टी नहीं मिलती तो उस दिन छुट्टी भी करनी पड़ती है।
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उन्हें 2 हज़ार रूपये खर्च के रूप में मिलता है जिससे वह अपना खर्च आराम से चला सके। जब ठेकेदार उनके घर जाते हैं तो उनको बहुत सारी सुविधाओं के बारे में बोल कर लाते हैं लेकिन उनको वैसी सुविधा नहीं मिलती जैसे की होनी चाहिए। अच्छी मिट्टी नहीं मिलती। कभी मालिक द्वारा दुर्व्यवहार भी किया जाता है तो कभी घर जाने की छुट्टी नहीं मिलती। समय से पैसा भी नहीं मिलता।
इस बारे में हमने भट्ठा मालिक से भी बात की। भट्ठा मालिक लाला जी ने कहा, उनके द्वारा सारी सुविधाएं दी जाती हैं। लोगों के रहने-खाने की व्यवस्था है और अगर कोई बीमार होता है तो उसके लिए दवा को लेकर भी पैसा दिया जाता है। त्योहार में खर्च के लिए अलग से पैसे दिए जाते हैं। यहां सब मिल-जुलकर फैमिली की तरह रहते हैं जिस तरह हम लोग काम करते हैं और लोगों को काम देते हैं। इसी तरह अगर सरकार भी दो-चार दस रूपये अपने ही राज्य में डाल दे तो बिहार की बेरोजगारी कम हो जाएगी और थोड़ा शिक्षा का स्तर बढ़ सकता है।
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