खबर लहरिया आओ थोड़ा फिल्मी हो जाए न्यूटन : चुनावी प्रक्रिया की सच्ची तस्वीर | UP Elections 2022

न्यूटन : चुनावी प्रक्रिया की सच्ची तस्वीर | UP Elections 2022

प्रजातंत्र के लिए नेता को चुनने की जो प्रक्रिया है क्या वो सही है ?क्या इससे जनता का भला हो रहा है ? क्या चुनाव के द्वारा सही व्यक्ति चुने जाते है ? जो दूरदराज के इलाके है जहाँ किसी की पहुँच नहीं है जैसे हमारे बुंदेलखंड के कई बीहड़ इलाके जहाँ आदिवासी समुदाय रहते है उनको इससे कोई फायदा मिलता है ? अभी उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने वाले है तैयारियां जोरो पर है तपो हमने सोचा क्यों न आपको कुछ इसी तरह के फिल्म की कहानी बताई जाय। जी हाँ दोस्तों आज हाँ बात करेंगे फिल्म न्यूटन की। तो चलिए थोड़ा फ़िल्मी हो जाते है।

न्यूटन नाम सुन कर कहीं आपको ऐसा तो नहीं लग रहा की मै आपको कोई हॉलीबुड के फिल्म की कहानी या कोई विज्ञान से जुडी फिल्म की बात कर रही हूँ अगर ऐसा आप सोच रहे है तो बिलकुल गलत सोच रहे है। इस फिल्म में बताया गया है चुनावी प्रक्रिया के बारे में। जी हाँ हर पांच साल में भारत के नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए एक पार्टी को वोट देते हैं। लेकिन इसकी प्रकिया कभी आसान और ईमानदार नहीं होती। ये फिल्म आपको उस एक दिन की कहानी दिखाने की कोशिश करती है जिसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रित देश भारत में मतदान होता है। तो चलिए कहानी भी जान लेते है।

यह कहानी नूतन कुमार यानी राजकुमार राव की है जिसने अपने लड़कियों वाले नाम को दसवीं के बोर्ड में बदल कर ‘न्यूटन’ कर लिया है. अब सभी लोग उसे न्यूटन के नाम से ही जानते हैं. आगामी इलेक्शन में उसकी ड्यूटी लगती है जिसके लिए उसे छत्तीसगढ़ के जंगल के नक्सल प्रभावित इलाके में जाकर वोटिंग करवानी पड़ती है.

इलेक्शन की तैयारी के लिए न्यूटन की हेल्प संजय मिश्रा करते हैं उसके बाद एक टीम जिसमें लोकनाथ यानी रघुबीर यादव, मालको यानी अंजलि पाटिल और पुलिस अफसर आत्मा सिंह यानी पंकज त्रिपाठी है। ये टीम जंगली इलाके की तरफ बढ़ती है जहां जाने पर पता चलता है की कुल मिलाकर वहां के 76 वोटर्स की चर्चा है लेकिन वोट वाले दिन कोई नहीं आता. क्योकि उस गाँव के लोगों ने कभी वोटिंग मशीन नहीं देखी होती।

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इसी वजह से उन्हें कुछ लोग समझाते है कि वोटिंग मशीन एक खिलौना है जिसमें जो बटन अच्छा लगे उसे दबा दो। जिसका न्यूटन विरोध करते हैं। उनकी कोशिश होती है कि वो लोगों को चुनाव का मतलब समझा सकें और उन्हें जागरुक बना सकें। लेकिन यह काम एक दिन में तो होता नहीं है इसी वजह से उन्हें काफी सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नक्सल प्रभावित इलाके में चुनाव करवाना आसान नहीं होता क्योंकि हर समय गोली चलने का और मौत का डर लगा रहता है। यह सब जानने के बावजूद राव उस इलाके में मतदान कराने की जिद ठान लेते हैं। अब वहां वोटिंग होती है या नहीं इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी। ये फिल्म 2017 में आई थी तो आप इसे ऑनलाइन देख सकते है।

फिल्म ‘न्यूटन’ की सबसे खास बात है कि यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की वोटिंग प्रक्रिया की सच्चाई लोगों के सामने पेश करती है। ज्यादातर शहरी आबादी यह समझती है कि वोटिंग करना उसका हक है और उसके वोट से चुना हुआ प्रतिनिधि उसकी सारी समस्यायों का निदान करेगा। हालांकि हम इस बात पर विचार विमर्श करने के दौरान यह भूल जाते हैं कि हमारे ही देश की एक बहुत बड़ी आबादी है जिसे वोटिंग का मतलब तक नहीं पता है। यह फिल्म उस आबादी को बड़े पर्दे पर लाती है या हम यूं भी कह सकते है कि फिल्म ‘न्यूटन’ हमारे देश की उस आबादी की बात करती है, जिसे न केवल फिल्मों और राजनीति ने बल्कि आम लोगों ने भी मुख्यधारा से दरकिनार कर दिया है।

तो बातें बहुत हो गई अब हमें चलना चाहिए हाँ पर जाने से पहले एक बात जरूर कहूँगी किसी के बहकावे में या फिर लालच में नहीं बल्कि कौन आपके लिए आपके क्षेत्र के लिए बेहतर नेता है उसका चुनाव करें हाँ पर कोरोना गाइड लाइन बिल्कुन न भूलें। और अगर आपको हमारा ये वीडियो पसंद आया हो तो लाइक और दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें। तो मिलते हैं अगले एपिसोड में तब तक के लिए नमस्कार।

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