खबर लहरिया Blog महिलाएं जब राजनीति में उतरती हैं तो वह राजनीति की परिभाषा बदल देती हैं, निर्मला भारती की तरह

महिलाएं जब राजनीति में उतरती हैं तो वह राजनीति की परिभाषा बदल देती हैं, निर्मला भारती की तरह

जब एक महिला, एक बेटी समाज से बाहर निकलती है तो वही समाज उसे रोकता है, उसे बर्बाद करना चाहता है जिस समाज को वह एक नए शिखर पर लेकर जाना चाहती है।

महिलाओं का राजनीति में उतरना इतना अखरता क्यों है? तुम साथ देने से कहीं इसलिए तो नहीं डरते कि तुम ढह जाओगे? यक़ीनन यही वजह होगी तुम्हारे भयभीत मन की कि शायद तुम यह कहकर डरा दो कि “राजनीति महिलाओं के बस की बात नहीं।”

बस में तुम्हारे तो यह भी नहीं कि तुम उसे रोक पाओ? रोक सकते हो क्या?

“जो गुनगुना सकता है लड़ाई को लेकर वो एक दिन ज्वाला बनकर फूट भी सकता है” – यह आवाज़ सुनकर तुम घबरा तो नहीं गये?

जब महिलाओं को लेकर राजनीति में चर्चा होने लगे तो समझ जाओ कि वो पहले ही राजनीति में उतर चुकी है, “बशर्ते उसका कोई साथ नहीं देता।” यह शब्द हैं निर्मला भारती के। निर्मला भारती चित्रकूट जिले के कर्वी-236 विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। वह पूर्व जिला पंचायत सदस्य भी रह चुकी हैं। कांग्रेस के नारे “लड़की हूँ लड़ सकती हूँ के इन शब्दों ने निर्मला को जज़्बा दिया और वह चुनावी अखाड़े में उतर आईं।

इस यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में कई पार्टियों ने महिलाओं को टिकट दिया क्यूंकि वह सशक्त हैं और अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ाने की हिम्मत रखती हैं।

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समाज के बदलाव में समाज ही आता है आड़े

“जब एक महिला, एक बेटी समाज से बाहर निकलती है तो वही समाज उसे रोकता है, उसे बर्बाद करना चाहता है जिस समाज को वह एक नए शिखर पर लेकर जाना चाहती है।” – निर्मला ने कहा

समाज जिसमें परिवार, बच्चे, पति व वह तमाम रिश्तें आते हैं जिन्हें पार करने की चुनौती महिलाओं के सामने हर उस पड़ाव में आती है जब भी वह आगे बढ़ना चाहती है। यूँ भी कहा जा सकता है कि समाज खुद अपने बदलाव व रूढ़िवादी विचारधाराओं के बीच खड़ा है जिसे ये महिलायें राजनीति में आकर तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।

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मैं आगे बढ़ूंगी, मुझे देखकर कई और लड़कियां आगे बढ़ेंगी

जब एक महिला राजनीति में उतरती है तो वह रिश्तों को पीछे नहीं छोड़ती बल्कि उन रिश्तों की ज़िम्मेदारियों के साथ आगे बढ़ती हैं बेशक़ इन ज़िम्मेदारियों ने उसे कितनी भी झुंझुलाहट क्यों न दी हो। निर्मला कहती हैं –

“जब एक महिला 4 बजे उठती है और खेत जाती है, एक बोझा चारा काटती है। उसे घर में रखती है। गाय-भैंस को चारा डालती है फिर चूल्हा-चौका करती है खाना बनाती है। अगर बच्चा स्कूल जाने लायक है तो उसे तैयार करती है। रूखा-सूखा उसके डब्बे में डालती है और स्कूल भेजती है फिर दोबारा वह घर के काम में लग जाती है।

जब एक औरत इतना कुछ कर सकती हैं तो हम लड़कियां क्या नहीं कर सकती। हम युवा क्या नहीं कर सकते। आसमान छू सकते हैं। एक लड़की बहुत कुछ कर सकती है बशर्ते हम अपनी शक्ति को पहचान नहीं पाते। अगर पहचान भी लेते हैं तो इस समय जो समाज की भयावह स्थिति बनी हुई है न ‘कुरूतियों’ की, इसी वजह से भी लड़कियां आगे नहीं बढ़ पाती।

लेकिन मैं हर चुनौती को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ूंगी। जो हमें माँ-बाप ने रास्ता दिया है आगे निकलने का, मैं उस रास्ते को बंद नहीं होने दूंगी।

मैं आगे बढ़ूंगी तो निश्चित तौर से, आज भले ही समाज हमें उपेक्षित दृष्टि से देखे, नहीं ये एक लड़की है इसे आगे नहीं निकलने देना चाहिए, घर में रहना चाहिए, समाज का काम नहीं करना चाहिए, पढ़ना चाहिए और एक सही समय पर शादी कर दो बस इतना ही समाज की सोच रहती है।

मैं आगे बढ़ूंगी तो मेरे मोहल्ले की लड़की सोचेगी कि अगर फला (लोकल भाषा में बोले जाने वाला शब्द यानी दूसरे की बहन) की बहन कर सकती है तो हम भी कर सकते है तो एक रुझान पैदा होगा। बस हमें एक कदम बढ़ाने की ज़रुरत है।”

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एलएलबी में की है पढ़ाई

निर्मला को एलएलबी करना था लेकिन चित्रकूट में एलएलबी (Bachelor of Legislative Law/ बैचलर ऑफ लेजिस्लेटिव लॉ) के लिए कोई कॉलेज नहीं था। फिर उन्होंने बांदा जिले से एलएलबी किया। वह चाहती हैं कि चित्रकूट में भी एलएलबी के कॉलेज हो ताकि बच्चे अपने जिले में रहते हुए पढ़ाई कर सकें।

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आदर्श ने दिखाया जीवन का सही रास्ता

हर किसी का एक आदर्श होता है जिसे देखते हुए वह आगे बढ़ता है और कई चीज़ें सीखता है। निर्मला भी अपने जीवन में कांशीराम, डॉ. भीम राव अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले को अपना आदर्श मानती हैं। कहती हैं, अगर सावित्रीबाई फुले नहीं होती तो लड़कियों को शिक्षा नहीं मिल पाती। बाबा साहेब अंबेडकर नहीं होते, वह संविधान नहीं लिखते तो आज हमें पढ़ने का अधिकार नहीं मिलता।

वर्तमान में वह अपने माता-पिता को अपना आदर्श मानती हैं। अगर उनके माँ-बाप साथ नहीं देते तो वह संविधान होने के बावजूद भी नहीं पढ़ पाती।

“मुझे अपने माँ-बाप पर गर्व है कि उन्होंने मुझे शिक्षा-दीक्षा देकर समाज की कड़ी में कड़ी बनने का मौका दिया।”

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परिवार को कोई टिकट न मिलने पर दरकिनार नहीं करता

यह देखा जाता है जब पार्टी में रहते हुए भी व्यक्ति को टिकट नहीं मिलती तो वह दल-बदल लेता है। पार्टी से टिकट न मिलने को लेकर निर्मला अलग सोच रखती हैं। कहती हैं,”कई नेता जब पार्टी में आते हैं तो कहते हैं कि हम अपने परिवार में आ गए। जब कोई अपने परिवार से मिलता है तो समय आने पर उसे छोड़ता नहीं है। परिवार को दरकिनार नहीं करता।

नेता है दल-बदलते हैं। उनका अपना कोई वजूद नहीं होता। अगर वजूद होता तो दल-बदलने वाली कोई बात नहीं होती। वह उसी पार्टी को मज़बूत करते जिस पार्टी में वो हैं।

यह सोच होनी चाहिए कि अगर हमसे बेहतर कोई कैंडिडेट है तो उसे सपोर्ट करो और चुनाव जितवाओ।”

एक महिला का राजनीति में उतरना व चुनौती देना, राजनीतिक परिभाषाओं व विचारों को अलग करता है। राजनीतिक पार्टी के अर्थ को बदल देता है।

अगर सही में बदलाव की लहर लानी है तो निर्मला भारती की यह बात कई और लड़कियों व महिलाओं को उस बदलाव का हिस्सा बनने में मदद करेगी। राजनीति को देखने का अलग नज़रिया देगी। बदलाव की शुरुआत खुद से होती है। जैसा की निर्मला ने कहा,

“पहला त्याग मेरा होगा, पहला बलिदान मेरा होगा तो आगे निश्चित तौर से लड़कियां आगे आकर के त्याग और बलिदान की परिभाषा को समझ कर के अपने अंदर भी यह सोच लाएंगी कि हमें भी समाज के लिए त्याग करना चाहिए।”

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