मध्यप्रदेश। कहते हैं कि आदिवासी जंगल के राजा होते हैं उनका गुजारा जंगल से ही चलता है इसीलिए वह लोग जंगल के किनारे या बीच में बसे होते हैं और उसी जंगल से अपनी जीविका चलाते हैं। लेकिन कवरेज के दौरान हमने देखा कि पन्ना जिले के गांव कंचनपुरा कुंडन के कई आदिवासी परिवारों ने अपनी परम्पराएं छोड़ जैविक खेती में उतर आए हैं। अब बहुत से परिवार संस्था के माध्यम से किचन गार्डन नाम से सब्ज़ी की खेती करते हैं, जिससे उनकी आय भी बढ़ रही है और स्वस्थ में भी सुधार हो रहा है क्योंकि लकड़ियां काटकर बेचने से पूरा दिन उनका जंगल और पैदल चलने में गुजर जाता था तब जाकर सो ₹50 की कमाई होती थी जिससे वह भरपेट सब्जी नहीं खा पाते थे और उनके स्वस्थ में बहुत ज्यादा असर पड़ता था। लेकिन अब वह खुस हैं।
जब हमनें लोगों से जाना कि उन्होंने जब से यह खेती करना शुरू किया है और पहले के काम में किस तरह का बदलाव है, तो लोगों ने बताया कि पहले वह जंगल के ही वासी थे। गांव में पूरे आदिवासी परिवार है लगभग 300 घर सभी लोग सुबह 4:00 बजे जंगल निकल जाते थे और एक दिन लकड़ियां काट कर लाते थे दूसरे दिन गांव से 25 किलोमीटर शहर में लकड़ी का गट्ठा सिर में धरके महिलाएं बाजार जाती थी। वहां पर लकड़ी बेचती थी। लकड़ी से जो भी 100 ₹50 मिलता था उससे सब्जी आटा तेल जो भी मिल पाता था लेकर आती थी उसमें पूरी तरह उनको पर्याप्त मात्रा में सब्जी नहीं मिल पाती थी।
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किसी किसी दिन तो नमक रोटी ही खाना पड़ता था अगर एक टाइम सब्ज़ी मिल गई तो दूसरी टाइम नमक रोटी ऐसे लगता था मानो उनके थालियों से सब्जी गयब ही है। जिससे उनके स्वास्थ्य में काफी असर पड़ता था लेकिन जब उनके गांव में कोशिका संस्था ने काम शुरू किया तो उनके जरिए उन को काफी लाभ मिला उन्होंने उनको यह किचन गार्डन वाली खेती के बारे में बताया है जिससे लगभग 12 से 13 परिवार अब उस खेती को कर रहे हैं। किसी का एक बीघे में है तो किसी का कम पैमाने पर जिससे वह पर्याप्त मात्रा में सब्जी खा रहे हैं और बेच भी रहे हैं तो उनकी आय भी लकड़ियों से ज्यादा उसमें हो रही है। उन्होंने यह भी बताया कि यहां पर पानी की कमी के कारण कम खेती हो पाती है अगर यहां पानी की सुविधा हो जाए तो पूरी तरह लोग जंगल को छोड़कर खेती में जुट जाएंगे खेती से वह हर दूसरे दिन 500 से 1000 रुपए तक कमा लेते हैं जिससे उनकी आमदनी ठीक हो रही है और ताजी ताजी सब्जियां बिना खाद वाली मिल रही है और वह उन सब्जियों से बहुत खुशहाल है उनके स्वस्थ में बहुत अच्छा प्रभाव पड़ रहा है।
कोशिका संस्कार इंचार्ज नीता ने बताया कि वह स्वस्थ पर काम करती हैं जब उन्होंने उस गांव में काम शुरू किया था तो वहां पर देखा था कि काफी स्थिति करा खराब है आदिवासी परिवार जो इतनी मेहनत के साथ लकड़ी बेचने का काम करते हैं उनके स्वस्थ में बहुत असर पड़ रहा है इसी सब को देखते हुए उनके दिमाग में आइडिया आया कि क्यों ना इनको सब्जी की खेती करवाई जाए जिससे उनके घरों में भी खाने को पर्याप्त मात्रा में सब्जी मिलेगी तो स्वस्थ भी सुधरेगा इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने किचन गार्डन का काम शुरू किया है और उन्हें सफलता मिल रही है इसलिए वह काफी खुश हैं क्योंकि वह हेल्थ पर काम ही करते हैं।
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