नमस्कार, मैं मीरा देवी, खबर लहरिया की प्रबन्ध सम्पादक, अपने शो राजनीति रस राय में आपका बहुत बहुत स्वागत करती हूं। दोस्तों राजनीति का खेल बहुत निराला है और उसमें भी अगर बात बिहार की राजनीति की करें तो कहानी जटिल जान पड़ती है। पिछले हफ्ते मैं भी बिहार में थी। मैंने वहां पर समझने की कोशिश की कि आखिरकार राजनीति को लेकर बिहारवासियों में किस तरह की चर्चाएं हैं।
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ऐसा लगा कि यहां विचारों की लड़ाई अधिक होती है। चाहे लोग हों या राजनेता। पटना से मुज़फ्फरपुर को जाने वाली ट्रेन से मैं सफर कर रही थी। मेरी सीट पर बैठे और लोग राजनीतिक बातें करते हुए खूब गुस्सा हो रहे थे एक दूसरे के ऊपर। कोई कहता पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का राज ठीक बता रहे थे तो कोई वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को। कोई कह रहा था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छा काम कर रहे हैं तो कोई नाराज भी। एक व्यक्ति आम पार्टी समथर्क था और दूसरे बीजेपी भक्त। खूब तू तू मैं मैं हुई तभी एक ग्रुप जो शायद परीक्षा देकर लौट रहे थे उन्होने असल मुद्दे की बात छेड़ दी। सबसे पहले बेरोजगार युवाओं पर बात की। महंगाई भुखमरी और स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करने लगे।
23 सितम्बर को गृहमंत्री अमित शाह पूर्णिया जिले पहुंच कर आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे थे और उसी दिन बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव आयुष्मान दिवस समारोह मना रहे थे। इस समारोह के दौरान स्वास्थ्य सुविधा सुधारने के दावे के साथ इस क्षेत्र में नौकरी देने की भी बात किए।
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असल में मेरे कहने और इतने सारे तर्क वितर्क करने का मकसद है कि मुद्दे सिर्फ राजनीति के लिए बनते हैं ताकि उनके बल पर वोट हासिल किया जा सके। चाहे वह गृहमंत्री द्वारा दूसरे नेताओं की बुराई करके वोटर का मन बदलना हो या उपमुख्यमंत्री द्वारा झूठे दावे किए जाने हो। जनता सब समझती है इसीलिए अब वोटर बहुत विचार कर रहा है कि राजनीतिक लोगों के साथ भी राजनीति कैसे की जाए। अगला सीएम या पीएम कौन होगा यह तो समय बताएगा लेकिन राजनीति की जो धज्जियां उड़ाई जा रही हैं उसका जिम्मेदार कौन होगा? चुनाव प्रक्रिया और नेताओं से उठता भरोसा इसका भी जिम्मेदार कौन होगा? योजनाओं का लाभ सही से लोगों को मिले ये जिम्मेदारी किसकी है?
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