भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी बनाम युनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में (15 अप्रैल 2014 AIR2014SC1863, ‘नालसा’) भारतीय संविधान के तहत ट्रांसजेंडर के रूप में पहचान रखने वाले व्यक्तियों को ‘थर्ड जेंडर’ घोषित किया था।
भारत के उच्च न्यायालय ने आज 15 अप्रैल के दिन साल 2014 में ट्रांसजेंडर समुदाय को ‘थर्ड जेंडर’ के रूप में घोषित किया था। कहा, भारत के संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकार उन पर भी समान रूप से लागू होंगे। इसके साथ ही ट्रांसजेंडर समुदाय को पुरुष, महिला या ‘थर्ड जेंडर’ के रूप में पहचान का अधिकार दिया।
बता दें, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी बनाम युनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में (15 अप्रैल 2014 AIR2014SC1863, ‘नालसा’) भारतीय संविधान के तहत ट्रांसजेंडर ( National Legal Services Authority vs. Union of India) के रूप में पहचान रखने वाले व्यक्तियों को ‘थर्ड जेंडर’ घोषित किया था।
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यह अधिकार जो कानून में है, मौलिक अधिकारों में है, क्या वह समाज में है? क्या यह अधिकार धरातल पर उन्हें पहचान दे पा रहे हैं? क्या ये कानूनी अधिकार उन्हें गरिमा व आत्मीयता प्रदान कर पा रहे हैं? बिना किसी चिंता के खुले रूप से जीवन जीने दे रहे हैं?
सामाजिक जीवन व कार्यकारी कागज़ों में उन्हें कितना अपनाया गया है? समाज जो खुद को पुरुष और स्त्री से परे कुछ नहीं समझता, वहां उनका घर व पहचान क्या मालूम है?
सवाल करिये खुद से!
आप अपने परिवेश में ‘थर्ड जेंडर’ व इससे परे क्या कोई पहचान देख पाते हैं? वह पहचान जो सिर्फ पुल्लिंग, स्त्रीलिंग व थर्ड जेंडर तक सीमित नहीं है। वह पहचान जो हर एक व्यक्ति की अपनी होती है। वह पहचान जिसके तहत कई लोगों को अधिकार मिले हैं तो कई आज भी संविधान में अपने अधिकारों को खगोल रहे हैं।
विचार करिये!
कानून सिर्फ नियम बना सकते हैं लेकिन उसे अपनाना वह किसकी ज़िम्मेदारी है? वह भी वो नियम जो किसी की पहचान से जुड़ा हुआ है। वह अधिकार जो बेहद लंबी लड़ाई के बाद संविधान में जोड़े गए हैं, सोचिये!
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