खबर लहरिया Blog ‘सर्वनाम’ से पहचान की खोज

‘सर्वनाम’ से पहचान की खोज

“सर्वनाम एक पहली पहचान है किसी भी इंसान की, जो हम बात करने से पहले इस्तेमाल करते हैं। जब समुदाय का कोई भी व्यक्ति बात करता है तो उसके सर्वनाम उसके बारे में उसकी आधी पहचान बता देते हैं और वह चाहता है कि मुझे आप इस नाम से, इस पहचान से बुलाओ।”

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रिपोर्टिंग व लेखन – संध्या 

किसी को किस तरह से पुकारा जाना चाहिए या कोई किस तरह से अपने नाम या अपनी पहचान को सुनना चाहते हैं, इस पर थोड़ा विचार करें। अकसर हम इन बातों को सोचे बिना बड़े ही सीमित तौर पर सिर्फ ‘ता, ती’ का इस्तेमाल करते हैं जोकि सिर्फ पुल्लिंग या स्त्रीलिंग के रूप में पहचाने जाते हैं। ऐसे में सर्वनाम की भूमिका सबसे ज़्यादा बढ़ जाती है जो आपको बताती है कि आप किसी व्यक्ति को किस तरह से पुकार सकते हैं, उस पहचान के साथ जो वे व्यक्ति अपने लिए, अपने बारे में महसूस करते हैं।  

आज हर कोई अपनी पहचान और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और इस पहचान की लड़ाई में नाम और नाम के साथ आने वाले सर्वनाम एक व्यक्ति को कहीं न कहीं उसकी पहचान होने की संतुष्टि देते हैं, उसके बारे में उसे और अन्य लोगों को भी बताते हैं। 

आज यही पहचान की लड़ाई LGBTQIA+ ( lesbian, gay, bisexual, transgender, queer, questioning, intersex, asexual) समुदाय लड़ रहे हैं। चल रहे प्राइड मंथ के महीने का मुख्य उद्देश्य समुदाय को रोशनी में लाने के साथ-साथ उनकी बातों को आगे रखना है। पर समाज ने जो लिंग को लेकर एक ढर्रा अपना रखा है, वह आज इस पहचान की लड़ाई में सबसे बड़ी चुनौती है। 

ऐसे में अगर हम इस पहचान की लड़ाई में समुदाय का साथ देना चाहते हैं तो सबसे अहम बात यह जानना है कि हम समुदाय की पहचान को किस तरह से देख रहे हैं, हम उनके बारे में किस तरह से संवादों को रख रहे हैं और यह भी की इस दौरान कहीं हम उनकी पहचान को बदल तो नहीं रहे। 

ऊपर मैंने कई जगह “हम” का इस्तेमाल किया तो हमें खुद के देखने से पहले यह भी देखना है कि वे खुद को कैसे देख रहे हैं, देखते हैं, रखना चाहते हैं और फिर हम उन्हें फॉलो कर सकते हैं। कई बार हमसे यही गलती हो जाती है कि किसी व्यक्ति से पूछे बिना हम खुद ही उस व्यक्ति के संदर्भ में विचार बना लेते हैं, जोकि सबसे बड़ी समस्या है। 

ऐसे में सर्वनाम यानी pronoun यहां सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं। एक व्यक्ति की पहचान के बारे में बात करते समय या लिखते समय सही सर्वनामों का इस्तेमाल बेहद ज़रूरी है। किसी के भी द्वारा गलत सर्वनामों का इस्तेमाल किसी व्यक्ति की पहचान व उसे चोट पहुंचा सकता है, जिसे संवेदनशीलता के साथ समझना, जानना और इस्तेमाल किया जाना ज़रूरी है। 

पहचान और सर्वनाम के बीच कई ऐसे बिंदु हैं जो इन्हें प्रभावित करते हैं जिसमें भाषा का इस्तेमाल, अभिजात्यवाद, शिक्षा प्रणाली, जेंडर विशिष्ट शब्द आदि जिन पर हम एक-एक करके चर्चा करेंगे। 

इसके बारे में बेहतर तौर पर जानने के लिए हमने दिल्ली के रहने वाले कबीर मान से बात की। 30 वर्षीय कबीर एक ट्रान्समैन हैं जो सेक्स व जेंडर को लेकर काम करते हैं। अपने जीवन में अपनी पहचान और उसके अस्तित्व को लेकर उन्होंने भी अपनी एक लड़ाई लड़ी है जो आज भी ज़ारी है। उन सभी लोगों की तरह जो समाज के ढांचे और लिंग के विवरण से परे अपनी पहचान रखते हैं और उसकी खोज कर रहे हैं। 

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सर्वनाम व पहचान 

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कबीर कहते हैं, आपका कनेक्शन सबसे पहले आपके शरीर आपकी पहचान से बनता है, जो उनका नहीं बन पा रहा था। उनका जन्म एक लड़की के रूप में हुआ था। उनकी यह पहचान उन्हें हमेशा गड़बड़ लगी। 

आगे कहा, “कुछ कहने, कुछ व्यक्त करने, सबके लिए भाषा चाहिए। भाषा के अंदर हर चीज़ के लिए सर्वनाम है, जैसे कैसा है, कैसी है तो इसमें पुलिंग और स्त्रीलिंग भी जुड़ा हुआ है। मेरा जो सर्वनाम के साथ रिश्ता रहा है, मुझे एक ओर यह लगता  है कि यह बहुत न्यूट्रल है, ठीक है कुछ भी कह दिया जाए। एक ओर यह तकलीफ वाला भी लगता है। 

तकलीफ वाली चीज़ है पहचान। जब कोई ट्रांस और क्वीर (queer)  समुदाय से कोई भी व्यक्ति परिवर्तन यानी transition करता है तो gay, lesbian के सर्वनाम जेंडर न्यूट्रल रखते हैं लेकिन ट्रांस व्यक्ति अपने सर्वनामों को लेकर काफी विशिष्ट होते हैं क्योंकि वह अपनी एक पहचान से दूसरी पहचान में आ रहे होते हैं। सफेद से काले में, काले से सफ़ेद में आ रहे हैं। वह अपने आपको ग्रे में भी नहीं डालना चाहते। 

अगर वह कहते हैं कि मैं काला हूँ तो मैं काला ही हूँ तो वहां पर भाषा पूरी तरह से बदलती है। आपका नाम, आपकी पहचान पूरी तरह से बदल गई। आप लड़की थे पर अब लड़का हो। मैं लड़का बन नहीं रहा, मैं लड़का ही हूँ। मैं पैदा लड़का ही हुआ था लेकिन मेरा शरीर लड़की का था जिसे अब मैं बदल रहा हूँ। 

आप चाहें मुझे कैसे भी देखो पर मैं वो नहीं हूँ। मैं बदल नहीं रहा हूँ, मैं आपको अपनी असली पहचान बता रहा हूँ। मेरा नाम यह है। आप मुझे ता, ते, ती है तो आप मुझे इस तरह से पुकारें।”

सर्वनाम का इस्तेमाल और पहचान का डर 

कबीर कहते हैं, सर्वनाम मुझे बहुत देर से समझ आये, इसका एहसास तब होता था जब मुझे कोई लड़की की पहचान में बुलाता था तब मुझे लगता था कि नहीं मैं ये नहीं हूँ। बहुत असहज लगता था। मैं बार-बार करती हूँ, करूंगी बोलना टालता था। 

नाम या अपनी पहचान का जो लोग अपनी भाषा से व्यक्त करते थे, मैं उसे कहने से बचता था। 

जब पहचान बदली तो सर्वनाम भी बदले और सही सर्वनाम भी बताये। मैंने दो या ढाई साल पहले अपने नाम के साथ अपने सर्वनाम बदले और सोशल मीडिया पर अपने सर्वनाम डाले और अपने लोगों को इस बारे में बताया। 

कई लोगों को सर्वनाम या उसके बारे में नहीं पता जिसमें मेरे माँ-बाप व दोस्त शामिल है लेकिन जब मैं अपना नाम बोलता हूँ तो लोगों को समझ आता है कि इस नाम को कैसे बोला जाएगा। कबीर कहां जा रही है, यह नहीं कहा जाएगा, कहा जा रहा है कहा जाएगा। 

आपके बताए हुए जेंडर को या जब आपके बताये हुए सर्वनाम को कई लोग गंभीर रूप से नहीं लेते। 

“सर्वनाम एक पहली पहचान है किसी भी इंसान की, जो हम बात करने से पहले इस्तेमाल करते हैं। जब समुदाय का कोई भी व्यक्ति बात करता है तो उसके सर्वनाम उसके बारे में उसकी आधी पहचान बता देते हैं और वह चाहता है कि मुझे आप इस नाम से, इस पहचान से बुलाओ।”

तो बहुत तरह की पहचान है जिसमें वह/ उसे, वे/उन्हें, वह/वे (she/her, they /them (neutral) , he/him, she/they, he/they, she/he/they, Ze, zir, zie) इत्यादि हैं। वहीं देखा जाए तो वे/उन्हें (they /them) को हमेशा इज़्ज़त वाले शब्द के रूप में देखा जाता है।

भाषा व सर्वनाम में अभिजात्यवाद/ Classism 

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सर्वनाम अलग-अलग इंसान के अलग-अलग व्यक्तित्व को बताते हैं। भाषा और सर्वनाम की बात करते हैं तो उसमें भी हमें कई जगह classism यानी अभिजात्यवाद देखने को मिलता है। अंग्रेजी में अब Ze, zir, zie and ze सर्वनाम भी जुड़ गए हैं जिसे neo pronouns के रूप में जाना जाता है। नियोप्रोनाउन क्वीर, जेंडर नॉन-कन्फोर्मिंग और ट्रांस लोगों को सहज और दृश्यमान बनाते हैं। यह उन्हें अपनी लैंगिक अभिव्यक्तियां सामने रखने का अवसर देता है। 

इन्हें वह/उसे, वह/उसे और वे/वे (he/him, she/her and they/them) की तरह ही समुदाय में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इन सर्वनामों की पहुंच क्वीर समुदायों तक नहीं है। यह सिर्फ उन्हें पता है जो उस class/ वर्ग से संबंध रखते हैं, जिन्हें भाषा का ज्ञान व समझ है और ये सब तटस्थ शब्द (neutral term) हैं, पर भारतीय समुदाय में अभी इसका उतना इस्तेमाल नहीं होता। 

कई बार व्यक्ति बाहरी स्वरूप को देखकर ही लिंग को लेकर अपनी धारणा बना लेते हैं कि सामने वाले कौन है, जो समझ उन्हें समाज से मिली है। लेकिन जब हम जेंडर फ्लूइड की बात करते हैं तो यह सिर्फ पुरुष या महिला तक सीमित नहीं है। ऐसे में संकुचित विचारधारा एक व्यक्ति की पहचान को सबसे ज़्यादा चोट पहुंचाने का काम करती है। 

कई बार लोग आपके बताने के बावजूद भी आपको misgender करते हैं। बात को हलके में लेते हुए मज़ाक बनाते हुए कहते हैं कि उन्हें समय लगेगा या उन्हें नहीं पता। 

कबीर कहते हैं,इसका मतलब यह है कि आप सामने वाले व्यक्ति की पहचान को नकार रहे हो यह कहकर कि मुझे तो वक्त लगेगा। आपको जानना और समझना पड़ेगा।”

जेंडर न्यूट्रल भाषाओं की खोज 

आज कई लोग एलजीबीटीक्यूएआई+ (LGBTIQA+) समुदाय को पहचानते हैं पर ये लोग या तो बहुत अपर क्लास हैं या ये वे हैं जिन तक जानकारी की पहुंच है। ऐसे में शिक्षा प्रणाली का रोल भी अहम बन जाता है कि अगर हमें समुदाय के बारे में सभी को बताना है तो वह किस तरह से बताया जाएगा। आज तक हमने जो भी किताबें पढ़ी, उसमें पहचान सिर्फ एक महिला व पुरुष की ही रही, जिन्हें करता है या करती है करके पुकारा व पढ़ा गया। कभी यह ख्याल ही नहीं आया कि ‘ती, ता’ से हटकर या इससे परे भी कोई पहचान हो सकती है। 

शिक्षा का जो पैटर्न है उसमें बच्चों को सर्वनाम के बारे में बताना काफी मुश्किल है। 

कबीर कहते हैं,हमारे पास जो किताबे हैं वो binary specific है, ये पितृसत्ता को लेकर चलने वाली है। जो बच्चों को कॉमिक दी जाती है अगर वो जेंडर न्यूट्रल हो जिसमें सर्वनाम की बात हो, तो स्कूल के अंदर ये भाषा उभर सकती है।”

हम संज्ञा, सर्वनाम तो बताते हैं लेकिन ये कहां इस्तेमाल होते हैं, यह नहीं बताते हैं। किताबी ज्ञान का व्यवहारिक ज्ञान होना ज़रूरी है। 

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पहचान हेतु एक से ज़्यादा सर्वनामों का इस्तेमाल 

कई व्यक्ति अपने लिए एक से ज़्यादा सर्वनामों का भी इस्तेमाल करते हैं, ऐसे में सामने वाला व्यक्ति जिनसे भी उन्हें बात करनी है, वह किसी सुरक्षित स्थान या ऐसी जगह जहां सिर्फ वे दोनों हो, उनके सर्वनामों के बारे में पूछ सकते हैं। 

साथ ही क्योंकि एक व्यक्ति एक से ज़्यादा सर्वनामों का इस्तेमाल कर रहे हैं तो यह पूछा जा सकता है कि वे किस सर्वनाम का ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं और किस तरह से पुकारा जाना पसंद करते हैं। एक से ज़्यादा सर्वनामों के उदारहरण कुछ इस तरह से है: -she/he/they, they/she, he/they, Em/zie/they, zie/they आदि। 

एक से ज़्यादा सर्वनामों के इस्तेमाल करने की एक वजह यह भी होती है कि यह जेंडर फ्लूइड होते हैं और इसकी मदद से व्यक्ति कई जेंडर्स व भावनाओं के बीच अपने आपको रख पाते हैं। 

साथ ही उन्हें यह भी लगता है कि एक सर्वनाम उनकी पहचान को व्यक्त नहीं कर पाते हैं। वह जेंडर के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं जब तक उन्हें यह महसूस नहीं होता कि वह इसमें अपनी पहचान को महसूस कर रहे हैं। 

आप क्या कर सकते हैं? 

जब भी आप किसी का नाम पूछते हैं तो उस समय खुद ही ये सोच लेने से की उनका लिंग कौन-सा है या हो सकता है, आपके द्वारा नाम के साथ ही यह पूछना बेहतर होगा कि वह अपने नाम के साथ कौन-से सर्वनाम या सर्वनामों का इस्तेमाल करते हैं। इससे आप किसी की पहचान को ठेस पहुंचाने से भी बचेंगे। साथ ही इस चीज़ को रोज़ाना के व्यवहार में लाना बहुत ज़रूरी है। यह आदत जेंडर बाइनरी को चुनौती देने में अहम भूमिका निभाएगी। 

अतः, सभी को मिलकर एक ऐसे शब्दकोष बनाने की ज़रूरत है जो जेंडर न्यूट्रल हो, जहां पर यह समझ पैदा की जाए की भाषा को जेंडर न्यूट्रल किस तरह से बनाया जा सकता है। साथ ही भाषा के इस्तेमाल के दौरान किस तरह से सर्वनामों का इस्तेमाल सामने वाले व्यक्ति की सहूलियत व पहचान के अनुसार इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 

इसके अलावा उन शब्दों, भाषाओं, सर्वनामों को खोजने, उनकी तलाश करने की ज़रूरत है जिससे एक व्यक्ति की पहचान सिर्फ समाज द्वारा स्थापित सीमित लिंग की पहचान तक न रह जाए। हर एक व्यक्ति को संवेदशील होने की ज़रूरत है और इस पर बात करने, समझने के साथ-साथ उसे व्यव्हार में भी लाने की ज़रूरत है। 

 

Illustrations by Jyotsana Singh

 

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