खबर लहरिया Blog चित्रकूट: जर्जर स्कूल में पढ़ रहे बच्चे, हमेशा किसी घटना के होने का रहता है डर

चित्रकूट: जर्जर स्कूल में पढ़ रहे बच्चे, हमेशा किसी घटना के होने का रहता है डर

स्कूल में चार कमरे हैं। पूरा स्कूल जर्जर है। पता नहीं कब गिर जाये। कुछ लोग डर की वजह से भी अपने बच्चों को स्कूल पढ़ने नहीं भेजते।

उच्च प्राथमिक विद्यालय में न तो बाउंड्री है और न ही विद्यालय मज़बूत है। छत और दीवार दोनों जर्जर है, इतना की कभी-भी टूट कर गिर जाए। यह हालत चित्रकूट जिले के रामनगर ब्लॉक के गांव कोल्हुवा‌ में आने वाले उच्च प्राथमिक विद्यालय की है।

यहां पढ़ने वाले बच्चे रंजीत व अंजना बताते हैं, वे तीन साल से इस स्कूल में पढ़ रहे हैं। यह तब से ही जर्जर है। जब कमरे में बैठते हैं तो डर लगता है कि कहीं छत न गिर जाए। जब बारिश होती है तो छत इतना से इतना पानी टपकता है कि बैठने की जगह नहीं रहती। पूरी कॉपी-किताब भीग जाती है। कपड़े भीग जाते हैं पर स्कूल में कोई सुधार नहीं हुआ। आधा दिमाग पढ़ाई में तो आधा इस बात पर होता है कि कहीं उन पर छत न गिर जाए।

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                                                                                                                   जर्जर उच्च प्राथमिक विद्यालय 

कक्षा 6 व कक्षा सातवीं में पढ़ने वाले छात्र एक ही कमरे में बैठते हैं क्योंकि अन्य कोई कमरा ऐसा है नहीं जहां बैठा जा सके। ऐसे में वह पढ़ भी नहीं पाते।

गांव की आबादी यूं तो तीन हज़ार है लेकिन जो स्कूल बना है, वह मजरा की आबादी के एक हज़ार के अनुरूप बना है।

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बीआरसी में शिकायत के बाद भी समाधान नहीं

                                                                                                                                         स्कूल की दीवारों ने आ चुकी है दरार

स्कूल के प्रधानाध्यापक इंचार्ज दीपक कहते हैं, जर्जर स्कूल के वजह से जो डर बना हुआ रहता है उसी की वजह से कई अध्यापक ट्रांसफर करवाकर चले गए। स्कूल में कुल 50 बच्चे हैं।

ग्रामपंचायत सदस्य सुमन ने खबर लहरिया को बताया, स्कूल का निर्माण 2009 में हुआ था। 2023 में अभी तक वह तीन बार स्कूल की स्थिति को लेकर के बीआरसी में लिखित दे चुकी हैं यह उजागर करते हुए कि बच्चों की पढ़ाई के लिए व्यवस्था नहीं है। अधिकारियों द्वारा बस कह दिया जाता है कि करवा दिया जायेगा पर अब तक कुछ नहीं हुआ।

आगे कहा कि स्कूल में चार कमरे हैं। पूरा स्कूल जर्जर है, कब गिर जाये। कुछ लोग डर की वजह से अपने बच्चे नहीं भेजते।

रामनगर के संकुल प्रभारी प्रमोद द्विवेदी कहते हैं, वह स्कूल की समस्या को लेकर बीआरसी के साथ मीटिंग करेंगे। इसके बाद स्कूल बनेगा। उन्होंने इस बारे में अपनी तरफ से डीएम को भी लिखित में दिया है।

ग्रामीण स्तर पर अमूमन इस तरह की समस्या देखी जाती है जबकि सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए अलग से बजट तैयार पास किया जाता है। फिर यह बजट, विकास का काम कहां पीछे रह जाता है?

इस खबर की रिपोर्टिंग सुनीता देवी द्वारा की गई है। 

 

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