जंगलों से घिरे मध्य प्रदेश में गाड़ी चलाना सबके बस की बात नहीं होती है। लॉन्ग रूट पर तो सभी गाड़ी चलाते हैं। अपने आप को स्मार्ट ड्राइवर भी मानते हैं, लेकिन जब जंगल के अंदर बिना सड़कों वाले रास्तों में पत्थरों में पानी में गाड़ी चलानी होती है, तो हर किसी की बस की बात नहीं होती है। लोग डरने लगते है,क्योंकि पहली बार जंगल में रास्ते नहीं होते है। दूसरी बात जंगली जानवरों का डर रहता है व तीसरा गाड़ी की चिंता। लेकिन आज मैं बात करूंगी एक ऐसे ड्राइवर के बारे में जो आज 20 सालों से जंगल के अंदर ही गाड़ी चला रहे हैं और उनके अनुभव के बारे में जानूंगी।
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यूपी के बुंदेलखंड से चलकर मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के पन्ना में रहने वाले लगभग 45 वर्षीय दाऊ बताते हैं कि कुछ परिस्थितियों के चलते वह अपने गांव से भाग कर एमपी आ गए थे। उस समय उनके पास सिर्फ ₹70 थे, वह भी गांव के एक व्यक्ति से मांग कर लाए थे। पन्ना आकर वह कुछ दिन अपने मामा के साथ रहे व काम किया। इसके बाद उन्होंने पेट्रोल पंप में गाड़ियों में तेल भरने का काम किया। धीरे-धीरे बस में कंडक्टर का काम करने लगे व ड्राइवर के पास बैठते थे क्योंकि उनको गाड़ी चलाने शौक था।
ड्राइवरों को देख कर उन्होंने गाड़ी चलाना सीखा है। ड्राइवर बने तो उन्होंने ट्रक चलाया, बस चलाई और 10 साल तक वन विभाग की गाड़ी जंगल के अंदर चलाई। उनको जंगल का पूरा अनुभव है। जंगल के अंदर जानवरों को देखने के लिए ही गाड़ी चलाते थे क्योंकि मध्य प्रदेश का पन्ना जिला एक पर्यटक क्षेत्र है जो टाइगर रिजर्व के नाम से ही जाना जाता है। उनको पता है कि किस समय जानवर कहां पर होते है और उन्हें कैसे उसे बचाना है।
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आगे उन्होंने बताया कि जंगल में कोई रास्ता नहीं होता, रास्ता ड्राइवर को खुद से बनाना पड़ता है। उन्होंने वह रास्ते बनाये हैं। आज वह जंगल के अंदर किसी भी गांव में चले जाएं कभी रास्ता नहीं भूलते। फिलहाल आज वह तीन-तीन गाड़ियों के मालिक हैं। गाड़ियां ड्राइवर से चलवाते हैं और खुद भी चलाते हैं। जिस गाड़ी को वह चलाते हैं वह गाड़ी कोशिका संस्था में लगी हुई है। संस्थाओं का काम तो जंगल के अंदर दूर-दराज के गांव में जाकर लोगों के साथ होता है। किस जगह पर कैसे गाड़ी को उतारना-चढ़ाना है, कितनी स्पीड में चलना है यह उनको पूरा अनुभव होता है। वह जंगल के अंदर पत्थरों में गढ्ढो में गाड़ी चलाते हैं। यहां तक की 4 फीट तक पानी अगर भरा हुआ है, तो वह उस पानी में भी गाड़ी निकाल लेते हैं। वह इतने दिनों से जंगल के अंदर ही गाड़ी चला रहे हैं, तो उनको पता है की कितनी गहराई कहां पर है।
हां, लेकिन ज़्यादा पानी होता है तो वह बोनट खोलकर गाड़ी को निकलते हैं, ताकि पंखे से पानी न टकराए और उनकी गाड़ी को नुकसान ना हो। उनके साथ-साथ उनकी गाड़ी भी बहुत ही ताकतवर है। उनके लिए कोई भी काम छोटा और बड़ा नहीं है। जब संस्थाओं का काम होता है,तो उनके साथ रहते हैं और गाड़ी चलाते हैं। जब खाली होते हैं, तो उनके पास एक ऑटो भी है जिसको लोकल में चला कर सवारियां ढोते हैं लेकिन दिन भर में उनका ₹500 कमाने ही कमाने हैं।
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