महिला मतदाताओं की संख्या और लगातार उनके बढ़ते वोट प्रतिशत को देखते हुए हर राजनीतिक दल की निगाह इस वोट बैंक पर है। जिसे देखते हुए राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणापत्रों में महिला कल्याण की नीतियों और वादों का ऐलान किया है।
उत्तर प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या और लगातार उनके बढ़ते वोट प्रतिशत को देखते हुए हर राजनीतिक दल की निगाह इस वोट बैंक पर है। महिलाओं के संदर्भ में हर दल अपनी रणनीति बनाता दिख रहा है। राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणापत्रों में महिला कल्याण की नीतियों और वादों का ऐलान कर रहे हैं। आइए, एक नज़र डालते हैं महिलाओं को लेकर राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणापत्र पर।
ये भी देखें – जाबाज़ महिला प्रत्याशी निर्मला भारती क्या बुंदेलखंड में लाएंगी बदलाव की लहर? | UP Polls 2022
महिला आरक्षण के मुद्दे पर बसपा का मज़बूत पक्ष
बहुजन समाज पार्टी की अपनी अलग कार्यशैली है। यही वजह है कि पार्टी चुनाव में किसी भी तरह का घोषणापत्र ज़ारी नहीं करती है। जहां दूसरी ओर चुनाव शुरू होने से पहले अन्य दल वादों की झड़ी लगाकर अपने घोषणापत्र पूरे समारोह में ज़ारी करते हैं वहीं, बसपा में ऐसी कोई परंपरा नहीं है। बहुजन समाज पार्टी का अपना एक मौखिक घोषणापत्र होता है। बसपा सुप्रीमो मायावती अपने चुनावी भाषणों में जिन मुद्दों का ज़िक्र करती हैं, वही पार्टी का घोषणापत्र बनता जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के अनुसार उनकी पार्टी कहने में कम और काम करने में ज्यादा विश्वास रखती है।
3. साथ ही, महिलाओं को सशक्त व आत्मनिर्भर बनाने में कांग्रेस की तरह भाजपा भी गंभीर नहीं है। लोकसभा व विधानसभाओं में उनके लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का मामला वर्षों से लम्बित पड़ा होना इसका जीता-जागता प्रमाण है तथा इनका यह आरक्षण जरूर लागू होना चाहिए, बीएसपी की यह माँग है।
— Mayawati (@Mayawati) December 22, 2021
बसपा अध्यक्ष अपने ट्विटर अकाउंट से महिलाओं के अधिकारों और उसको सशक्त बनाने की बात कह चुकी हैं। बीएसपी ने पूर्व सरकार में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक आत्मनिर्भरता के लिए किए गए प्रयास को सामने रखा। वह लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने के पक्ष में भी शुरू से रही हैं। कांग्रेस और बीजेपी पर वार करते हुए उनका कहना है कि इन पार्टियों का रवैया ज़्यादातर दिखावटी है। दूसरी ओर पूर्व चुनावों में महिला मतदान का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि महिलाओं की पहली पसंद मायावती की सरकार रही है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में जहां कहीं भी महिला मतदाताओं का अनुपात बढ़ा है वहां एनडीए का वोट शेयर गिरा और बसपा के शेयर में इज़ाफ़ा हुआ है। महिलाओं की बसपा की पहली पसंद का संभावित कारण, महिलाओं में बसपा नेतृत्व की पहचान है। महिला एक पार्टी की प्रमुख हैं यह बात महिलाओं में काफ़ी चर्चित है। दूसरी बात यह कि मायावती की सरकार के समय कानून व्यवस्था बहुत बेहतर थी।
ये भी देखें – गाँव की मायावती: निजी जीवन की कसौटियों को पार कर एक सफल नेता बनने का सफर
कांग्रेस का महिलाओं के लिए ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ अभियान
कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने जनाधार को मजबूत करने के लिए और महिला मतदाओं को लुभाने के लिए ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का कार्ड चलाया है। पार्टी का इस चुनावों में प्रियंका गांधी के नेतृत्व और इस नारे के साथ 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने का वादा किया है। महिला वोटरों के लिए भी कांग्रेस ने ‘शक्ति विधान महिला’ घोषणापत्र ज़ारी किया है।
पार्टी ने अपने घोषणापत्र में सत्ता में आने पर महिला मतदाताओं के लिए विशेष तौर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोज़गार से जुड़े वादे किये हैं। छात्राओं के लिए स्मार्टफोन, तीन मुफ़्त सिलेंडर, पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल होने वाले मुफ़्त सैनटरी उत्पाद, सरकारी महिला कर्मचारियों के बच्चों के लिए शिशुगृह व्यवस्था, बीस लाख नई सरकारी नौकरियों में 40 प्रतिशत आरक्षण का वादा किया है। इसके साथ कांग्रेस ने राज्य के प्रत्येक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को 10,000 रुपये मानदेय देने का भी वादा किया है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का महिला घोषणापत्र ज़ारी करते हुए कहा कि उनका यह कदम अन्य राजनीतिक दलों को भी इसी तरह के कदम उठाने के लिए प्रेरित करेगा।
ये भी देखें – चित्रकूट: “अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए नहीं छोडूंगा कोई रास्ता!” l जासूस या जर्नलिस्ट
बीजेपी के प्रचार में ‘महिला सुरक्षा’ का वादा
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी महिला मतदाताओं का महत्व अच्छे से समझती है। महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के मुद्दे को उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार खूब भुना रही है। चुनाव से पहले ही प्रचार में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ महिला सुरक्षा को लेकर अपनी सरकार की उपलब्धि गिनाते आ रहे हैं।
वहीं, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने पूर्व में अपने कार्यकाल में महिला के लिए किये गए काम को अपनी उपलब्धि बताया। अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल के दौरान यूपी की बालिकाओं, युवतियों और महिलाओं के लिए सपा की सरकार ने लैपटॉप, कन्याविद्या धन, और एम्बुलेंस प्रदान कर नारी सशक्तिकरण का सच्चा काम करने का संदेश सोशल मीडिया पर ज़ारी किया। पार्टी ‘बेटियों का इंकलाब होगा, बाईस में बदलाव होगा’ जैसा नारा देकर महिला मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर खींच रही है। पार्टी ने चुनाव की शुरुआत में महिला के लिए विधवा पेंशन, बीपीएल कार्ड धारक परिवार की महिला मुखिया को मासिक पेंशन जैसे वादे किए हैं।
उप्र की बालिकाओं, युवतियों और महिलाओं के लिए सपा की सरकार ने लैपटॉप, कन्याविद्या धन, 1090 और एम्बुलेंस प्रदान कर ‘नारी सशक्तीकरण’ का सच्चा काम किया था.
दिक़्क़त, क़िल्लत व ज़िल्लत ने महिलाओं को भाजपा के ख़िलाफ़ कर दिया है।
उप्र की नारी भाजपा पर पड़ेगी भारी pic.twitter.com/KOx6ptqYwr
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 21, 2021
साथ ही राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) अन्य राजनीतिक दलों से एक कदम आगे रहते हुए सबसे पहले अपना घोषणापत्र ज़ारी कर चुकी है जिसमें महिला मतदातों के लिए कई लुभावने वादे किए गए हैं। महिला सशक्तिकरण और सक्षम महिला की प्रतिज्ञा लेते हुए पार्टी ने राज्य के सभी विभागों और सभी स्तर के पदों की भर्ती में महिलाओं के लिए रोजगार में 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रमुख वादा किया है। लोकदल ने अपने ‘लोक संकल्प पत्र 2022’ के नाम से जारी किए गए घोषणापत्र में विधवा पेंशन को तीन गुणा (1500 रुपये प्रति माह), सरकारी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ रही किशोरियों को मुफ़्त सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने का प्रमुख वादा किया है।
सभी पार्टियों ने महिला वोट बैंक हासिल करने के लिए महिला प्रत्याशियों को टिकट तो दिया पर किसी भी जनसभा या सम्मलेन में उन्हें आगे से लीड करने का मौका नहीं दिया। जिन महिला प्रत्याशियों को खड़ा करके पार्टियां महिलाओं की सुरक्षा, उनके उत्थान और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की बात करती है वह चुनावी जनसभाओं में नहीं दिखती। बीते दिनों बसपा, भाजपा और सपा द्वारा कई चुनावी रैलियां की गयी पर कहीं भी उस विधानसभा क्षेत्र से खड़ी महिला प्रत्याशियों को इस दौरान नहीं देखा गया। गौर से विश्लेषण किया जाए तो पार्टियों की लिस्ट में सिर्फ कुछ ही महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है। फिर यही पार्टियां चुनावी मुद्दों और अपने घोषणापत्रों में यह कहती दिखती हैं कि उनके लिए महिलाओं की समस्या सबसे पहली है। महिलाओं को आगे लाना उनका सर्वप्रथम काम है। अब इसे वादों का ढकोसला न कहा जाए तो क्या कहा जाये? मानों महिलाओं को टिकट देकर ये जताया जा रहा हो कि पार्टियों ने बहुत बड़ा काम किया है।
यह लेख मूल रूप से फेमिनिज़म इन इंडिया पर प्रकाशित हुआ था जिसे पूजा राठी ने लिखा है।
ये भी देखें – क्या चुनावी मैदान में उतरेंगी नेहा सिंह राठौर? | UP Elections 2022