खबर लहरिया Blog “शादी के बाद भी बेटी, बेटी ही रहती है” – कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा

“शादी के बाद भी बेटी, बेटी ही रहती है” – कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा

अदालत ने कहा कि आश्रित कार्ड का लाभ बेटा शादी के पहले भी उठाता है और बाद में भी तो भी वो बेटा ही रहता है। वहीं अगर एक बेटी इस कार्ड को विवाह से पहले इस्तेमाल करती है तो ठीक लेकिन शादी के बाद इसके इस्तेमाल पर रोक क्यों?

                                                                                 कर्नाटका उच्च न्यायालय  (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

जिस तरह से बेटा शादी के बाद भी बेटा रहता है वैसे ही विवाहित बेटियां शादी के बाद भी बेटी ही रहती है – एक मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने सैनिक कल्याण बोर्ड के दिशा निर्देशों को खारिज़ करते हुए रिटायर्ड रक्षा कर्मियों (Sainik Welfare Board guideline) की शादीशुदा बेटियों के मामले में यह बात कहते हुए बड़ा फैसला सुनाया।

बता दें, यह पूरा मामला विवाहित बेटियों को पूर्व रक्षा कर्मियों के बच्चों के लिए आश्रित कार्ड (dependent cards) का लाभ उठाने से रोके जाने को लेकर था। हाई कोर्ट ने कहा कि जैसे बेटा विवाहित होने के बाद भी घर का सदस्य रहता है वैसे ही बेटियां भी पिता के लिए विवाह के बाद भी उतना ही अधिकार रखती हैं।

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हाई कोर्ट का फैसला जानें

कर्नाटक हाई कोर्ट की सिंगल जज बेंच ने 2 जनवरी 2023 को मामले को लेकर फैसला सुनाया था। अदालत ने अपने एक आदेश में यह फैसला सुनाया, “इस कार्ड का लाभ बेटा शादी के पहले भी उठाता है और बाद में भी तो भी वो बेटा ही रहता है। वहीं अगर एक बेटी इस कार्ड को विवाह से पहले इस्तेमाल करती है तो ठीक लेकिन शादी के बाद इसके इस्तेमाल पर रोक क्यों? जब विवाह के बाद बेटे की स्थिति में परिवर्तन नहीं है तो फिर बेटी की स्थिति में कैसे परिवर्तन हो सकता है। बेटी का विवाह उसकी स्थिति को बदल नहीं सकता है और न ही बदलेगा।”

इसके साथ ही हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि वो बदलते लिंग अनुपातों के समीकरणों के चलते पूर्व रक्षा कर्मियों को पूर्व सैनिकों के रूप में बताना बंद करे। अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एम नागप्रसन्ना (Justice M Nagaprasanna) ने यह आदेश सेना के एक पूर्व सैनिक सूबेदार रमेश खंडप्पा पुलिस पाटिल की 31 वर्षीय बेटी की दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान ज़ारी किया। रमेश खंडप्पा पुलिस पाटिल साल 2001 में ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान खदानों की सफाई करते हुए शहीद हो गए थे।

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पिता की नौकरी पर विवाहित महिलाओं का भी है अधिकार – कोर्ट

कर्नाटक हाई कोर्ट ने दिसंबर 2020 के एक मामले में विवाहित बेटियों को लेकर ये फैसला दिया था कि पिता की नौकरी में उनका भी अधिकार है यानि अब पिता की नौकरी से होने वाली आय में शादीशुदा बेटियां भी दावा कर सकती हैं। बेंगलूरु की रहने वाली भुवनेश्वरी वी. पुराणिक नाम की महिला ने कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। कोर्ट ने इसी याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया था। कर्नाटक हाई कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक शादीशुदा महिलाएं भी पिता की नौकरी पर अपना दावा कर सकती हैं।

देखा जाए तो अमूमन महिलाओं को शादी के बाद से पिता से मिलने वाले उसे सारे अधिकारों से दूर कर दिया जाता है। उससे कहा जाता है कि उसका ससुराल ही उसका घर है व मायका उसका घर नहीं है। अब वह उनकी बेटी से ज़्यादा किसी के घर की बहु है। किसी और के घर की बहु होने का हवाला देते हुए बेटियों से उनके अधिकारों को छीन लिया जाता है व अधिकतर मामलों में घर के बेटों को ही पिता से मिलने वाले अधिकारों का लाभ मिलता है या दिया जाता है।

मामले में हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को समाज में बदलाव के अनुरूप कदम उठाने और अपने विभिन्न कार्यक्रमों और पहलों के लिए लिंग-तटस्थ (gender-neutral) नामों का उपयोग करने का भी निर्देश दिया।

आगे केंद्र सरकार से यह भी कहा कि वह बलों में बदलते लिंग समीकरणों के कारण पूर्व रक्षा कर्मियों को पूर्व सैनिकों के रूप में संदर्भित करना बंद करे और पूर्व-सैनिकों के लिंग-तटस्थ नामकरण (gender-neutral nomenclature) पर विचार करे।

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