दोस्तों मैं फिर से हाजिर हूँ कुछ अटपटी-चटपटी, कुछ अनकही अनसुनी बातों के साथ नारीवादी चश्मे के साथ।
मेरी ये बात आपको थोड़ी बुरी तो लगी होगी लेकिन हमारे समाज में जो नियम हैं जितनी कीमत लड़की वाले दे सकते हैं उसी हिसाब से लड़का मिलेगा। नौकरी वाला, बिजनेस वाला, पैसा नहीं तो सस्ता मद्दा लड़का भी मिल जाएगा। ये तो लड़की वालों पर है कितनी कीमत का दमाद खरीद सकते हैं।
चलते हैं और जानते हैं आजकल किस रेट में दुल्हे बिक रहे हैं।
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सवाल लोगों से
– ये बताओ आजकल बाजार के हालचाल कैसे हैं मंहगाई के क्या हाल है ?
– पढ़ाई-लिखाई नौकरी में कभी खर्च होता होगा?
– बचपन से लेकर बड़े तक में पढ़ाई-लिखाई में कितना खर्च हो जाता है?
– लड़कियों में कम खर्च होता है या लड़को में?
– दमाद की कीमत कैसी चल रही है?
– किस हिसाब से कीमत तय होती है?
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बुजुर्गों से सवाल
– आप लोगों के समय शादियां कैसी होती थीं उस टाइम भी दहेज दिया जाता था?
– लड़की वालो ने कीमत दी लड़के वालो को तो लड़का किसका हुआ?
– ससुराल किसे जाना चाहिए?
टिप्पणी
सदियों से ये रिवाज चला आ रहा है लड़की वाले लड़के वालो को रूपये दे। दहेज देकर अपनी पली पलाई बेटी दे, दमाद ढूढने वाले मां बाप लड़के वालों से बाकायदा कीमत तय करते हैं। ऐसे सौदा करते हैं मानो उनकी औलाद नहीं कोई बजारू सामान हो। हमने इतना पढ़ाया है इतना खर्च किया है। इतनी कीमत लेंगे। गाड़ी और इतने लाख रूपये इतने तोला सोने की मांग है, देख लो दे पाओ तो जैसे वो लड़के की शादी नहीं कर रहें हो लड़का बेच रहे हो। इस हिसाब से दूल्हा की बोली जिसने कीमत दी। दूल्हा खरीद लिया फिर तो दूल्हे को जाना चाहिए ससुराल।
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