मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर यानी हिजरी साल का पहला महीना है जो कि चाँद के हिसाब से चलता है। इस महीने की 10 तारीख, जिसे ‘आशूरा’ कहा जाता है। इस महीने में दुनियाभर के मुसलमान पैग़म्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के रूप में याद करते हैं। आज से क़रीब 1400 साल पहले 10 मुहर्रम सन् 61 हिजरी (10 अक्टूबर 680 CE) को इराक स्थित कर्बला में हुई जंग में इमाम हुसैन अस को उनके 72 साथियों के साथ बेदर्दी से शहीद कर दिया गया था। यह जंग बनी उमैय्या के दूसरे खलीफा यज़ीद बिन माविया और इमाम हुसैन के बीच हुई थी।
भारतीय उप महाद्वीप में मुहर्रम काफ़ी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। आशूरा की पूर्व संध्या पर मुसलमान अपने-अपने घरों में ताज़िया सजाते हैं। फिर अगले दिन जुलूस निकालकर ताज़िया को दफ़्न कर दिया जाता है।
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मुहर्रम में ताज़िया की मान्यता
मान्यता है कि यह ताज़िये कर्बला में स्थित इमाम हुसैन अस की मज़ार की प्रतिक हैं। ताज़िये के रूप में बांस की डंडियों पर रंग बिरंगे कागज़ों से एक मकबरे या मज़ार नुमा आकृति बनाई जाती है। जिसके सामने बैठकर इमाम हुसैन के अज़ादार उनका ग़म मनाते हैं और मर्सिया व नौहा पढ़ते हैं।
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