खबर लहरिया Blog ललितपुर : पानी की सुविधा और सरकार के झूठे वादें

ललितपुर : पानी की सुविधा और सरकार के झूठे वादें

ललितपुर जिले के गाँव के लोग पानी की उचित सुविधा ना होने की वजह अपना पूरा दिन मज़बूरन पानी भरने में गुज़ारते हैं।

जिला ललितपुर गांव पडवा के लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। ग्रामीण कहते हैं, जब चुनाव होता है तो प्रधान वोट के नाम सरकारी योजनाओं को उन तक पहुंचाने का वादा करते हैं। लेकिन उन्हें ना योजना का लाभ मिला और ना ही पानी की सुविधा।

एक किलोमीटर चलकर पानी लाना होता है। लाइट रहती है तो लोग बालाजी मंदिर वाली जगह से पानी भर लेते है। लाइट नहीं आती तो पानी के लिए लंबा सफ़र तय करना पड़ता है। अगर किसी के पास बोर या पानी का कुआं है तो वह उसके ज़रिये पानी भर लेते हैं। जिसके पास नहीं है उन्हें ज़्यादा दिक्कत होती है।

कई बार ग्रामीण पानी लाने के लिए हाइवे का रास्ता अपनाते हैं। बच्चे-महिलाएं भी पानी भरने के लिए जाते हैं। ऐसे में उनके लिए भीड़-भाड़ वाले हाइवे को पार करना मुश्किल होता है। कई बार रास्ता पार करने में दुर्घटना हो जाती है। पानी के लिए हर दिन ग्रामीण जोखिम उठा रहे हैं लेकिन फिर भी अधिकारियों को होश नहीं आ रहा है।

ग्रामीणों ने बताई अपनी समस्याएं

मुन्नी कहती हैं कि पूरे दिन में लगभग 20 लीटर की पानी की ज़रूरत होती है। मौसम चाहें गर्मी का हो या बरसात का, उन्हें तपती गर्मी और भारी बारिश में पानी भरने के लिए जाना ही पड़ता है।

परिवार से लेकर जानवरों और दैनिक कार्यों के लिए पानी की ज़रूरत है। शौच के लिए भी पानी की पूर्ति नहीं हो पाती और सरकार स्वच्छ भारत मिशन की बात करती है। जिला से लेकर ब्लॉक स्तर तक शिकायत कर ली लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ‘एक व्यक्ति का तो पूरा दिन पानी भरने में निकल जाता है। वह पानी भरने के अलावा पूरा दिन कुछ नहीं करता।’ ऐसे में लोग बीमार हो जाते हैं उन्हें बुखार आ जाता है। जिससे की उनकी परेशानी और भी ज़्यादा हो जाती है।

देवकुंवर के परिवार का भी पूरा दिन पानी भरने में निकल जाता है। दिनभर में वह पानी के लिए लगभग 15 चक्कर लगाते हैं। थकान भी होती है। वह कहते हैं कि इससे उनके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है क्योंकि वह पानी भरने के अलावा और कोई काम कर ही नहीं पाते।

बच्चों के स्कूल के लिए सुबह का नाश्ता भी समय से नहीं बन पाता क्योंकि वह सुबह से ही पानी भरने में लग जाते हैं। अगर लाइट रात को आती है तो लोगों को रात में ही पानी भरने जाना पड़ता है। कई बार जब लाइट दो-दो दिनों तक नहीं आती तो परेशानी और भी ज़्यादा बढ़ जाती है। लोगों को पानी के लिए जगह-जगह भटकना पड़ता है।

पुष्पेंद्र का आरोप है कि उनके यहां अभी तक पानी की समस्या के निपटारे के लिए कोई नहीं आया। वह कहते हैं कि वह लोग पानी के लिए 500 रुपये का एक टैंकर खरीदते हैं। सभी लोग परेशान है कि वह कहां जाए, किससे कहें? शिकायत करते-करते वह थक गए हैं।

उनका कहना है कि हर गांव में पानी की पाइपलाइन लगी हुई है जिससे लोगों को पानी भरने में आसानी होती है। लेकिन उनका गांव ही ऐसा है जहां पानी की सुविधा नहीं है। उन्हें दूर चलकर जाना होता है, सड़क पार करनी होती है तब जाकर पानी मिलता है। अगर किसी के यहां कोई शादी-विवाह का उत्सव तो पानी को लेकर और भी ज़्यादा चिल्लम-चिल्ली हो जाती है।

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क्या कहती हैं गांव की प्रधान?

गांव की प्रधान शिवेंद्र देवी से खबर लहरिया ने बात की। वह कहती हैं कि उनके गांव में पानी की समस्या कई सालों से हैं। जब चुनाव हुआ था तो उन्होंने गांव में कई जगह पानी की पाइपलाइन भी लगवाई थी।

वह आगे कहती हैं कि उनके अनुसार रोड की दूसरी तरफ पानी की ज़्यादा दिक्कत हैं इसलिए वह वहां भी पाइपलाइन डलवाने की सोच रहीं हैं। वह जल्द से जल्द समस्या का समाधान करेंगी।

सरकार की तरफ से नहीं मिली मदद – जल निगम अधिकारी

खबर लहरिया ने जब इस मामले में ललितपुर के जल निगम अधिकारी प्रताप मिश्रा से बात की तो उनका कहना था कि लगभग दो सालों से सरकार की तरफ से पानी की सुविधा के लिए मदद नहीं आ रही है। उनका कहना था कि वह गांव में जाकर हैंडपंप ही लगवा सकते हैं लेकिन उसके लिए भी सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं है।

वह आगे कहते हैं कि, ‘लोगों के लिए क्या ही करेंगे, जब ऊपर से कुछ आएगा तो गांव में ज़रूर लगवा देंगे।’ फिलहाल अभी जो दिक्कतें हैं उसका समाधान प्रधान कर सकते हैं।

एक तरफ प्रधान द्वारा कहा जाता है कि गांव में पानी की पाइपलाइन लगी है। अगर ऐसा है तो लोगों को कुओं से या सड़क पार करके, कई किलोमीटर की दूरी तय करके पानी भरकर क्यों लाना पड़ रहा है?

जल निगम के अधिकारी का यह कहना है कि पिछले दो सालों से सरकार ने पानी के लिए कुछ नहीं किया। इस बात ने यहां इस बात को प्रकाशित किया कि ग्रामीणों को महामारी के दौरान भी पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं थी और ना ही आज है। जहां सबसे ज़्यादा ज़ोर स्वच्छता पर था लेकिन बिना पानी ग्रामीण कोरोना से कैसे लड़ें? उनके पास कोरोना से लड़ने के लिए मूलभूत सुविधा भी नहीं थी। अधिकारी द्वारा यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेना कि सरकार ने कुछ नहीं किया सिर्फ ग्रामीणों की बढ़ती समस्याओं की तरफ इशारा करता है। अधिकारी ने कहीं भी यह तक नहीं कहा कि उन्होंने पानी से जुड़ी परेशानी को लेकर कुछ प्रयास किया या सरकार से बात की। वह बस चुप बैठे रहें। जब अधिकारी भी समस्याओं को नकारने लगे तो ग्रामीण मदद के लिए किसके पास जाएं?

इस खबर की रिपोर्टिंग राजकुमारी द्वारा की गयी है। 

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