खबर लहरिया National पेशाब कांड या दलित वोट बैंक को लेकर सियासत, देखें राजनीति,रस,राय

पेशाब कांड या दलित वोट बैंक को लेकर सियासत, देखें राजनीति,रस,राय

नमस्कार, मैं हूं मीरा देवी फिर से हाजिर हूं एक राजनीतिक चर्चा के साथ अपना शो राजनीति, रस, राय को लेकर। राजनीतिक लोगों से निवेदन है कि अपनी राजनीतिक छवि चमकाने के लिए और अपना वोट बैंक बनाने के लिए मजबूर और मासूम लोगों को मोहरा न बनाएं क्योंकि ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को न्याय मिल पाना मुश्किल हो जाता है। उसका मजाक जो उड़ता है वह अलग। उस मामले की गम्भीरता खत्म हो जाती है। रहम करो सरकार और प्रशासन।

मध्यप्रदेश के सीधी जिले के अंतर्गत बहरी गणव निवासी दशमत रावत के ऊपर बीजेपी नेता प्रवेश शुक्ला ने पेशाब कर दिया। यह मामला करीब दो साल पुराना है लेकिन इसका वीडियो मई 2023 में वायरल हुआ। मीडिया ने खूब लिखा और इस मामले का नाम पेशाबकांड रख दिया। मैं भी वहां पहुंची कवरेज करने। रिपोर्टिंग के दौरान मैंने देखा कि यह पूरा मामला बीजेपी और कांग्रेस के बीच दलित वोट बैंक अपनी तरफ करने का एक नाटक है। बस मोहरा एक दलित और मासूम व्यक्ति है जो इस राजनीति को भांपने से कोसों दूर है। अगर भांप भी जाए तो क्या इतने बड़े-बड़े सफेद पोश नेता रूपी गिद्धों से बचकर कहां जाएगा? कानून को चिल्लायेगा की न्याय दे दो? जिला प्रशासन को दुःखड़ा सुनाएगा? कैसे, जब कानून मतलब पुलिस और प्रशासन सब मिलकर ही इस नाटक को अंजाम दे रहे हैं?

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इस मामले पर हर तरफ से जहर ही जहर उगला जा रहा है। अखबारों और चैनलों का विश्लेषण करें तो लगेगा मानों जैसे बुलडोज़र चला देने और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लगा देने से समाधान निकल आया है जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। असल में मामला ब्राह्मण और दलित का ही नहीं बल्कि जादिवाद वर्चस्व का है।

दशमत रावत ‘कोल’ जनजाति से आता है। इस जनजाति की सामाजिक व आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है। इनमें से अधिकांश जंगलों से बेदखल हो चुके हैं और शहरों, कस्बों या गांवों में बंधुआ मज़दूरी में बंधे रहते हैं। चुनाव के परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। इसके बावजूद वे सत्ता और उच्चवर्ग की दया पर ही अधिक निर्भर हैं। मूल सवाल तो यही है कि क्या प्रवेश शुक्ला इस तरह की सामाजिक एंव आर्थिक स्थिति में रहने वालों के अलावा अन्य किसी वर्ग पर नशे की हालत में भी पेशाब करने की सोच सकता था? कतई नहीं सोच सकता था।

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हैरान करने वाली बात तो यह है कि आज़ादी के स्वर्ण काल में इस तरह की घटना पर जिन प्रमुख लोगों की प्रतिक्रिया आनी चाहिए थी, वह अभी तक देखने या पढ़ने में नहीं आई है। ऐसे में स्थिति और भी गंभीर हो जाती हैं जबकि देश की राष्ट्रपति स्वंय एक आदिवासी है। पैर पूजना, केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार का नया चमत्कार है। प्रधानमंत्री दलितों के पैर धोते हैं। मध्य प्रदेश में हर सरकारी कार्यक्रम के पहले कन्याओं के पैर पूजने का नियम सा बना दिया है परंतु महिलाओं पर होने वाले अपराधों में मध्य प्रदेश अव्वल है। वहीं अब आदिवासी के पैर धो दिए गए लेकिन उनके खिलाफ होने वाले अपराधों में भी मध्य प्रदेश सबसे आगे है।

राजनैतिक पार्टियां इस घटना की बुराई करके अलग नहीं हट सकते। उन्हें बताना होगा कि भले ही वे आज सरकार में नहीं है परंतु उनके पास इस अपमानजनक घटना की पुनरावृत्ति न होने देने को लेकर क्या कोई कार्य योजना है? यह कोई चुनावी मुद्दा नहीं है? यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की अस्मिता का प्रश्न है।

 

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