खबर लहरिया Blog लॉकडाउन 2020 से साल 2021 मार्च तक का सफर

लॉकडाउन 2020 से साल 2021 मार्च तक का सफर

बीते एक साल का सफर, जो आज लोग याद भी करते हैं और याद नहीं भी करना चाहते। बस उसकी एक झलक है यहां।

साभार-खबर लहरिया

24 मार्च 2020 का दिन हर एक व्यक्ति को ज़रूर याद होगा। वो इसलिए क्यूंकि आज के दिन से अगर आप एक साल पीछे जाये तो 24 मार्च के दिन प्रधानमंत्री द्वारा पूरे भारत में आठ बजे लॉकडाउन की घोषणा की गयी थी। बीतें उस साल ने, इस साल के महीने को भी उन यादों से फिर से एक बार ताज़ा कर दिया है। जिसकी वजह से लॉकडाउन का ऐलान किया गया था। वह वजह आज भी वही है। जिसका नाम है कोरोना महामारी यानी कोविड-19।

सबसे पहले 24 मार्च से 14 अप्रैल तक 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की गयी थी। जैसे-जैसे महामारी लोगों में बढ़ती गयी। वैसे-वैसे लॉकडाउन की तारीख भी बढ़ती गयी। इस बीच हमें काफ़ी बदलाव भी देखने को मिले। किसी से उसका रोज़गार छिन गया तो किसी का रोज़गार घर तक आ गया। वो भी बिना किसी तय समय के। अरे! मतलब अब घर से काम करने पर ना तो ऑफिस का समय देखा जाता था। ना उसे खत्म करके घर जान का कोई झंझट था क्यूंकि सब तो घर से ही हो रहा था। ऐसे में तय सीमा तो हो नहीं सकती ना।

LOCKDOWN BUS

साभार- खबर लहरिया

किसी के घर में इस माहौल में रोज़ पकवान बन रहे थें। वहीं कुछ घर ऐसे भी थे जहां कई दिनों तक चूल्हा भी नहीं जला। ठंडे पड़े चूल्हे को देख-देख लोगों की आस भी ठंडी होती नज़र आ रही थी। हमने देखा की महानगरों से हज़ारो-लाखों की संख्या में मज़दूर अपने घर की ओर पलायन करने लगे। शहर से तो उनकी रोटी छिन चुकी थी। ऐसे में सिर्फ उनका गाँव ही उन्हें और उनके परिवार के भरन-पोषण की एक उम्मीद थी। सभी यातायात के साधन भी महामारी के दौरान बंद थे। मज़दूर क्या करते? बस दिल में इरादा था कि किसी तरह से भी अपने गांव पहुंचना है। फिर बस अपने परिवार के साथ वह लोग पैदल ही निकल पड़े। मिलों दूर बसे अपने गाँवों की तरफ।

उनके हाथों में कुछ नहीं था। भूखे-प्यासे वे लोग निकल तो पड़े। जिसमें कई मंज़िल को पहुंचे तो कई ऐसे भी थे जो पूरा रास्ता चल भी ना सके और उन्होंने अपना दम तोड़ दिया। जो अपने गाँवों की दहलीज़ पर पहुंचे। वहां से घर जाने के लिए भी उन्हें 15 दिन के क्वारंटाइन ( एकांत) में रहना पड़ा।

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सारी गलियां, मोहल्ले और सड़के जो लोगों और गाड़ियों की आवाज़ों से गूंजती रहती थी। सब सन्नाटे में सो रही थी। उत्तरप्रदेश का बांदा जिला जो की आवागमन वाला क्षेत्र है। वो भी शांत पड़ा हुआ था। रास्ते खाली थे। उनमे कदमों की कोई आहट नहीं थी। बस उन रास्तों को दो आँखे अपनी घर की खिड़कियों से निहार रही थीं। महामारी को देखते हुए, हर गली के कोने में पुलिस बल पहरा दे रही थी। पूरी महामारी के दौरान उनके कार्य ने लोगों को उनकी तरफ देखने का एक नया नजरिया दिया। जहां घर से बाहर आने पर भी खतरा था। ऐसे माहौल में देश की पुलिस आर्मी लोगों की सुरक्षा के लिए सड़कों पर निगरानी कर रही थी।

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डॉक्टर्स, सफाई कर्मी, नर्सेस सबकी भूमिका को इस दौरान काफी सरहाया गया। देश और दुनिया ने जाना की उनकी हमारे जीवन में क्या जगह है। आज जब ये सब चीज़ें याद करते हैं तो लगता है कि वो दिन फिर नहीं आने चाहिए। हाँ, उन दिनों में लोगों ने काफी कुछ चीज़ें सीखी। अपने परिवार के साथ समय बिताया। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों में जागरुक्ता देखने को मिली तो कहीं ये दिखा कि अकेलापन लोगों को किस तरह से खा रहा है। सब चीज़ों का अनुभव काफी मिला-जुला सा था।
इस समय रौनक तो नहीं कह सकते पर हां लोग साधारण जीवन की तरफ अपने कदम बढ़ा रहे हैं। देश भी अपनी आर्थिक स्थिति को मज़बूत करने में लगा हुआ है। लेकिन अब फिर से कोरोना के मामले देश के राज्यों में अपनी पकड़ बनाते जा रहे हैं। सबको डर है कि कहीं फिर से लॉकडाउन की स्थिति ना आए जाये। बहुत मुश्किल से सब कुछ लोगों ने सब कुछ नए तरह से चीज़ों को शुरू किया है। अब हममें से कोई भी फिर से उस दौर, उस समय का एहसास भी नहीं करना चाहता। कभी-कभी सोचने का मन करता है कि काश! सब सपना होता है। पर सब सच है और हमें इससे लड़ना ही होगा।