कहते हैं कि, ‘नींद न देखे टूटी खाट और भूख न देखे जूठा भात’, जी हां! जब पेट की आग सताती है और कहीं से कोई मदद नहीं मिल पाती है, तो व्यक्ति सिर्फ खुद की तरफ ही देख सकता है। ऐसी ही संघर्षपूर्ण कहानी है ललिता शाहू की। ललिता शाहू के पति नहीं हैं। वह बच्चों को पालने के लिए रिक्शा चलाने का काम करती हैं।
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