आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में देश भर में कुल 11,70,404 बच्चों की पहचान स्कूल न जाने वाले बच्चों के रूप में की गई है।
द्वारा लिखित – सुचित्रा
उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक संख्या उन बच्चों की दर्ज की गई है जहां बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। रिपोर्ट में यूपी सबसे पहले स्थान पर पाया गया जहाँ 7.84 लाख बच्चे स्कूल से बाहर हैं। केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने इसकी जानकारी कल सोमवार 9 दिसंबर 2024 संसद में दी थी। इसके अलावा दूसरे स्थान पर झारखण्ड और तीसरे स्थान पर असम राज्य शामिल है। आखिर क्या वजह है जो इतनी बड़ी संख्या का आंकड़ा हमारे सामने निकलकर आया? बावजूद इसके कि राज्य की सरकारें नई योजना और नई शिक्षा नीति पर काम करने का दावा करती आ रही है।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 11.70 लाख ऐसे बच्चे हैं जिनकी पहचान स्कूल न जाने वाले बच्चों के रूप में दर्ज की गई है। केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने निचले सदन में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में यह आंकड़ा लोकसभा में पेश किया।
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने कहा, “शिक्षा मंत्रालय का स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग (DoSE&L) PRABANDH (प्रोजेक्ट अप्रेजल, बजटिंग, अचीवमेंट्स और डेटा हैंडलिंग सिस्टम) पोर्टल का रखरखाव करता है। इसमें ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में स्कूल न जाने वाले बच्चों (OoSC) से संबंधित डेटा प्रदान और अपडेट करते हैं।”
आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में देश भर में कुल 11,70,404 बच्चों की पहचान स्कूल न जाने वाले बच्चों के रूप में की गई है।
तीन राज्यों का आंकड़ा जहां बच्चे स्कूल नहीं जाते
उत्तर प्रदेश – 7.84 लाख
झारखंड – 65,000
असम – 63,000 से अधिक
ये तो सरकारी आंकड़ा हैं जिनमें लाखों बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल नहीं जाते पर आखिर इन सब के पीछे क्या कारण हो सकते हैं। खबर लहरिया द्वारा स्कूलों पर की गई रिपोर्ट से स्कूल जाते बच्चों में कमी आने की वजह का लगभग पता चलता है। उत्तर प्रदेश जहां संख्या लाख से ऊपर है और सबसे ज्यादा भी है। यूपी के ऐसे कई जिलें हैं जहां विद्यालय तो है, पर स्कूलों की हालत, स्कूल में टीचर का आभाव, उच्च माध्यमिक विद्यालय का न होना ऐसे अनगिनत कारण हैं जिनकी वजह से बच्चे पढ़ना तो चाहते हैं, स्कूल भी जाना चाहते हैं लेकिन इन सब कारणों से नहीं जा पाते हैं। ऐसे कुछ जिलें हैं जहां के स्कूलों की हालत के बारे में इस रिपोर्ट में बताया गया है।
स्कूल के रास्ते का खराब होना : गड्ढों से भरी सड़क
महोबा जिले के कबरई से पहरा तक लोगों का आना-जाना मुश्किल पड़ रहा है | वैसे तो रोड खराब हुए 6 साल हो गए हैं, लेकिन 2 साल से हालत ज़्यादा ही खराब हो गई है जिससे बच्चों की पढ़ाई तक छूट गयी है। राधा पहरा गांव की रहने वाली हैं। कहती हैं कि, जिनके पास पैसे हैं वो अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए बाहर भेज देते हैं पर जिनके पास नहीं हैं वो इसी गांव में पड़े हैं क्या करें?
लोक निर्माण प्रांतीय खंड सहायक अभियंता इ.रघुवीर ने मौखिक रूप से बताया कि यह रोड 2016-17 में बनी थी, जिसकी चौड़ाई 5 मीटर थी। अधिक ट्रक चलने और बारिश के भारी प्रकोप से रोड में बहुत बड़े-बड़े गड्ढे हो गये हैं। बीते वर्ष 2023-24 में रोड की लंबाई 10 किलोमीटर एवं चौड़ाई 7 मीटर करने की मांग स्वीकृत हो गई है। बजट की प्राप्ति होते ही रोड के निर्माण का कार्य शुरू कराया जायेगा।
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चित्रकूट जिलें में जर्जर स्कूल
चित्रकूट में ऐसे उच्च प्राथमिक विद्यालय में न तो बाउंड्री है और न ही विद्यालय मज़बूत है। छत और दीवार दोनों जर्जर है, इतना की कभी-भी टूट कर गिर जाए। यह हालत चित्रकूट जिले के रामनगर ब्लॉक के गांव कोल्हुवा में आने वाले उच्च प्राथमिक विद्यालय की है।
यहां पढ़ने वाले बच्चे रंजीत व अंजना बताते हैं, वे तीन साल से इस स्कूल में पढ़ रहे हैं। यह तब से ही जर्जर है। जब कमरे में बैठते हैं तो डर लगता है कि कहीं छत न गिर जाए। जब बारिश होती है तो छत इतना से इतना पानी टपकता है कि बैठने की जगह नहीं रहती। पूरी कॉपी-किताब भीग जाती है। कपड़े भीग जाते हैं पर स्कूल में कोई सुधार नहीं हुआ। आधा दिमाग पढ़ाई में तो आधा इस बात पर होता है कि कहीं उन पर छत न गिर जाए।
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स्कूल दूर होने की वजह से बच्चे रेलवे ट्रैक को पार करने को मजबूर
उत्तर प्रदेश के अंबडेकर नगर रेलवे क्रॉसिंग को पार कर के बच्चों को स्कूल तक पहुंचना होता है। शिल्पा स्कूल जाती हैं और बताती हैं कि “इधर से रास्ता पास पड़ता है। स्कूल जाने का रास्ता काफी लम्बा है तो स्कूल जाने में देर न हो जाए इसलिए यहां से जाते हैं। जब भी यहां निकलते हैं तो हमेशा यही डर लगता है कि कहीं कोई दुर्घटना न हो जाए।”
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विद्यालय में बच्चों के लिए पानी की कोई व्यवस्था नहीं, बच्चे गन्दा पानी पीने को मजबूर
चित्रकूट के धवाड़ा गांव के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के परिसर में हैंण्डपम्प और बोर से गन्दा पानी निकल रहा है जिससे बच्चों को बहुत परेशानी हो रही है। बच्चे घर से बाटल में पानी लाते है। मगर खाना खाने के बाद हाथ और थाली धोने के लिए बच्चें पास के तालाब जाते हैं जहा घटना का डर बना रहता है।
वाराणसी में सरकारी स्कूलों में शौचालय की कमी
वाराणसी के चोलापुर ब्लॉक के नियार गाँव के एक विद्यालय में 257 बच्चों को शौचालय की सुविधा नहीं है। बच्चों का कहना है कि शौचालय तो है लेकिन पानी की सुविधा नहीं है और ना ही बैठने लायक है। माँ का कहना है कि सरकार की बातें कागज पर ही हैं, स्कूल के मास्टर भी ऐसा ही करते हैं। प्रधानाचार्य का कहना है कि शौचालय तो है लेकिन पाईप टुटा है। ब्रीफ़ में, विद्यालय में शौचालय की सुविधा नहीं है, जिससे बच्चों को परेशानी हो रही है।
ये सारी समस्याएं बच्चों को स्कूल भेजने में एक बड़ी बाधा बनती साफ़ दिखाई दे रही है। जमीनी स्तर पर इन समस्याओं का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है, और इस कारण लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित रह रहे हैं। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है।
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