खबर लहरिया Blog माहवारी को लेकर अंधविश्वास से वास्तविकता तक छोटी का सफ़र

माहवारी को लेकर अंधविश्वास से वास्तविकता तक छोटी का सफ़र

समाज में कई बातों को लेकर Tabbo फैला हुआ है जिसे समाज में अन्धविश्वास का नाम दिया जाता है। लोगों द्वारा फैलाई गयी भ्रांतियों के अनुसार कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें आप खुलकर नहीं बोल सकते। उसे छुपाना होता है और यहीं से अन्धविश्वास की जड़ों की शुरुआत होती है। धीरे-धीरे यह अन्धविश्वास लोगों के जीवन पर असर डालने लगता है। उनके जीवन को इतना प्रभावित कर देता है कि उनका मानसिक स्वास्थ्य भी डामा-डोल हो जाता है।

                                                                                                                                 credit – News18

आज हम बात कर रहें हैं, ‘मासिक धर्म यानि माहवारी’ के बारे में, जो हर एक महिला के जीवन का एक महत्वपूर्ण जीवन चक्र होता है पर इस जीवन चक्र के बारे में न तो उसे खुलकर समझाया जाता है और न ही उसकी महत्वता बताई जाती है। परिणाम यह होता है कि जानकारी का आभाव अंधविश्वास का रूप ले लेता है और फिर हम धीरे-धीरे हमारे साथ हमारे जीवन में हो रही सभी घटनाओं को अंधविश्वास से जोड़ने लगते हैं। कही-सुनी बातों पर विश्वास करने लगते हैं।

यह कहानी है छोटी की कि किस तरह जानकारी के आभाव की वजह से वह माहवारी को अंधविश्वास की तरह मानने लगी। समाज द्वारा फैलाई गयी झूठी बातों ने उसे और उसके जैसी कई लड़कियों को अपने शरीर के अंदर होते महत्वपूर्ण बदलाव की वास्तविकता से दूर कर दिया। लेकिन छोटी के अंदर के जुझारू सवालों ने उसे अंधविश्वास से उठकर वास्तविकता और खुद तक पहुंचाने का काम किया।

ये भी पढ़ें – नग्न्ता लिबास नहीं ओढ़ती और मैं नग्न हूँ

अंधविश्वास से वास्तविकता तक

                                                                                                              साभार – टाइम्स नाउ

आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था, आज सुबह जब छोटी जो देर से सो कर उठती थी वो आज सबसे पहले उठ गई थी। छोटी के पापा को अजीब लगा जो चिल्लाने पर भी उठती नहीं थी, इतना डांटने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता था वो आज अचानक इतनी सुबह उठकर नहा धोकर तैयार कैसे हो गई? आज तो कोई त्योहार या खास दिन भी नहीं है।

पापा की तो बात अलग थी पर मां भी हैरान थी। छोटी के घर में 5 लोग रहते थे। उसके पापा, मां, दादा, और उसके बड़े भैया। भैया 16 साल के थे और छोटी 13 साल की थी। छोटी रोज स्कूल जाया करती थी। अपने भैया से रोज लड़ाई किया करती। हर चीज अपनी मर्ज़ी से किया करती। जिस चीज के लिए मां-पापा मना करते थे वही करती। वह अपने दादा जी से बहुत प्यार करती थी। स्कूल में दिन के भोजन के बाद कुछ मीठा खाने को मिलता तो वह उसमें से बचाकर अपने दादा के लिए ले आती थी।

छोटी अपनी माँ से काफी सवाल करती थी, इतना ज़्यादा की माँ के सिर में दर्द हो जाता था लेकिन उसे उसके सवालों का जवाब कभी नहीं मिलता।

छोटी की माँ रोज़ शाम को पूजा करती थी लेकिन वह छोटी को रोज शाम को पूजा करने के बाद भोग लगने के बाद भगा देती थी। छोटी यही बातें मन में सोचते – सोचते स्कूल से घर आ रही थी कि आज वो चुपके से भगवान को भोग लगाते देखेगी। पर आज मां ने पूजा ही नहीं की क्योंकि उनका पेट दर्द कर रहा था।

छोटी ने पूछा कि मां आपने आज पूजा क्यों नहीं किया? मां ने बताया कि उनका पेट दर्द हो रहा है। तबयत ठीक नहीं है तो वो कुछ दिन तक पूजा नहीं करेंगी।

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। चंचल और शैतानी करने वाली छोटी शांत रहने लगी। रोज स्कूल जाने वाली छोटी का आज स्कूल जाने का मन नहीं कर रहा था। छोटी का सपना था कि वह बड़ी होकर अफसर बनेगी। पर वो अच्छा महसूस नहीं कर रही थी। ठीक न होने पर भी पापा के डर से उसे स्कूल जाना पड़ा। आज भैया से लड़ाई भी नहीं की।

उसकी एक सहेली थी रीता जो उसी की कक्षा 8 में साथ ही पढ़ती थी। छोटी के सही समय पर स्कूल पहुंचने पर वह बहुत खुश थी पर छोटी आज एकदम उदास थी। रीता छोटी से पूछने लगी तुमको क्या हुआ? आज बड़ी उदास सी लग रही हो।

                                                                                                        फोटो साभार – intimina

छोटी सहमी हुई आवाज में बोली मुझे अजीब महसूस हो रहा है। कुछ चक्कर-सा और कुछ शरीर में दर्द-सा, कल रात से मुझे बेचैनी हो रही है।

तभी एकाएक उसके बगल की लड़की ने जवाब दिया कि कल तुमने जो स्कूल के पीछे इमली के पेड़ पर चढ़कर इमली चुराई थी ना, मैंने बोला भी था, मना भी किया था, पर तुम लोग माने नहीं। उसमें कई सालों से लक्ष्मण के दादा जी एक चुड़ैल को मानते हैं, उसे हर साल खून पिलाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। तुमने शायद देखा नहीं था कि वहां पेड़ के नीचे लाल और काले रंग की चूड़ी और काला फीता, फूटा हुआ नारियल, और बाल के कुछ हिस्से थे और कुछ पुराने ज़माने के गहने भी थे, उसकी हाँ में हाँ मिलाते रीता ने जवाब दिया।

तभी छोटी ने पूछा अब क्या होगा? बगल की लड़की जिसका नाम सीमा था उसने बोला अब तुमको खून की उल्टी होगी, खून की पेशाब होगी और ऐसा भी हो सकता है कि तुम्हारे टॉयलेट में भी खून जा सकता है।

मेरी मां और दादी ने मुझे सब बताया हुआ है। मुझे मना किया है तभी तो मैं आज तक नहीं गई, ना ही जाऊंगी। तुम्हारा तुम जानो, मुझसे तुम बात नहीं करना, ना ही मेरे साथ बैठना।

                                                                    साभार – the business standard

इतना सुन कर छोटी रोने लगी। मुश्किल से रीता ने चुप कराया और बोली कि पेड़ वाली बात घर में किसी को नहीं बताना नहीं तो पापा से मार खाओगी।

छोटी मन ही मन बेचैन हो रही थी। उसे स्कूल से भागने का मन कर रहा था पर डांट दोनों तरफ से खाती, घर में पापा से और स्कूल में टीचर से। उसे अब समझ आने लगा था कि अब वो मरने वाली है और कुछ ही दिन की मेहमान है, क्योंकि उसे कल से खून का पेशाब आना शुरू हो गया है।

उसका मन आज पढ़ाई में बिल्कुल नहीं था। उसने गणित के अध्यापक से मार भी खाई। उसने सिर दर्द की वजह से कल का होम वर्क नहीं किया था। जैसे छुट्टी हुई, छोटी किसी से बात किए बिना ऐसे घर की ओर भागी की उसकी सहेलियों से आगे पहुंच गई। घर आकर ड्रेस चेंज की और रूम में जाकर चुप- चाप रोने लगी।

शाम से रात हो गई, छोटी मां-पापा के कमरे में सोती थी। वो आज हर आधे-एक घंटे में टॉयलेट जाती। मां सो गई थी लेकिन पापा जाग रहे थे। उन्हें सुबह से छोटी का रवैया ठीक नहीं लग रहा था था पर उसके पापा ने कुछ नहीं बोला।

                                                                                                      फोटो साभार – Hanna Barczyk for NPR

4 या 5 दिन से ऐसे ही छोटी हर सुबह जल्दी उठ के नहा लेती। किसी से ज़्यादा बात नहीं करती थी, ना ही बाहर खेलती थी। उसे सच में अचानक ये क्या हो गया था? खाना भी ठीक से खाती नहीं थी। बार- बार छत पर जाकर ना जाने क्या देखती? अपने कपड़े खुद ही धो लेती। सुखा लेती। स्कूल जाने से पहले सूखे कपड़े निकाल लेती थी।

उसकी मां छोटी से पूछती उससे पहले ही उसके पापा( प्रमोद) ने उसकी मां (शर्मिला) से पूछ लिया कि आजकल इस लड़की का बर्ताव ठीक नहीं है। रात में घोड़े बेचकर सोने वाली लड़की आजकल 10 बार उठती है। कपड़ों को बार- बार धोती है। कहीं किसी लड़के का चक्कर तो नहीं है? मां ने घबराते हुए “नहीं जी” में नवाब दिया।

पापा ने एक-दो बार दीवार के पीछे नज़र दौड़ाई। एक दुप्पटा और उनका नया टॉवल (तौलिया) जो कहीं खो गया था उसी टॉवल के 2 टुकड़े सूखे हुए नज़र आए। उसके सिवा वहां कुछ भी नहीं था। पापा नींद में थे। उन कपड़ों पर ज़्यादा गौर नहीं किया।

मां ने आज सुबह छोटी से पूछ ही लिया कि आखिर तुम्हें क्या हुआ है जो ऐसे कर रही हो। रात को सोती नहीं हो। सुबह जल्दी उठ जाती हो, क्या बात है? बताओ।

छोटी डरते हुए चुप ही रही तभी पापा ने डांटते हुए पूछा…तो वह भरी हुई आवाज़ से बोली कि मैं अब ज़्यादा दिन तक जिंदा नहीं रह पाऊंगी। मैं कुछ ही दिन में मर जाऊंगी। मां और पापा हैरान थे कि लड़की क्या बोल रही है। पापा ने डांटते हुए बोला क्या हुआ है साफ-साफ बताओ।

रोते हुए छोटी ने बताया कि मैं 5 दिन पहले स्कूल के पीछे जो पुरानी इमली का पेड़ है उस पर चढ़कर इमली चुरा कर खाई थी, जिस पेड़ को मेरे सहपाठी लक्ष्मण के दादा जी चुड़ैल मानते हैं, और पूजा करते हैं।

मेरे स्कूल के सभी बच्चे जानते हैं कि उस पेड़ में भूत है जो खून पीती है, उन्होंने ही बताया कि इस पेड़ के इमली को खाने से लोगों को खून की उल्टी, खून का पेशाब हो सकता है, और वो इंसान मर जाता है।

मैनें उसी पेड़ की इमली खाई है। मैं भी ज़्यादा दिन तक जिंदा नहीं रहूंगी…।

उसकी ऐसी बातों को सुन कर मां-पापा हैरान थे तभी मां ने छोटी को पूछा कि तुमको क्या हुआ है? छोटी सिसकते हुए बोली कि मुझे भी खून का पेशाब आ रहा है। लगता है मेरा बड़ा होकर अफसर बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा।

तभी मां-पापा एक दूसरे को हैरत से देखते हैं। उनको समझ आ गया कि काश हम पहले ही छोटी के सवालों का जवाब दे देते तो ये नौबत नहीं आती।

                                                                                                                               सांकेतिक तस्वीर (साभार – टाइम्स नाउ)                                   

मां छोटी को कस के गले लगा लेती है और अपने रूम में लेके जाती है और आराम से बैठा देती है। तब प्यार से उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर समझाती है कि ये जो तुमको खून में पेशाब आना शुरू हुआ है ना वो किसी इमली के पेड़ पर चढ़ने से नहीं हुआ है। वो तो बस अंधविश्वास है। लोगों द्वारा बनाई गयी कहानी है ताकि लोग डर से उनके चीज़ों को नुकसान ना पहुंचाए, ना तोड़ कर खा सके। तुमको कोई बीमारी नहीं हुई है बल्कि इसे महीना या माहवारी कहते हैं जो लड़कियों की बढ़ती उम्र में उनके बढ़ते शरीर की पहचान है।

यह दुनिया की हर लड़की को 12 या 14 साल की उम्र से होने लगता है जो 4 से 5 दिन तक रहता है। तुमको इसमें डरने की कोई बात नहीं है बल्कि तुमको अच्छे और पौष्टिक खाना खाने के ज़रुरत है ताकि तुम स्वस्थ रहो और अपनी पढ़ाई भी अच्छी तरह कर सको।

अब छोटी को थोड़ी राहत मिली की अब वो नहीं मरेगी और अपना सपना भी पूरा कर सकेगी। अब उसको माहवारी के बारे में सब कुछ पता हो गया था। अब वो खुश थी। कल स्कूल जाकर अपनी सहेलियों को ये सारी बातें बताने के लिए बहुत इच्छुक थी। ताकि वो भी जान सकें कि माहवारी क्या होती है।

ये भी पढ़ें – पुरुष दिवस : पुरुषों का सामाजिक चित्रण, पुरुष होने की वास्तविकता नहीं

 

( इस लेख को गायत्री द्वारा लिखा व खबर लहरिया से संध्या द्वारा संपादित किया गया है। )

 

‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our   premium product KL Hatke