नमस्कार दोस्तों, मैं हूं मीरा देवी, खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ। मेरे शो राजनीति रस राय में आपका बहुत बहुत स्वागत है। शुरुवात करूं कि उससे पहले मुझे आपके सब्सक्राइब, लाइक, कमेंट और शेयर वाली बात करने की सख्त जरूरत है। उसके बगैर इस शो को आगे ले जा पाना मुश्किल होगा। तो साथियों एक बार फिर से हाजिर हूं मैं, आपके साथ राजनीति की चर्चा को लेकर। राजनीति को लेकर आप और आपके आसपास किस तरह की चर्चाएं हैं।
पिछले हफ्ते मैं मध्य प्रदेश में कवरेज पर थी। आप जानते ही होंगे या नहीं जानते तो बता दूं कि मध्य प्रदेश के पंचायत चुनावों में करीब 2 साल से लेट लपेट चल रही थी। अब वहां पर पंचायत चुनाव शुरू हो गए हैं। राज्य के 52 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव तीन चरण में होंगे। प्रथम और द्वितीय चरण के चुनाव के लिए 13 दिसंबर से नामांकन पत्र भरे जा रहे हैं और जमा करने की अंतिम तारीख 20 दिसंबर रखी गई है। उम्मीदवार 23 दिसंबर तक नाम वापस ले सकेंगे। 23 दिसंबर को ही निर्वाचन चिन्हों का आवंटन किया जाएगा। प्रथम चरण का मतदान 6 जनवरी, द्वितीय चरण का मतदान 28 जनवरी और तृतीय चरण का 16 फरवरी को सुबह 7:00 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक किया जाएगा।
सबसे बड़ी बात तो ये रही कि लोगों ने रिपोर्टिंग के दौरान मुझे बताया कि हर पंचवर्षीय सरपंच चुनाव के मतदान वाला दिन जितना नजदीक आता है उतना ही सरपंच दारू मुर्गा की पार्टी कराकर लोगों का वोट अपने नाम कर लेते थे लेकिन इस बार इस तरह की गलती वह नहीं करेंगे। लोग काफी गुस्से में भी थे क्योंकि अब तक में वहां पर जितने भी सरपंच बने सबने उस गांव का विकास नहीं किया। लोग कह रहे है कि वह उसी को सरपंच बनाएंगे जो मतदाता परिषद की शर्तों पर काम करेगा। मतदाता परिषद का निर्माण गांव वाले मिलकर करेंगे।
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ये तो हो गई कहने की बातें क्योंकि जब लोग गुस्से में हैं तो कुछ भी कह सकते हैं लेकिन समय तो आने दीजिए। मतदाता भी गांव से हैं और सरपंच भी। पता नहीं कब किस तरह की हवा चल जाए और सब लोग उसी में बह जाएं। मेरी रिपोर्टिंग का इतने सालों का अनुभव ये कहता है कि मतदान के एक दिन पहले वाले चौबीस घण्टे में जो बदलाव होता है उसमें काबू कर पाना और कहने में बहुत बड़ा फर्क है। अच्छी बात होगी कि अगर काबू कर लें तो शायद यह स्थिति ही बदल सकती है।
मैं पहेली नहीं बुझा रही हूं आपको स्पष्ट बताती हूँ कि सरपंच मतदान के एक दिन पहले दिन और रात मतदाता को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। महिलाओं के लिए साड़ी चूड़ी तो पुरुषों के लिए दारू मुर्गा की पार्टी देने के मामले खूब देखे गए हैं। सरपंच द्वारा पैसे भी बांटे जाने के केस सामने आए हैं। अब ऐसे में आप ही बताओ अगर सरपंच पहले से आपके लिए इतना कुछ कर रहा है तो वह उसको चुकता तो करेगा ही, वह भी ब्याज सूद लगाकर। अब इसमें दोनों तरफ से गलतियां हैं और दोनों को सुधारना भी चाहिए। आप से ही जानना चाहूंगी कि क्या ये व्यवस्था बदलेगी? कौन बदलेगा और किसको बदलना चाहिए?
साथियों इन्हीं विचारों के साथ मैं लेती हूं विदा, अगली बार फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ। अगर ये चर्चा पसन्द आई हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। लाइक और कमेंट करें। अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं तो चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें। बेल आइकॉन दबाना बिल्कुल न भूलें ताकि सबसे पहले हर वीडियो का नोटिफिकेशन आप तक सबसे पहले पहुंचे। अभी के लिए बस इतना ही, सबको नमस्कार!
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