चुनाव को लेकर हलचल और मुद्दे तो बहुत हैं, लेकिन पार्टियों द्वारा सामने दिख रही समस्यों को लेकर चर्चा होती नहीं दिख रही है, जिसमें ईंट-भट्ठों में काम करने वाले मज़दूर शामिल हैं।
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की हलचल राज्य में कुछ ऐसी है कि जीतने के लिए नेताओं की हेरा-फेरी भी होने लगी है। दिग्गज नेता अपनी पार्टी छोड़ विपक्ष पार्टियों में शामिल हो रहे हैं। जनता में उत्साह है और पार्टियों में खींचातानी। नये-नये मुद्दों पर फिर वादें किये जा रहे हैं। बेरोज़गारी, शिक्षा, बिजली, पानी, स्वास्थ्य सब विषयों को उछाला जा रहा है ताकि जनता को वोट के लिए लालच दिया जा सके। कोरोना महामारी में सबसे उनके रोज़गार छिन गए। अब यह सवाल सामने आ रहा है कि मतदान में लोगों की कितनी प्रतिशत भागीदारी रहेगी?
इसके साथ ही जहां बात चुनावी मुद्दों की है तो वह तो सामने ही है और बिल्कुल ताज़े भी हैं। बीते दिनों यूपी में लगातार बारिश होने से किसानों की सारी फसलें बर्बाद हो गयी। कुछ हद तक यह खबर मुद्दें की तरह उभरी लेकिन ईंट-भट्ठों में काम करने वाले मज़दूरों की समस्या अभी भी दबी हुई है। यूपी में अधिकतर लोग ईंट-भट्ठे में ही काम करते हैं। इसके आलावा उनके पास और कोई रोज़गार का ज़रिया भी नहीं है लेकिन उनकी समस्यायों को न के बराबर उजागर किया जाता है या कई बार किया ही नहीं जाता। बीतें दिनों जब बारिश हुई तो ईंट-भट्ठे में काम करने वाले मज़दूरों से उनका यह रोज़गार भी छिन गया। बात सिर्फ अभी की नहीं बल्कि सालों से चलती आ रही परेशानी की है जो यह मज़दूर सहते आ रहे हैं।
लेकिन इस समस्या पर कोई सवाल या बवाल नहीं हुआ। इस आर्टिकल में हम चुनावी लड़ाई को लेकर जनता की राय के बारे में बात करेंगे कि वह क्या कह रही है, उसकी क्या परेशानी है। वह इस चुनाव में अपने मत को लेकर क्या सोचती है ?
ये भी देखें – मज़दूरी से बचत नहीं होती की आवास बनवा पाएं – ग्रामीण
सरकार किसी की भी हो, कुछ नहीं बदलता
जनता की माने तो विधानसभा चुनाव में सपा (समाजवादी पार्टी ) और बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) की ज़ोरदार टक्कर है। बाकी पार्टियां तो है हीं लेकिन उनका उतना देखने को नहीं मिल रहा है।
हमने चुनाव को लेकर भट्ठे में काम करने वाले शीलू, नत्थू और रामसखी नाम के मजदूरों से बात की। उन्होंने मायूसी भरी ज़ुबान से कहा, “यह उनका अधिकार है। उनके एक वोट से अगर किसी का भला होता है तो वह अपने आपको क्यों रोकें।”
ये मज़दूर अपना घर-गाँव छोड़कर रोज़गार के लिए जाते हैं। जंगल और खेतों के बीच रहते हैं। मज़दूरों का कहना है कि, “उन्हें यह बात बखूबी पता है कि चाहें जिसकी सरकार आये लेकिन काम तो उन्हें वही करना है। ज़िंदगी बदलने वाली नहीं है फिर भी वह वोट डालने ज़रूर जाएंगे। हाँ, पूरा परिवार नहीं एक-एक लोग ज़रूर जाएंगे। अगर कोई उन्हें बुलाता है या गाड़ी भेजता है। अगर नहीं बुलाता तो भी वह कोशिश करेंगे, भले ही उनका दो दिन का नुकसान क्यों न हो।”
मज़दूरी छोड़कर भी वोट डालने जाएंगे – मज़दूर
हमने उनसे पूछा कि आप अपना नुकसान करके क्यों जाना चाहते हैं और किस उम्मीद के साथ? जवाब में उन्होंने कहा, चले जाएंगे वोट डालने। शायद कोई कभी उनको भी समझे। जिस दिन वह जाएंगे उस दिन पूरा दिन बर्बाद होगा। दूसरा दिन भी पूरा दिन बर्बाद होगा। तीसरा दिन भी रास्ते में लग जाएगा। 3 दिन का नुकसान होगा। उनके यहां कोई लेने नहीं आता। जब पंचायती राज चुनाव होते हैं तो गांव के प्रधान भले ही गाड़ी भेज देते हैं या उनको किराया दे देते हैं आने के लिए लेकिन इस चुनाव में पता नहीं।
वह चाहते हैं कि उनका वोट बर्बाद ना जाए। लोगों के लिए कि वह अपना वोट डाल सकते हैं जबकि उनको किसी भी सरकार में कोई लाभ नहीं मिलता। इतने दिन हो गए आज तक उन्हें निराशा ही मिली है। लोग वोटों के समय तो हाथ-पैर जोड़ते हैं,आते हैं बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं। मजदूरों के लिए रोज़गार दिला दिया जाएगा। उनको आवास दिया जाएगा। उनको इस योजना का लाभ मिलेगा, उस योजना का लाभ मिलेगा। फिर जीतने के बाद ग्राम पंचायत स्तर का प्रधान दोबारा सीधे मुंह बात नहीं करता तो यह तो बड़े स्तर का चुनाव है। इसमें वह कहां ढूंढ लेंगे कि कौन उनके यहां का विधायक है और कौन नहीं।
वह यह भी कहते हैं कि वह वोट डालने जाते हैं तो उनका लगभग 3 हज़ार का नुकसान हो जाता है। कोई उन्हें किराया-भाड़ा नहीं देता। आज तक तो कभी नहीं मिला। जिस तरह से वह रोज़ कमा-खा रहे थे, वही स्थिति आज भी है। न कॉलोनी मिली है, न शौचालय।
ये भी देखें – 70 परिवार ट्रैक्टर में भरकर मज़दूरी के लिए हरियाणा हुए रवाना
विकास की उम्मीद से करते हैं वोट
प्रेम बाबू कहते हैं, सरकार किसी की भी बने लेकिन उनके क्षेत्र का विकास चाहिए और बेरोज़गारी दूर होनी चाहिए। इसी उम्मीद के साथ वह हर बार चाहें पंचायती राज चुनाव हो या विधानसभा या लोकसभा का चुनाव, वह वोट ज़रूर करते हैं क्योंकि अगर पंचायती राज चुनाव हैं तो ग्राम पंचायत का विकास होगा। उनके खुद के परिवार को लाभ मिलेगा। अगर विधानसभा का चुनाव है तो उनके क्षेत्र का विकास होगा। खासकर उन्हें रोज़गार की ज़रुरत है क्यूंकि बुंदेलखंड स्तर पर बांदा, चित्रकूट, महोबा कहीं भी किसी भी तरह का कोई रोज़गार नहीं है।
हाल ही में, खबर लहरिया ने अपनी रिपोर्टिंग के दौरान देखा कि कई मज़दूर खाली बैठे हुए थे। इसका बडा़ कारण बारिश हो जाना था। बारिश की वजह से मजदूरों की पसारों में पानी भर गया है और उनका रोज़गार भी बंद है। जो भी उन्होंने ईंट पाथा था वह भी बारिश से खराब हो गया। बड़ोखर खुर्द गाँव की गौरा और प्रेमा ने बताया कि वह तकरीबन एक महीने से बेरोज़गार बैठी हैं। उन्हें डर है कि जो उन्होंने कर्ज़ा लिया था वह उसे समय से चुका पाएंगे भी या नहीं? जितनी उन्होने ईंटें बनाई हैं, उसकी गिनती सही से होगी या नहीं? उन्हें उनके मेहनत के पैसे मिलेंगे या नहीं ?
रोज़गार, देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है जिसका समाधान कई वादों और योजनाओं के बाद भी नहीं हो पाया है। पार्टियां चुनाव में रोज़गार की बात चुटकुले की तरह कह तो देती है पर रोज़गार की आस रखने वाले व्यक्ति के लिए यह बात उसकी उम्मीद बन जाती है। इसी उम्मीद से वह वोट डालते हैं। चुनाव आते हैं, चुनाव जाते हैं और समस्या ज्यों की त्यों रहती है। अब इस बार के यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के बाद कितने वादे पूरे होते हैं, कितना विकास होता है? यह भी धीरे-धीरे पता चल ही जाएगा।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
ये भी देखें – प्रयागराज: दलित बस्ती का है बुरा हाल, पूछता है भारत- किनका हुआ विकास ?
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)