महोबा जिले के कस्बा जैतपुर में आज भी हर घर में चरखे की आवाज सुनाई देती है यहाँ के लोग आज भी चरखे की मदद से सूत काटते है और चरखे की आवाज सुनने को मिलती हैं , दशकों पुरानी परम्परा आज भी जीवित है
लेकिन चिंता है तो गांधी आश्रम बंद होने की, जिससे लोग बेरोजगारी की मार झेल रहे जिला महोबा ब्लाक जैतपुर कस्बा जैतपुर तहसील कुलपहाड़ और कोतवाली कुलपहाड़ है पहले 10परसेंट चरखा चलते थे बीच में तो बिल्कुल ही बंद हो गए थे
इसमें गांधीजी का सपना था कि अपने ही हाथ से चरखा चलाएं और सूत काट के कपड़ा बना के पहने शुद्ध साकार बने लेकिन आज भी बहुत से चरखा चलाने का काम चल रहा है महिलाएं कहती हैं कि पहले तो हम लोग ज्यादा ही काम करते थे और हमारे यहां गांधी आश्रम में था पर किसी कारणवश गांधी आश्रम बंद हो गया है जिससे अब ज्यादा चरखा चलाने की जरूरत थी तो सोचा कि खादी कुमार ग्राम खादी आश्रम चल रहा है इससे कम करे तकी भरण पोषण भी चल रहा है लोग काटना नहीं है यह सोच करें कि नहीं इससे हमारी जो दाल रोटी भी चलेगी और घर बैठे काम करें करते की बेरोजगारी बढ़ी हैबुंदेलखंड के मिनी कश्मीर कहे जाने वाले चरखारी मेले की सैर
यहां का तो पहले से ही कल चल था च रखा चलाना आज भी हम चला रहे हैं लगभग 2 साल से 1 दिन में अगर 200 हेलो सूत्र हम लोग कात ले तो है 250रुपया मिलते हैं हमें कच्ची पोनी बनाकर भागा बना कर देते हैं जहां से हमें कच्ची पोनी मिलती है वहीं पर हमारी मेहनत का काम है इससे हम करते हैं
पन्नीलाल अनुरागी / चरखा चलवाने वाला मिस्त्री, ग्रामोद्योग खादी भंडार, इनका कहना है की इसकी बहुत मांग है 2004 से चालु किया गया है 2002 में गांधी आश्रम बंद हो गया है शुरुआत की है 20 25 लोगो से ऐसा ही धीरे , धीरे बढ़ जाएगा हमने रोजगार दिया है लोगो एक हफ्ते है एक हजार तक मिल जाता यही लोगो को कोई तौलिया बनवाता है बनारस भी जाता यही यहाँ से दूर दूर तक माल जाता है बजट बढ़ जाएगा तो और भी लोगो को देने लगेंगे लोगो को