खबर लहरिया Blog नई शिक्षा नीति 2020 कहीं सरकार का चुनावी भविष्य तो नहीं?

नई शिक्षा नीति 2020 कहीं सरकार का चुनावी भविष्य तो नहीं?

New Education policy 2020
केंद्रीय कैबिनेट ने 29 जुलाई को नई शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी दे दी है। 1986 के बाद पहली बार यानी 34 साल बाद देश की शिक्षा नीति बदल रही है। इसमें बच्चे के प्राइमरी स्कूल में एडमिशन से लेकर हायर एजुकेशन कर जॉब फोर्स से जुड़ने तक काफी बदलाव किए गए हैं। नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट इसरो के वैज्ञानिक रह चुके शिक्षाविद के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाली कमेटी ने बनाया है।
इसके अलावा देश में शिक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहे मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर भी शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इसमें एक ओर प्राइमरी स्तर पर मातृ भाषा में शिक्षा का प्रावधान किया गया है तो ग्रेजुएशन स्तर पर डिग्री कोर्स को 4 साल तक का कर दिया गया है। अब तक चल रहे 10+2 सिस्टम (दो भाग) को बदलकर 5+3+3+4 (चार भाग) कर दिया गया है।

नई शिक्षा नीति की अहम बातें

  • कम से कम पांचवी कक्षा तक और संभव हो तो आठवीं और उसके आगे भी स्थानीय भाषा या मातृभाषा में पढ़ाई कराई जाएगी। मतलब कि हिंदी और अंग्रेजी जैसे विषय भाषा के पाठ्यक्रम के तौर पर तो होंगे लेकिन बाकी पाठ्यक्रम स्थानीय भाषा या मातृभाषा में होंगे।
  •  देश में अभी तक 10+2 (एक भाग में कक्षा 1 से 10 तक और दूसरे भाग में 11 से 12 तक) के आधार पर चलने वाली पद्धति में बदलाव किया जाएगा। अब 5+3+3+4 के हिसाब से पाठ्यक्रम होगा। यानी प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, फिर तीसरी से पांचवी तक दूसरा हिस्सा, छठी से आठवीं तक तीसरा हिस्सा और 9वीं से 12वीं तक आखिरी हिस्सा होगा।
  • नई शिक्षा नीति में बोर्ड परीक्षाओं को तो बरकरार रखा गया है लेकिन इन्हें ज्ञान आधारित बनाया जाएगा और उसमें रटकर याद करने की आदतों को कम से कम किया जाएगा।
  • अब स्कूली शिक्षा के दौरान बच्चे अपना रिपोर्ट कार्ड तैयार करने में भी भूमिका निभाएगें। अब तक रिपोर्ट कार्ड केवल अध्यापक बनाते आये हैं लेकिन नई शिक्षा नीति में तीन हिस्से होंगे। पहला बच्चा अपने बारे में स्वयं मूल्यांकन करेगा, दूसरा उसके सहपाठियों से होगा और तीसरा अध्यापक के जरिए।
  • इतना ही नहीं, अब कक्षा छठीं से ही छात्रों को कोचिंग भी पढ़ाई जाएगी, जो कि स्कूली शिक्षा पूरी करने तक उनके कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) में मदद करेगी।
  • अंडर ग्रेजुएट कोर्स को अब 3 की बजाए 4 साल का कर दिया गया है हालांकि छात्र अभी भी 3 साल बाद डिग्री हासिल कर पाएंगे लेकिन 4 साल का कोर्स करने पर सिर्फ एक साल में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर पाएंगे।
  •  तीन साल की डिग्री उन छात्रों के लिए, जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं करना है। हायर एजुकेशन करने वाले छात्रों को चार साल की डिग्री करनी होगी। इतना ही नहीं, ग्रेजुएशन के तीनों साल को सार्थक बनाने का भी कदम उठाया गया है।
  • इसके तहत एक साल बाद सर्टिफिकेट, दो साल बाद डिप्लोमा और तीन साल बाद डिग्री हासिल हो जाएगी। इसके साथ ही एम फिल को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है जबकि एमए के बाद छात्र सीधे पीएचडी कर पाएंगे।
  •  नई शिक्षा नीति में प्राइवेट यूनिवर्सिटी और गवर्नमेंट यूनिवर्सिटी के नियम अब एक होंगे। अब किसी भी डीम्ड यूनिवर्सिटी और सरकारी यूनिवर्सिटी के नियम अलग अलग नहीं होंगे।
  • नई शिक्षा नीति स्कूलों और एचईएस दोनों में बहुभाषावाद को बढ़ावा देती है। राष्ट्रीय पाली संस्थान, फारसी और प्राकृत व भारतीय अनुवाद संस्थान और व्याख्या की स्थापना की जाएगी।

भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का चुनावी एजेंडा था नई शिक्षा नीति लाने का। अभी तक इसको लेकर खूब चर्चाएं हैं। राज्य सरकारें और शिक्षा विशेषज्ञ लोग जहां समर्थन कर रहे हैं तो वहां इसका विरोध भी। जैसे कि नई शिक्षा नीति का अध्ययन करने और उसको लेकर विचार साझा करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित छह-सदस्यीय समिति के एक सदस्य ने कहा कि सभी राज्यों पर उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखे बिना एक शिक्षा प्रणाली लागू करना व्यावहारिक विचार नहीं है।

उन्होंने कहा,हमने रिपोर्ट लगभग तैयार कर ली है जिसे कुछ दिनों में सरकार को सौंपा जाएगा। मेरा विचार है कि 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में आप राज्यों की जरूरतों और आर्थिक स्थिति का विचार किये बिना सभी राज्यों पर एक समान शिक्षा नीति नहीं लागू कर सकते। जो मणिपुर में लागू हो सकता है, हो सकता है कि उसका बंगाल में कोई मतलब नहीं हो।

संस्थाओं और शिक्षा विशेषज्ञ की राय और विचार

शिक्षा विशेषज्ञ मालिनी घोष कहती हैं कि उनके लिए एक अहम टिप्पणी यह है कि जब देश कोरोना महामारी से त्रस्त है, जब संसद बन्द है तो सिर्फ कैबिनेट के बल पर गोपनीयता के साथ इस नीति को क्यों पारित किया जा रहा है?  ये सही है कि आम लोगों से ऑनलाइन सुझाव मांगे गए थे और ऑनलाइन में बहुत कम वह लोग जुड़ पाए जिनको सही में जुड़ना चाहिए था। बाल शिक्षा अधिकार कानून 2009 को इस नीति के अंदर बड़े ही सुनियोजित तरीके से बाहर रखा गया। इस कानून को सविंधान में मौलिक अधिकार के रूप में दर्ज किया गया है। बाल शिक्षा अधिकार कानून 2009 एक मौलिक अधिकार है जिसके आधार पर हम शिक्षा का हक कानूनी रूप से मांग सकते हैं। मतलब कि एक तरफ मना भी नहीं किया गया और दूसरी तरफ इसका जिक्र भी नहीं किया गया। न ही इसको प्राथमिकता दी गई जबकि कहीं कहीं पर इसका विरोध भी किया गया है। जैसे कि आंगनबाड़ी शिक्षा को ढांचे में लाया तो गया लेकिन बाल शिक्षा अधिकार कानून से नहीं जोड़ा गया जबकि विशेषज्ञों की यह मांग थी कि बाल शिक्षा अधिकार कानून को विस्तार करते हुए 6-14 साल तक की जगह 3-18 साल तक किया जाए।

इस नीति के अंदर सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर पढ़ाई करने के लिए जोर दिया गया है न कि संविधान पर आधारित। जबकि संविधान बराबरी का हक देता है और अगर हम सांस्कृतिक मूल्यों और रिवाजों के आधार पर पढ़ाई की बात करें तो सामाजिक, आर्थिक और जेंडर के नजरिए से सांस्कृतिक पाठ्यक्रम लड़कियों और हासिए में रहने वाले लोगों खासकर अनुसूचित जाति के खिलाफ हैं। जहां इनकी उम्मीदें शिक्षा के जरिये बहुत बढ़ गई थीं। जैसे कि शादी ही नहीं उसको पढ़ना भी है और पढ़ कर उनको आगे खुद का कैरियर भी बनाना है। सरकार की भी एक तरह की जिम्मेदारी बन गई थी कि बाल शिक्षा अधिकार कानून के अंदर वह बच्चों को ज्यादा से ज्यादा स्कूल में लाएं। जो कि अब इन सभी बिंदुओं में असर पड़ेगा।

मीना, जिला समन्वयक, सहजनी शिक्षा केन्द्र ललितपुर बताती हैं कि नई शिक्षा नीति 2020 के अंदर छोटे बच्चों की परीक्षा न कराना या स्थानीय भाषा को जगह देना बहुत ही अच्छा कदम है लेकिन सरकार इस नीति को अभी लाकर लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है जो इस समय मुद्दे चल रहे हैं जिससे कि सरकार अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से बच सके। इसी तरह शबीना मुमताज़, वरिष्ठ कार्यकर्ता, मानवाधिकार इकाई वनांगना बांदा का कहना है कि वह अपनी संस्था के अंदर लड़कियों महिलाओं और किशोरियों को शिक्षा के साथ-साथ उनके हक अधिकार की भी बात करते हैं। अब तक शिक्षा अधिकार कानून 2009 के तहत सरकार ने जहां ये कहा है कि शिक्षा के अंदर बच्चों को मिडडेमील के तहत खाना मिले, लड़कियों को पीरियड के दौरान साफ सफाई के प्रति जागरूक करना और आवश्यक वस्तु उपलब्ध कराना है जो कि उनके अधिकार से जुड़ी हैं। वह इस नीति के अंदर से गायब क्यों? सबसे बड़ा सवाल कि जब देश बीमारी, भुखमरी, बेरोजगारी से जूझ रहा है, स्कूल बंद है तो इस समय इस नीति को लागू करने की जरूरत क्यों है?

टिप्पणी और लेखक के विचार

New Education policy 2020

इस नीति को पढ़ने और समझने में टाइम लगेगा। हो सकता है अभी और इसमें फेरबदल हों। नीति के बारे में सबके विचार जानने के बाद ये सवाल सरकार के प्रति खड़ा होता है कि आखिरकार शिक्षा नीति बदलने में इतनी देरी क्यों हुई, जबकि जानकारों की राय है कि इसको दस से पंद्रह साल के अंदर बदलनी चाहिए? इसके लिए संसद में बहस क्यों नहीं हुई? जब देश में आर्थिक स्थिति इतनी खराब है तो इस नीति के लिए खर्च किया जाने वाला बजट बीमारी के लिए क्यों नहीं? क्या सरकार ‘नई शिक्षा नीति 2020’ में लोकसभा चुनाव 2022 का भविष्य देख रही है?