स्वस्थ्य रहना बहुत जरूरी है कहते है सेहत अच्छी है तो सब ठीक। पर हमारे देश में आज भी न जाने कितनी महिलाएं पीरियड के दौरान कपड़ा इस्तेमाल करती हैं। खासकर गांवों में आज भी महिलाएं मासिक धर्म को लेकर बिल्कुल भी सतर्क नहीं रहती और इसी वजह से पीरियड्स के दौरान वो सैनेटरी पैड की जगह कपड़े का इस्तेमाल करना उचित समझती हैं।
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ये बात सुनने में जितनी हल्की लग रही है, इसका परिणाम उतना ही ख़तरनाक है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार देश की 81 प्रतिशत से अधिक की महिला आबादी अभी भी सेनेटरी पैड की जगह सूती कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। महिलाएं इस कपड़े को लंबे समय तक बार- बार धोकर इस्तेमाल करती रहती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है।
महिलाओं की सेहत की अगर बात करें तो महिलाएं अपनी सेहत का ठीक से ध्यान नहीं रखती। अपने खाने का ध्यान नहीं रखती घर के हर इन्सान का ध्यान रखेगी खुद अपने लिए लापरवाही करती हैं। महिलाओं को पिरियड के समय कितना दर्द हो कमजोरी हो वो अपनी समस्या किसी से जल्दी नहीं बताती कभी शर्म करती हैं।
तो कभी जिम्मेदारी मे इतनी बीजी हो जाती हैं की खुद की कोई परवाह ही नहीं। अगर बात करें उनके महीने में होने वाले पीरियड की महिलाओं के स्वास्थ्य पर किसी तरह के इन्फेक्शन का शिकार न हो इस वजह से कई तरह की कम्पनियों ने अलग- अलग नाम से पैड बना कर मार्किट बेच रहे हैं। जिससे महिलाएं, लडकियां पुराने जमाने की तरह कपडा यूज करना छोडकर पैड का इस्तेमाल करे जिससे वो स्वास्थ्य रहे।
इसी को देखते हुए ग्रामीण राज्य आजीविका मिशन के तहत चित्रकूट के कर्वी ब्लाक के गांव खुटहा और बनकट मे पैड बनाने की मशीने लगाई। जिससे ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिले और महिलाएं पीरियड के समय कपड़ा छोडकर पैड का इस्तेमाल करना शूरू करे। क्या कहती हैं |गाइनोकोलॉजिस्ट? दिल्ली की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मधु गोयल के अनुसार बाज़ार में बिकने वाले सैनिटरी पैड्स पूरी तरह सुरक्षित नहीं होते हैं।
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इनमें जिस प्लास्टिक शीट का इस्तेमाल किया जाता है वो कार्सिनोजेनिक (कैंसरकारी) हो सकता है. ऐसे में इन पैड्स का इस्तेमाल ख़तरनाक हो सकता है। यह स्टोरी क्रिया के साथ मिलकर बनाई गई है।
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