खबर लहरिया Blog गाँव की मायावती, मीरा भारती :  एक दमदार नेता, जिसके बारे में अब गाँव-गाँव में होती है चर्चा

गाँव की मायावती, मीरा भारती :  एक दमदार नेता, जिसके बारे में अब गाँव-गाँव में होती है चर्चा

“सफ़ेद पोशाक उस पर कोटी डाले दिखती है, आँख पर चश्मे, तगड़ी चाल में वो गाँव-गाँव फिरती है। गाँव की मायावती, मीरा भारती। 

वो कहते हैं न कि लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। कुछ ऐसा ही जीवन रहा है चित्रकूट ज़िले के खांच गाँव की रहने वाली मीरा भारती का। मीरा के जीवन का संघर्ष छोटी सी ही उम्र से शुरू हो गया था जब उन्हें शादी के बंधन में बाँध दिया गया था। लेकिन मीरा के अंदर बचपन से ही कुछ कर दिखाने की ललक थी। महज़ 15 साल की उम्र में पति और ससुराल जैसे भारी-भरकम शब्दों के बोझ को मीरा ने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।

उन्होंने अपने भविष्य की लकीरें भी खुद ही लिखीं और ससुराल वालों की प्रताड़ना को पीछे छोड़ उन्होंने वापस अपने घर आकर अपनी पढ़ाई पूरी करने की ठानी। मीरा के एक मामूली अल्पसंख्यक लड़की से आज जिला पंचायत सदस्य बनने के इस सफर को आइए और गहराई से जानते हैं।

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जब पढ़ाई के लिए नहीं थे पैसे, तो माँ ने ज़ेवर बेच कर पढ़ाया-

ससुराल से अपने घर लौटने के बाद, मीरा अब अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थीं, पढ़ाई करना चाहती थीं। लेकिन पैसों के अभाव के चलते उनका ये सपना अधूरा रहा जा रहा था। घर की आर्थिक स्थिति और अपने सपनों की उड़ान की कश्मकश के बीच मीरा ने पढ़ाई करने की बात अपनी माँ से बताई।

उस समय को याद करते हुए मीरा बताती हैं कि उनके घर में इतनी गरीबी थी कि पांचवी कक्षा में भी दाखिला लेने के लिए जब मीरा और उनकी माँ स्कूल पहुंचे, तो उन्हें वहां से यह बोलकर भगा दिया गया कि अगर फीस जमा नहीं करी तो दाखिला नहीं होगा। “मेरे मन में ख्याल आया कि मैं आत्महत्या कर लूँ! मैं एक ऐसे घर में क्यों पैदा हुई जहाँ घरवालों के पास मुझे पढ़ाने के लिए पैसे तक नहीं हैं”, स्कूल से घर लौटते समय नन्ही मीरा के मन में अपनी दुर्बलता सोचते हुए ऐसे ख्याल आ रहे थे।

लेकिन मीरा की माँ से अपनी बच्ची की ये हालत देखी नहीं गई और उन्होंने शादी में मिले अपने ज़ेवरों को बेचकर मीरा का नाम स्कूल में लिखवाया। और फिर क्या था, मीरा ने भी अपनी माँ का भरोसा टूटने नहीं दिया और स्कूली शिक्षा ख़तम करने के बाद स्नातक, स्नातकोत्तर और फिर  वकालत की पढ़ाई भी पूरी करी।

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अपनी काबिलियत से बनाई एक अलग पहचान-

बचपन से ही कुछ अलग करने की ललक को मीरा ने बड़े होकर भी बरक़रार रखा। उन्होंने सिर्फ पढ़-लिखकर ही गाँव में अपनी एक अलग पहचान नहीं बनाई है, बल्कि मीरा के पहनावे, उनकी चाल-ढाल के चर्चे भी दूर-दूर तक होते हैं। “सफ़ेद कपड़े से मुझे बहुत ज़्यादा लगाव है, एक अपनाइयत सी लगती है सफ़ेद रंग में”, मीरा बताती हैं।

“सफ़ेद पोशाक उस पर कोटी डाले दिखती है, आँख पर चश्मे, तगड़ी चाल में वो गाँव-गाँव फिरती है। 

है होनहार, थोड़ा अलग है अवतार, इसकी जुबान ही है इनका हथियार और अपनी बातों से दुशमनों के चढ़ा देती है बुखार।”

छोटी सी ही उम्र से राजनीति में दी बड़े-बड़े धुरंधरों को दी टक्कर-

कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ना मीरा के लिए मुश्किल तो था, लेकिन अपनी मेहनत और लगन से उन्हें राजनीति के क्षेत्र में भी काफी उन्नति मिली। 2010 में मीरा ने पार्टी की कार्यकर्ता बनकर अपना राजनीति का सफर शुरू किया और चित्रकूट में महिलाओं और दलितों को उनका हक़ दिलाने के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करना शुरू किया।

2019 में वो लोकसभा चुनाव भी लड़ीं और 2021 में उन्हें बसपा पार्टी से टिकट मिला जिसके बाद वो चित्रकूट की सबसे कम उम्र में से एक ज़िला परिषद सदस्य बनीं। 

मीरा ने हमेशा से ही डॉ भीम राव अम्बेडकर को अपना गुरु माना है। मीरा की मानें तो आज वो जिस मुकाम पर भी हैं उसका श्रेय बाबा साहब के विचारों, नीतियों को ही जाता है। 

मीरा कहती हैं, बाबा साहब ने दलितों और अल्पसंख्यकों को इस देश में एक नयी जगह दिलवाई है, जिसके लिए उन्हें कई कुर्बानियां भी देनी पड़ीं। अगर मुझे भी लोगों को उनके अधिकार दिलाने के कोई कुर्बानी देनी पड़ेगी, तो मैं उसके लिए भी तैयार हूँ।” 

 “किसी भी कौम का विकास उस कौम की महिलाओं के विकास से मापा जाता है” ~ डॉ. भीम राव अम्बेडकर

 मीरा बहुजन समाज पार्टी की चीफ सुप्रीमो कुमारी मायावती को भी अपना आदर्श मानती हैं, मीरा की मानें तो मायावती का बेबाक अंदाज़ और साहसी रूप आज भी विपक्षी दलों को खटकता है। 

“जिस तरह मायावती अपने नाम के आगे सुप्रीमो लिखती हैं, मेरा भी यही सपना है कि मैं भी भविष्य में अपने नाम के आगे सुप्रीमो लिखूं और चित्रकूट की बेटियों के लिए एक उदाहरण बन सकूं, कि गाँव की एक दलित लड़की क्या कुछ नहीं कर सकती”, मीरा ने कहा।

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जेल के अंदर से भी कैदियों की आवाज़ें प्रशासन तक पहुंचाई-

मीरा महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए सरकार के सामने भी दीवार बनकर खड़ी हो गयीं, जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। जब 2020 में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते देशभर में लॉकडाउन लगा तब प्रदेश के कई हिस्सों में महिलाओं के साथ हिंसा और शोषण के मामले भी सामने आए।

चित्रकूट में इस बढ़ती हिंसा का विरोध करते हुए मीरा भारती ने कुछ अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ आवाज़ उठाई। उसी समय मीरा ने किसानों को ओलावृष्टि के कारण हुए नुकसान और सरकार की तरफ से उन्हें किसी तरह का मुआवज़ा न मिलने की बात भी सामने रखी। मीडिया में मीरा द्वारा दिए ये बयान आग की तरह फ़ैल गए और कुछ विपक्षी नेताओं ने उनपर देशद्रोह का मुकदमा लगाकर मीरा को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया।

जेल के अंदर भी मीरा महिलाओं के साथ हो रही हिंसाओं के मामलों को उजागर करती रहीं। उत्पीड़न से लेकर भेदभाव तक के मुद्दे मीरा ने जेल के अंदर उजागर किए और जेल के अंदर होने वाली घटनाओं पर रौशनी डाली। ज़िला कारागार, चित्रकूट के अंदर मीरा द्वारा चलाए गए इस आंदोलन के चर्चे भी दूर-दूर तक हुए और परिणाम स्वरूप प्रशासन द्वारा कैदियों के लिए जेल के अंदर बेहतर इंतेज़ाम किए गए।

6 महीने बाद हाई कोर्ट से बेल मिलने और जेल से बाहर आने के बाद भी उन्हें सामाजिक अत्याचार झेल रहे लोगों की समस्याएं सामने रखने के लिए आज तक धमकियां मिलती रहती हैं, पर इन धमकियों का इस निडर और बहादुर महिला पर कोई असर नहीं पड़ता। उनका एकमात्र लक्ष्य दलित, अप्ल्संख्यक, महिलाओं को उस मुकाम तक पहुंचाना है, जहाँ आज देश के बाकी सामाजिक समूह खड़े हैं।

 जहाँ आज भी हमारे देश में सत्ता की कुर्सी पुरुषों के हाँथ में देना बेहतर समझा जाता है, वहीँ मीरा भारती जैसी कुछ जांबाज़ महिलाएं अकेले ही दिलेरी की नयी गाथाएं लिख रही हैं। अब वो समय बीत चुका है जब महिलाएं चुपचाप घर बैठकर उत्पीड़न झेलती रहें, जिस-जिस गाँव में मीरा जैसी साहसी लड़कियां मौजूद हैं, उन गावों में बदलाव की लहर साफ़ दिखाई दे रही है।

साल दर साल आ रहे इस परिवर्तन की क्रान्ति का हिस्सा नन्हीं-नन्हीं बच्चियों से लेकर किशोरियां भी बन रही हैं। भले ही इस क्रान्ति की आग अभी 1.4 बिलियन से ऊपर की आबादी वाले भारत देश में पूरी तरह से फ़ैल नहीं पाई है, लेकिन वो दौर अब दूर नहीं जब राजनीति की गद्दी महिलाएं संभालेंगी।

 फ़िलहाल उत्तर प्रदेश में हो रहे विधान सभा चुनाव में भी कई पार्टियों ने पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को टिकट दिया है और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” जैसे नारे लगाकर सुर्खियां भी बटोरी हैं। जिससे यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि महिलाएं अपना राजनैतिक पक्ष रखने में सफल हो रही हैं और उनके प्रतिवाद की गूँज दूर-दूर तक पहुँच रही है। 

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