लोकसभा 2024 के चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ने 26 दलीय गठबंधन तो वहीं भाजपा ने 38 दलों के साथ गठबंधन बनाया है। वहीं मायवाती की बसपा वाली सरकार ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
Lok Sabha Elections 2024: ये गठबंधन की राजनीति है, सत्ता के लालच का प्रचार है और रणनीति वही पुरानी, जनता की संवेदनाओं का प्रचार और काम ज़ीरो, क्यों? वैसे तो गठबंधन की राजनीति कोई नई चीज़ नहीं है पर इस बार दबदबा बनाये रखने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने गठबंधन का रास्ता अपनाया है।
आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टियों के गठबंधन सत्ता और ताकत की लालच से लबालब हैं। हमेशा की तरह, जिनका पहला उद्देश्य सामने वाले को गिराना है, हराना भी नहीं इसलिए नहीं क्योंकि उन्हें जनता के लिए काम करना है बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें यह दिखाना है कि इस सत्ता और ताकत के खेल में कौन आगे है, कौन बड़ा है।
सोमवार,17 जुलाई को बेंगलुरु में विपक्षी दलों की पार्टियों ने 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर बड़ी बैठक की और अगले दिन सबने मिलकर उस गठबंधन को “INDIA” यानी भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (Indian National Developmental, Inclusive Alliance) का नाम दिया जो 26-दलीय गठबंधन से मिलकर बनी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मंगलवार को गठबंधन की पार्टी के नाम की घोषणा की। इसके बाद यह सवाल आया कि इस गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा? इस सवाल पर कांग्रेस प्रमुख खड़गे ने कहा, मुंबई में होने वाली बैठक में हम समन्वय समिति व संयोजक का फैसला करेंगे।
बता दें, पार्टियों की अगली बैठक संसद के मानसून सत्र के बाद मुंबई में होने वाली है, जो 11 अगस्त को समाप्त होने वाली है।
इन गठबंधनों के बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने लाइमलाइट लेते हुए कांग्रेस को अपनी कुछ सीटें देने की पेशकश कर दी। अब अगर कांग्रेस यूपी में अधिक सीट जीतती है तो पेशकश कामयाब और अगर नहीं तो जीतती तो फिर क्या, अगले चुनाव का इंतज़ार करिये।
जब कांग्रेस सत्ताधारी भाजपा को हराने के लिए गठबंधन कर सकती है तो फिर भाजपा कैसे पीछे रह जाए? वो कहावत है न, ‘तू डाल-डाल मैं पात पात’, एक श्रेष्ठ तो दूसरा अतिश्रेष्ठ।
भाजपा ने मंगलवार, 18 जुलाई को राजधानी दिल्ली में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स के 38 दलों के साथ बैठक की। बताया गया कि पीएम मोदी की मौजूदगी में एनडीए की बैठक हुई। जानकारी के अनुसार, एनडीए की बैठक पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के नौ साल पूरे होने के मौके पर आयोजित की गई थी। अब इस आयोजन को कोई भी नाम दे दिया जाए, सबको पता ही है कि इस बैठक के पीछे की मुख्य वजह क्या है। सबके मन में यही ख्याल है कि कौन देश पर अपना ज़्यादा आधिपत्य जमा पाता है।
हर कोई अपनी कामयाबियों की सुर्खियां उड़ा रहा है और विफलताओं को पैरों तले ऐसे दबा रहा है, मानों वह उनकी नहीं है।
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कांग्रेस की 26 दलीय गठबंधन में शामिल पार्टियां
कांग्रेस, टीएमसी,डीएमके,आम आदमी पार्टी,जनता दल,राष्ट्रीय जनता दल,झारखंड मुक्ति मोर्चा,नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी,शिव सेना, समाजवादी पार्टी,राष्ट्रिय लोक दल, अपना दल,जम्मू एन्ड कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस,पीपल डेमोक्रेटिक पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया लिबरेशन, रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, ऑल इण्डिया फॉरवर्ड ब्लॉक,मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कझगम,विदुथालाई चिरुथैगल काची,कोंगुनाडु मक्कल देसिया काची, मनिथानेया मक्कल काची, इंडियन यूनियन मुस्मिल लीग,केरला कांग्रेस (M) व केरला कांग्रेस (जोसफ।)
एकल चुनाव लड़ेगी मायावती की बसपा पार्टी
कांग्रेस और भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की बात हो गई लेकिन लोकसभा चुनाव को लेकर मायावती की बसपा पार्टी क्या कर रही है? बता दें, दो बड़ी पार्टियों ने जहां गठबंधन का पासा फेंका, वहीं गठबंधन के घोषणा के अगले दिन ही बुधवार, 19 जुलाई को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी अकेले ही लड़ेंगी।
एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, ”हम अकेले चुनाव लड़ेंगे। हम राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे और हरियाणा, पंजाब और अन्य राज्यों में हम राज्य की क्षेत्रीय पार्टियों के साथ चुनाव लड़ सकते हैं।”
#WATCH | BSP chief Mayawati, says, "We will fight the elections alone. We will contest the election on our own in Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Telangana and in Haryana, Punjab and other states we can contest elections with the regional parties of the state." pic.twitter.com/cf1hisNrAt
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) July 19, 2023
अब तो यह चुनावी दबदबे की लड़ाई दो गठबंधन की सरकारें/ एकल सरकार के बीच दिखाई दे रही है। पर ज़रा ठहरिये, ये चुनावी चर्चाएं तो बस कांग्रेस व भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के बीच ही दिख रही है। सभी पार्टियों के इन करतबों को देखकर यही कहने को मन करता है, “थोथा चना बाजे घना।”
बदलते नामों की राजनीति
सत्ता की चुनावी जंग लड़ती पार्टियों ने कहा, ये “एनडीए/ इंडिया” की लड़ाई है, कोई कहता “भारत माता/ इंडिया”, तो कोई “इंडिया/पीएम नरेंद्र मोदी” (“NDA and INDIA”, “Bharat Mata versus INDIA”, “INDIA and Prime Minister Narendra Modi”), यहां तक बस यही दिखता है कि ये नाम और नाम की राजनीति की लड़ाई है।
26 दलीय गठबंधन पार्टी ने जाति जनगणना के कार्यान्वयन की मांग की और कहा कि वे “अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत और हिंसा” के साथ-साथ “महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और कश्मीरी पंडितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों” को हराने के लिए एक साथ आए हैं।
बैठक खत्म होने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि समान विचारधारा वाले विपक्षी दल सामाजिक न्याय, समावेशी विकास और राष्ट्रीय कल्याण के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करेंगे।
आरोप लगाते हुए आगे कहा, “भाजपा द्वारा व्यवस्थित तरीके से हमारे गणतंत्र के चरित्र पर गंभीर हमला किया जा रहा है। हम अपने देश के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। भारतीय संविधान के मूलभूत स्तंभों – धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र, आर्थिक संप्रभुता, सामाजिक न्याय और संघवाद – को व्यवस्थित और खतरनाक तरीके से कमजोर किया जा रहा है।”
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि 2024 में यह “एनडीए और भारत के बीच लड़ाई” होने जा रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि भाजपा देश को बर्बाद कर रही है और इससे लड़ने के लिए “इंडिया” (INDIA) जैसे गठबंधन की ज़रूरत है।
हिंदुस्तान टाइम्स की बताती है कि विभिन्न दलों के 50 से अधिक नेताओं ने सोमवार को अनौपचारिक चर्चा में भाग लिया।
चुनावी जंग “भारत माता बनाम भारत” है – भाजपा
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए 2024 में पहले से भी अधिक बहुमत के साथ सत्ता में लौटेगी और शिवसेना-भाजपा-एनसीपी का गठबंधन राज्य में बहुमत से जीत हासिल करेगा। आगे कहा, “जितना अधिक वे मोदी की आलोचना करेंगे, एनडीए उतनी अधिक सीटें जीतेगी। हमने इसे 2014 में देखा, हमने इसे 2019 में देखा और हम इसे 2024 में फिर से देखेंगे।”
भाजपा और उसके एनडीए सहयोगियों ने मंगलवार को विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि गठबंधन को नया नाम देने से उनका चरित्र नहीं बदल जाएगा। आगे कहा, 2024 की लोकसभा लड़ाई “भारत माता बनाम भारत” होने जा रही है।
शायद भाजपा भूल रही है कि उनके द्वारा पिछले सालों में कितनी जगहों के नाम बदले गए हैं। आप भूल गए हैं तो हम गिनवा देते हैं। जैसे दिल्ली के मुगल गार्डन को अमृत उद्यान करना, राजपथ को कर्तव्यपथ,अलाहबाद को प्रयागराज, फैज़ाबाद को अयोध्या।
आउटलुक की रिपोर्ट कहती है, पिछले आठ सालों में सिर्फ सड़कों और शहरों का ही नाम नहीं बदला गया है। भाजपा शासित महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कम से कम तीन राज्य विश्वविद्यालयों का नाम कुछ कम प्रसिद्ध लोगों और स्थानीय नायकों के नाम पर रखा गया है।
उदाहरण के तौर पर, उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय को अब कवयित्री बहिणाबाई चौधरी उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है; छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय है; और इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) विश्वविद्यालय है।
सत्ता वाली सरकार खुद को स्पष्ट करते हुए कहती है नाम इसलिए बदले जा रहे हैं ताकि लोगों पर जो औपनिवेशिक काल का नशा चढ़ा हुआ है, वह उतर जाए। कहा, यह भारतीय विरासत को गौरवांवित करने का तरीका है। पीएम मोदी ने हाल ही के स्वतंत्रता दिवस पर संबोधन करते हुए कहा था कि “औपनिवेशिक मानसिकता” से संबंधित “प्रतीकों” को हटाने के लिए अधिकांश नाम बदले गए थे।
नामकरण के दौरे पर निकली भाजपा सरकार की किसी ने आलोचना नहीं की, यह नहीं पूछा कि वह सिर्फ हिंदी या हिन्दू नामों को प्राथमिकता क्यों दे रहे हैं, मुगलों या इस्लामी मूल के नामों को हटाने पर इतना ज़ोर क्यों? क्या आप इसी को विविधता वाला भारत कहते हैं जहां हर जाति, धर्म, संप्रदाय के लोग साथ रहते हैं और इसे ही आप समानता कहते हैं?
तो बताइये आपके द्वारा बदले गए नामों को हम आपका चरित्र मान लें?
कांग्रेस बोले होगा ‘नए भारत’ का निर्माण
बदलते नाम की राजनीति में हर कोई आगे निकलना चाहता है। अगर भाजपा सरकार ने देशभर में नामों को बदला है तो वहीं कांग्रेस भी इससे पीछे नहीं है। कांग्रेस द्वारा शुरू की गई “भारत जोड़ो यात्रा” में कांग्रेस ने भारत को ‘नया भारत” कहते हुए शब्दों के खेल के साथ हिस्सों में बांट दिया। कहा गया, यहां से नेता के रूप में नए राहुल गांधी का जन्म हुआ है।
राहुल गांधी के नेतृत्व में शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को कश्मीर, श्रीनगर में समाप्त हुई लेकिन कहा गया कि ये रास्ते का अंत नहीं था बल्कि यहां से कांग्रेस पार्टी की नई शुरुआत हो रही है। 150 दिन, 12 राज्य, दो केंद्र शासित प्रदेश और 3,570 किलोमीटर का लंबा सफर 7 सितंबर, कन्याकुमारी से शुरू किया गया था।
लोकसभा चुनाव को टारगेट करते हुए कांग्रेस की यह यात्रा एक हद तक सफल भी हुई। बहुत ड्रामेटिक अंदाज़ में हाफ-टी शर्ट में कपकपाती ठंड में यात्रा करना, बारिश में भाषण देना, इतनी बढ़िया स्क्रिप्ट तो शायद ही कभी कांग्रेस ने लिखी होगी और राहुल गांधी ने जो उस पर परफॉरमेंस दी है, उसके तो क्या ही कहने। अगर यही स्क्रिप्ट पहले लिख ली होती तो आज पाई-पाई सीट के लिए नहीं लड़ना पड़ता।
खैर, जनता के संवेदनाओं के साथ खेलने की स्क्रिप्ट लिखने में तो सबको महारत हासिल है।
कांग्रेस का भी समझ नहीं आता, कभी वह खुद की नई शुरुआत के बारे में बात करती है जैसा की उसने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कहा तो कभी भारत को “नया भारत” का नाम दे, उसके नए सफर की बात करती है। अरे! सिर्फ सफर ही करते रहेंगे या कुछ करेंगे भी? जब कांग्रेस सत्ता में थी तब भी शायद वह सफर ही कर रही थी और आज भी बस वह सफर ही कर रही है।
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देश का मूड एनडीए- पीएम मोदी
पीटीआई के अनुसार, मोदी ने कहा कि ”मैं आपको पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि एनडीए 2024 में सत्ता में आएगी क्योंकि लोग इसकी केमिस्ट्री और इतिहास जानते हैं।”
उन्होंने कहा, “2014 में एनडीए के पास लगभग 38% वोट शेयर था और 2019 में 45%, 2024 में उसे 50% से अधिक वोट मिलेंगे। आप सभी जानते हैं कि देश का मूड एनडीए के पक्ष में है, वैश्विक शक्तियां भी मानती हैं कि लोगों का जनादेश हमारे गठबंधन के लिए है। एनडीए शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर 10वें स्थान से 5वें स्थान पर पहुंच गई, मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि यह हमारे तीसरे कार्यकाल में तीसरे स्थान पर होगी।”
पीएम मोदी ने नए इंडिया के बारे में कहते हुए कहा,“विपक्षी दल राजनीतिक स्वार्थ के लिए करीब तो आ सकते हैं लेकिन साथ नहीं आ सकते। विपक्ष आम लोगों की समझदारी को कम आंकता है, लेकिन जनता जानती है कि स्वार्थ का कौन सा बंधन उन्हें बांधे रखता है। मैं गलतियाँ कर सकता हूँ लेकिन मैं गलत इरादे से कुछ नहीं करूँगा।”- पीटीआई
आगे कहा, एनडीए मजबूरी का गठबंधन नहीं, योगदान का प्रतीक है; यहां हर किसी को श्रेय मिलता है और हर कोई योगदान देता है। एनडीए में, ‘एन’ का अर्थ है नया भारत, ‘डी’ का अर्थ है विकसित राष्ट्र, ‘ए’ का अर्थ है लोगों और क्षेत्रों की आकांक्षाएं।”
कांग्रेस-भाजपा ने मुस्लिमों के लिए कुछ नहीं किया – मायावती
अब लोकसभा चुनाव को लेकर एकल लड़ रही बसपा वाली मायावती सरकार की भी राजनीति को भी समझ लिया जाए। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए मायावती ने कहा, “कांग्रेस पार्टी सत्ता में आने के लिए समान विचारधारा वाले जातिवादी और पूंजीवादी दलों के साथ गठबंधन कर रही है”, और कहा कि भाजपा भी एनडीए को मजबूत कर रही है लेकिन “उनकी नीतियां मुस्लिम विरोधी और दलित विरोधी हैं।”
अकेले चुनाव लड़ने के फैसले को लेकर बसपा सुप्रीमो ने कहा,”ये पार्टियां लोगों के कल्याण के लिए काम नहीं करती हैं। उन्होंने दलितों, मुसलमानों और अल्पसंख्यकों के लिए कुछ नहीं किया है। सभी एक जैसे हैं। जब वे सत्ता में आते हैं, तो अपने वादे भूल जाते हैं। उन्होंने जनता से किया एक भी वादा पूरा नहीं किया। चाहें कांग्रेस हो या बीजेपी हो। यही सबसे बड़ा कारण है कि बीएसपी ने विपक्ष से हाथ नहीं मिलाया।”
बता दें, बसपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन में लड़ा था। उन्हें 19.43% वोट मिले और 10 सीटें मिलीं जबकि एसपी ने 5 सीटें जीतीं। 2022 में यू.पी. विधानसभा चुनाव में बसपा को 12.88% वोट मिले और केवल एक सीट मिली। अब पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने खोये हुए रुतबे को वापस पाने के लिए दलित-ओबीसी-मुस्लिम गठबंधन पर काम कर रही है।
गठबंधन की सीढ़ियां चढ़ती राजनीतिक पार्टियां
कांग्रेस और भाजपा दोनों में लोकसभा चुनाव पर अपना ज़ोर जमाने के लिए सहयोगियों को सीढ़ी बनाया, तो वहीं दलितों-पिछड़ों इत्यादि के लिए काम करने वाली मायावती की बसपा पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया, शायद इसलिए क्योंकि पिछले चुनाव में सपा के साथ उनका गठबंधन कुछ रंग नहीं लाया।
गठबंधनों की बैठक में कुछ चीज़ें तो बेहद साफ़ तौर पर नज़र आई, ज़्यादा चर्चाएं इस पर नहीं थी कि उन्हें जनता के लिए क्या करना है बल्कि इस पर थी कि विपक्षी ने क्या नहीं किया, और ये तो अब सुनने में अलग भी नहीं लगता।
बोले कुछ और करे कुछ
लोकसभा चुनाव में अपना दायित्व जमाने वाली ये पार्टियां इस समय दलित, मुस्लिम, पिछड़े समुदायों के लोगों की बात कर रही है पर जो इतने पिछले सालों से व आज वर्तमान में भी जो उनके साथ हिंसा व भेदभाव होते आ रहे हैं, उसे लेकर बस अपनी सांत्वना जता देती है। बदलाव कुछ नहीं होता और फिर ये पार्टियां नए भारत की बात करती हैं। अगर आज के भारत को ये राजनीतिक पार्टियां नए भारत का नाम दे रही है तो क्या कल के भारत में वह नहीं थी? क्या देश में उनकी सत्ता नहीं थी?
– जातिगत हिंसा
हाल ही में एमपी के सीधी में दलित व्यक्ति के चेहरे पर पेशाब करने के मामले को देख लीजिये, जहां उच्च माने वाले कथित बीजेपी के साथ लिंक रखने वाले प्रवेश शुक्ला ने दलित व्यक्ति के चेहरे पर पेशाब किया और इसमें सरकार ने क्या किया? एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान दलित व्यक्ति को बुलाते हैं, उसके पैर धोते हैं और बस खत्म हो गया मामला, खत्म हो गई जातिगत हिंसा, मिल गया इंसाफ।
अन्य उदाहरण, मणिपुर पिछले कई महीनों से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। मैतेई और कुकी समुदाय के बीच चल रही इस जातीय हिंसा के बीच कई लोग विस्थापित हुए और कई लोगों की जान ले ली गई। महिलाओं-बच्चों के साथ अमानवीय घटनाओं की ख़बरें सामने आ रही है, लेकिन सत्ता में बैठे इंसाफ और लोगों का हवाला देने वाले नेता, राजनेता विपक्षों के साथ शब्दों की राजनीति करने में लगे हैं। जो बोलना है, जो करना है, उसे छोड़कर सब कुछ किया जा रहा है।
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– धार्मिक हिंसा
इसके अलावा कुछ समय पहले, उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी में एक मामला सामने आया था जिसमें एक हिन्दू व मुस्लिम लड़के ने एक 14 साल की लड़की का अपहरण किया, यह मामला आज भी यह बताने के लिए काफी है कि एक संप्रदाय को किस तरह से टारगेट कर पूरे समुदाय को इसमें घेरा जाता है और इस तरह से धर्म की राजनीति का सिलसिला चलता रहता है। दोषी को दोषी की तरह न देखकर एक समुदाय की तरह देखा जाता है जहां से यह धर्म की राजनीति व खेल हमेशा शुरू होता है।
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हालांकि, मामले में दो आरोपी एक हिन्दू व मुस्लिम व्यक्ति शामिल थे लेकिन हर जगह मुस्लिम शब्द को बढ़ावा देते हुए पूरे समुदाय को दोषी की तरह दिखाया गया। स्थानीय लोगों ने मामले को लव-जिहाद का नाम दे दिया। लव-जिहाद, शब्द कुछ हिंदू समूह, मुस्लिम पुरुषों और हिंदू महिलाओं के बीच संबंध को बताने के लिए करते हैं।
उदाहरण के लिए ऐसे कई मामले हैं जो लिखे जा सकते हैं, पर कोई सरकार अपने सत्ता के कार्यकाल के दौरान की गई अपनी विफलता नहीं बताती। अपनी गलतियां नहीं गिनाती, करती हैं तो बस कालाबाज़ारी आरोपों की। 2019 का लोकसभा चुनाव हो, या आने वाले 2024 का लोकसभा चुनाव, खुद की वाह! वाही! करने का पैतरा और विपक्ष को नीचा दिखाने का पैतरा कभी पुराना नहीं होता। जो ठीक नहीं होती, वह है समस्यांए, जो नहीं बदलता है वह है दलित वोट बैंक, जो नहीं देखा जाता वह है धार्मिक व सांप्रदायिक हिंसाओं के मामले। काम होता है आश्वासन का, सभाओं के लिए भीड़ जुटाने का। इस बार भी कुछ अलग नहीं दिख रहा, वही खेल, वही संवेदनाओं के साथ खेलने वाली राजनीति और समाज सेवक का मुखौटा ओढ़े देश के कर्ता-धर्ता कहे जाने वाले लोग।
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