खबर लहरिया Blog जानें कौन थे जेपी नारायण जिसने 70 के दशक में पलट दी थी कांग्रेस की सत्ता, दिया था “संपूर्ण क्रांति” का नारा

जानें कौन थे जेपी नारायण जिसने 70 के दशक में पलट दी थी कांग्रेस की सत्ता, दिया था “संपूर्ण क्रांति” का नारा

जयप्रकाश नारायण को जेपी नारायण के नाम से भी लोगों में जाना जाता है। आज़ादी के बाद अगर भारतीय राजनीति में कोई सबसे बड़ा आंदोलन रहा है तो वह था,”जेपी आंदोलन” जो गैर-कांग्रेसवाद की स्थापना का कारण बना।

                                                                                                                  फोटो साभार – सोशल मीडिया

लोकनायक जयप्रकाश नारायण, एक ऐसा व्यक्तित्व जिसके नेतृत्व ने कांग्रेस की सत्ता को तितर-बितर कर दिया था। जिसकी आवाज़, जिसके भाषण से लोगों के अंदर ज्वाला जल उठती थी। यह 1970 का दशक था। जयप्रकाश नारायण एक ऐसे नेता थे जिन्होंने उस समय “संपूर्ण क्रांति” का नारा दिया। इसे नारे का इस्तेमाल उन्होंने सत्ता में बैठी इंदिरा गाँधी की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए किया था।

जयप्रकाश नारायण को जेपी नारायण के नाम से भी लोगों में जाना जाता है। आज़ादी के बाद अगर भारतीय राजनीति में कोई सबसे बड़ा आंदोलन रहा है तो वह था,”जेपी आंदोलन” जो गैर-कांग्रेसवाद की स्थापना का कारण बना।

“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”– रामधारी सिंह दिनकर की कविता की इन पंक्तियों को जेपी नारायण ने अपने नारों में शामिल किया था। यह वह दौर था जब भारत को ‘इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया’ भी कहा जाता था। उस समय जेपी आंदोलन की हवाओं ने इस कहावत को ही बदल दिया था।

ऐसा कहा जाता है कि 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने के दौरान देश में जो विपक्ष तैयार हुआ उसने भारतीय लोकतंत्र को जीवंतता प्रदान की थी और वह विपक्ष था जेपी नारायण का।

जेपी नारायण देश में राजनीति और सत्ता की तस्वीर बदलना चाहते थे जिसमें वह पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाए थे। आज उनकी जन्मतिथि के दिन लोगों द्वारा फिर उन्हें पलटकर देखा जा रहा है, उनके राजनीतिक विचारों पर चर्चा की जा रही है।

बता दें, जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्तूबर, 1903 में बिहार के तात्कालिक सारण जिले के सिताबदियारा में हुआ था। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा अमेरिका जाकर प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में ली थी।

जेपी नारायण के जन्मदिवस पर कई मंत्रियों ने किया ट्वीट

यूपी के सीएम योगी ने कहा, लोकनायक’ जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में हुए अभूतपूर्व आंदोलन ने तत्कालीन सरकार को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था…

गृह मंत्री अमित शाह लिखते हैं, “लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी की जयंती पर उनकी जन्मभूमि सिताब दियारा में विशाल जन समूह को संबोधित कर रहा हूँ…

इसके आलावा बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी एवं सम्पूर्ण क्रांति के अग्रदूत लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

 

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आज़ादी की लड़ाई से जुड़ा वाक्या

प्रभात खबर की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले जेपी आंदोलन ने केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था। जेपी नारायण की आज़ादी की कुछ कहानियों को आज भी लोगों द्वारा याद किया जाता है। एक वाक्या हज़ारीबाग का है संयुक्त बिहार का ही हिस्सा था। उस समय अंग्रेज़ों द्वारा उन्हें जेल में बंद कर दिया गया था लेकिन उन्हें चकमा देते हुए जेल की दीवार लांघ कर वह अपने दोस्तों के साथ कारागर से फरार हो गए थे।

बता दें, इस समय हजारीबाग जेल का नाम लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारागार है। बात 1942 की है। इस समय देश में भारत छोड़ो आंदोलन एक दम चरम पर सीमा था। जेपी नारायण अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हमेशा मुहीम छेड़ने लगे थे। इसके लिए उन्हें कई बार गिरफ्तार भी किया जा चुका था। पहले अंग्रेज़ों द्वारा उन्हें मुंबई की आर्थर जेल फिर दिल्ली की कैंप जेल में रखा गया। इसके बाद उन्हें हजारीबाग के जेल में बंद कर दिया गया।

जेल की दीवार 17 फ़ीट ऊँची थी। 56 धोतियों का इस्तेमाल करके वह अपने 5 दोस्तों के साथ जेल से भाग निकले थे। इसके बाद अंग्रजों ने जेल से फरार इन 6 क्रांतिकारियों को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का फरमान ज़ारी कर दिया था। वहीं पकड़ने वाले को 10 हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा भी की गयी थी। उस समय जेपी करीब 40 वर्ष के थे।

असफलताओं व भावों से पूर्ण जेपी की कविता

जेपी नारायण ने आगे चलकर जनता पार्टी का निर्माण किया था। जब इंदिरा गांधी से सत्ता छिन गयी तो जेपी नारायण द्वारा मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया था। जेपी का जो अपनी पार्टी, अपने देश और राजनीति को लेकर विचार थे, वह उसमें असफल हो गए थे, जिसकी पीड़ा उन्हें अंदर ही अंदर खा रही थी।

अपने अंदर के भावों, उदासी, विफलताओं व अपने अंतिम दिनों को उन्होंने अपनी कविता में पिरोया। उनके द्वारा लिखी गयी दो कविताएं काफी लोकप्रिय हुईं। जेपी की लिखी उन दो कविताओं में एक चिड़ा और एक चिड़ी की कहानी और दूसरी विफलता : शोध की मंज़िलें शामिल है। विफलता : शोध की मंज़िलें नामक कविता उन्होंने 9 अगस्त 1975, चंडीगढ़ में जेल के दौरान लिखी थी।

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विफलता : शोध की मंज़िलें शामिल

जीवन विफलताओं से भरा है,
सफलताएँ जब कभी आईं निकट,
दूर ठेला है उन्हें निज मार्ग से ।

तो क्या वह मूर्खता थी ?
नहीं ।

सफलता और विफलता की
परिभाषाएँ भिन्न हैं मेरी !

इतिहास से पूछो कि वर्षों पूर्व
बन नहीं सकता प्रधानमन्त्री क्या ?
किन्तु मुझ क्रान्ति-शोधक के लिए
कुछ अन्य ही पथ मान्य थे, उद्दिष्ट थे,
पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के,
पथ-संघर्ष के, सम्पूर्ण-क्रान्ति के ।

जग जिन्हें कहता विफलता
थीं शोध की वे मंज़िलें ।

मंजिलें वे अनगिनत हैं,
गन्तव्य भी अति दूर है,
रुकना नहीं मुझको कहीं
अवरुद्ध जितना मार्ग हो ।
निज कामना कुछ है नहीं
सब है समर्पित ईश को ।

तो, विफलताओं पर तुष्ट हूँ अपनी,
और यह विफल जीवन
शत–शत धन्य होगा,
यदि समानधर्मा प्रिय तरुणों का
कण्टकाकीर्ण मार्ग
यह कुछ सुगम बन जावे !

2. एक चिड़ा और एक चिड़ी की कहानी

एक था चिड़ा और एक थी चिड़ी
एक नीम के दरख़्त पर उनका था घोंसला
बड़ा गहरा प्रेम था दोनों में
दोनों साथ घोंसले से निकलते
साथ चारा चुगते,
या कभी-कभी चारे की कमी होने पर
अलग अलग भी उड़ जाते ।
और शाम को जब घोंसले में लौटते
तो तरह-तरह से एक-दूसरे को प्यार करते
फिर घोंसले में साथ सो जाते ।

एक दिन आया
शाम को चिड़ी लौट कर नहीं आई
चिड़ा बहुत व्याकुल हुआ ।
कभी अन्दर जा कर खोजे
कभी बैठ कर चारों ओर देखे,
कभी उड़के एक तरफ़, कभी दूसरी तरफ़
चक्कर काट के लौट आवे ।
अँधेरा बढ़ता जा रहा था,
निराश हो कर घोंसले में बैठ गया,
शरीर और मन दोनों से थक गया था ।

उस रात को चिड़े को नींद नहीं आई
उस दिन तो उसने चारा भी नहीं चुगा
और बराबर कुछ बोलता रहा,
जैसे चिड़ी को पुकार रहा हो ।
दिन-भर ऐसा ही बीता ।
घोंसला उसको सूना लगे,
इसलिए वहाँ ज्यादा देर रुक न सके
फिर अँधेरे ने उसे अन्दर रहने को मजबूर किया,
दूसरी भोर हुई ।
फिर चिड़ी की वैसी ही तलाश,
वैसे ही बार-बार पुकारना ।

एक बार जब घोंसले के द्वार पर जा बैठा था
तो एक नयी चिड़ी उसके पास आकर बैठ गई
और फुदकने लगी ।
चिड़े ने उसे चोंच से मार मार कर भगा दिया ।

फिर कुछ देर बाद चिड़ा उड़ गया
और उड़ता ही चला गया
उस शाम को चिड़ा लौट कर नहीं आया
वह घोंसला अब पूरा वीरान हो गया
और कुछ ही दिनों में उजड़ गया

कुछ तो हवा ने तय किया
कुछ दूसरी चिड़िया चोचों में
भर-भर के तिनके और पत्तियाँ
निकाल ले गईं ।

अब उस घोंसले का नामोनिशां भी मिट गया
और उस नीम के पेड़ पर
चिड़ा-चिड़ी के एक दूसरे जोड़े ने
एक नया घोंसला बना लिया ।

(9 सितम्बर 1975, ‘मेरी जेल डायरी’ से)

जेपी नारायण जैसे सामाजिक कार्यकर्ता को आखिर कोई कैसे भूल सकता है जिसने राजनीति को नई परिभाषा देने की कोशिश की। जिसने 70 के दशक में अपने नेतृत्व से कोंग्रेस की सत्ता को ही पलटकर रख दिया है। “सम्पूर्ण क्रान्ति” का वो नारा आज के परिदृश्य को भी आंकलित करने का काम करता है।

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