खबर लहरिया Blog जिला एक समस्याएं अनेक!

जिला एक समस्याएं अनेक!

बाँदा: भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है।  इस जिला का क्षेत्रफल 4,408 वर्ग किमी है तथा बांदा कस्बा ज़िले का मुख्यालय है। यह जिला चित्रकूट मंडल के अन्तर्गत आता है। यहाँ की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कृषि पर निर्भर है। जिसमे मुख्य फसलें चावल, गेहूँ तथा सब्जियाँ हैं। लेकिन इस जिले में केन नदी होने के बावजूद भी पानी की समस्या न केवल शहरी क्षेत्र में है बल्कि गांवों और कस्बों में खूब है ,कई गाँव में तो लोगों को पीने और भी ज़रूरतों को पूरा करने क लिए कई कई मील पैदल चल कर पानी लाना पड़ता है.

पानी की समस्या

पानी भरने के लिए गांववालों को जंगलों से गुजरना पड़ता है। जानवरों का डर हमेशा रहता है। कभी-कभी रात को प्यासा ही सोना पड़ता हैं

हम सभी जानते हैं कि आधारभूत पंचतत्वों में से एक पानी हमारे जीवन का आधार है और पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिये कवि रहीम ने कहा है- ‘‘रहिमन पानी राखिये बिना पानी सब सून। पानी गये न उबरै मोती मानुष चून।’’ यदि पानी न होता तो सृष्टि का निर्माण सम्भव न होता। यही कारण है कि यह एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसका कोई मोल नहीं है जीवन के लिये पानी की महत्ता को इसी से समझा जा सकता है कि बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ नदियों के तट पर ही विकसित हुई और अधिकांश प्राचीन नगर नदियों के तट पर ही बसे। पानी की उपादेयता को ध्यान में रखकर यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम न सिर्फ जल का संरक्षण करें बल्कि उसे प्रदूषित होने से भी बचायें। इस सम्बन्ध में भारत के जल संरक्षण की एक समृद्ध परम्परा रही है और इसी जल या पानी के लिए जब लोग मीलो चलते हैं ग्रामीण इलाकों में तब उनकी पीड़ा समझने वाला कोई नहीं होता न है सरकार उन तक पहुच कर कोई हल निकलती है |

बेरोज़गारी की समस्या

बाँदा जिले में न केवल पानी की समस्या हैं बल्कि रोज़गार की भी बहुत बड़ी समस्या है और बेरोजगारी समाज के लिए एक अभिशाप है। इससे न केवल व्यक्तियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है बल्कि बेरोजगारी पूरे समाज को भी प्रभावित करती है। यहाँ के नौजवान युवक युवतियां रोज़गार की खोज में अपना गाँव घर छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं क्युकि पढाई लिखाई करने के बाद भी रोज़गार के कोई साधन नहीं है न ही कोई कारखाने हैं और न ही कोई कंपनी लोग रोज़गार सृजन करें तो कहाँ से करें तो बस इसी रोज़गार की तलाश में लोग दिल्ली ,बम्बई और कलकत्ता कैसे बड़े शहरों की और पलायन कर लेते हैं और कभी कभी ऐसी जगह पहुँच जाते हैं जहाँ से लौटना असंभव हो जाता है ऐसे कई किस्से सुनने को मिलते है कि लोग रोज़गार के लिए दुसरे देशो में पलायन कर के गये और कई सालों तक लौट के भी नहीं आये वही फ़स के रह गये |

बिजली की समस्या

एक ऐसा एक तरफ जहां हम 21वीं सदी के डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं वहीं बाँदा जिले के कई गांव ऐसे हैं, जो आज भी बिजली और संचार व्यवस्था के लिए तरस रहे हैं. बहुत से ऐसी क्षेत्र है जिनमें आज भी बिजली और मोबाइल केवल किताबों तक ही सीमित हैं. आज भी बिजली नहीं पहुंच पाई है. जिसके कारण ग्रामीण चिमनी के भरोसे ही रात काटने पर मजबूर हैं.

सरकार के मुताबिक इन गांवों को जल्द ही सौभाग्य योजना के तहत विद्युत व्यवस्था से जोड़ दिया जाएगा, जिसके लिये कई ब्लाकों में टेंडर भी हो चुके हैं. लेकिन अभी तक कोई असर देखने को नहीं मिला है भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों के निर्देशों के क्रम इस साल तक सभी गांवों में बिजली पहुंच जाएगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना 2018 तक देश के अंतिम गांव तक दीनदयाल ग्रामीण विद्युत योजना और सौभाग्य योजना के तहत हर घर को बिजली देने का लक्ष्य है. लेकिन पता नहीं ये सपना सच भी होगा या सिर्फ सपना ही रह जायेगा।
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में बिजली और संचार सेवाएं नहीं होने से उन्हें काफी परेशानी होती है. गांव में बिजली न होने से सबसे ज्यादा बच्चों की पढ़ाई काफी प्रभावित होती है. जिले में भीषण गर्मी के समय का प्रकोप बहुत बुरा होता और ये जिला तो सबसे गर्म इलाकों में से एक है । अधिकांश गांवों में बिजली की परेशानी है, जिससे लोग हलकान नजर आते हैं। शहरी क्षेत्र के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्र के लोग इस बाबत ज्यादा परेशानी से जूझते दिखाई देती हैं। मूलभूत सुविधाओं से परेशान लोग प्रदेश सरकार से जिले में बिजली-पानी की समस्या दूर करने की मांग तो हर बार करती है। लेकिन सवाल ये उठता है किइनकी मांगे पूरी होने में सरकार समय कितना लेती है