20 सालों से चिल्ला खादर में रह रही सुनीता बताती हैं कि, “हम लोगों का पहले भी घर तोड़ा था। फिर पैसे लगाकर घर बनाया। बरसात का समय है,हम लोगों को बेघर कर दिया। ऐसे ही तिरपाल डालकर हम लोग सो रहे हैं, पानी-बुनी में। हम लोगों के पास पैसे भी नहीं है कि तुरंत बना लेंगे। दो दिन तो हम लोग खाना नहीं खाये। हम लोग गरीब हैं तभी तो झोपड़ी में रहते हैं। हम लोगों का घर-द्वार होता तो हम लोग भी अपने घर में अच्छे से रहते। हम लोगों के पास उतना क्षमता ही नहीं है। गरीब आदमी है कहां बना पाएंगे जो रह लेंगे बढ़िया से।”
बरसात के मौसम में डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण)ने दिल्ली के चिल्ला खादर, यमुना बाढ़ ग्रसित क्षेत्र में किसानी व मज़दूरी करके रह रहे लोगों के घर उजाड़ दिए। उन्हें बेघर कर दिया वो भी तब जब उन्हें छत की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। लोगों को आशंका है कि फिर से झुग्गियां तोड़ी जा सकती हैं।
लोग इस समय खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। बरसात से बचने के लिए डाली गई पन्नी भी उन्हें बेघरपन और पानी से बचा नहीं पाती। जब तेज़ हवा चलती है तो वह भी उड़ जाती। उनके हाथों में कुछ नहीं जिसे वे रोक पाए।
बुलडोज़र ने सबके घरों को मलवा कर एक-किनारे लगा दिया है। न खाने का सामान बचा और न ही बच्चों के स्कूल के कपड़े। कई लोग कुछ दिनों तक खाना तक नहीं बना पाए। उस दिन के बाद स्कूल ड्रेस न होने की वजह से कई बच्चे स्कूल तक नहीं गए। महिलाओं ने कहा, बाहर सोने की वजह से हमें शर्मिंदा होना पड़ता है।
पर ये सब कौन देख रहा है?
यह लोग जो यहां दशकों से बसे हुए है, जिनके पास अपनी जगह की हर एक वो सरकारी पहचान है जो उन्हें उस जगह का निवासी बताती है, उन्हें बिना पुनर्वास के, बिना पूर्व सूचना के कैसे बेघर कर दिया गया?
यहां के लोगों ने खबर लहरिया को बताया कि 5 जुलाई 2024 को डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) के कुछ लोग शाम के तकरीबन 4 या 5 बजे कुछ पुलिसकर्मियों के साथ आये और बुलडोज़र से उनके घरों को तोड़ दिया। न कुछ बताया, न कुछ कहा बस तोड़ दिया। घर से सामान निकालने के लिए भी समय नहीं दिया।
मीडिया रिपोर्ट्स में इस बारे में कहा गया कि डीडीए की यमुना रिवरफ्रंट डेवलपमेंट परियोजना ने इस क्षेत्र को परिवर्तन के लिए चिह्नित किया है जो 2017 में शरू की गई थी। यह भी बताया गया कि डीडीए ने कोर्ट में बताया है कि लोग यहां व्यवसायिक गतिविधियां चला रहे हैं जिसके तहत उनके घरों को तोड़ा गया है।
बता दें, चिल्ला खादर में हनुमान मंदिर के पास जितने भी परिवारों के घर तोड़े गए, उनमें अधिकतर लोग यमुना बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र में किराये पर ज़मीन लेकर खेती करते हैं या तो मज़दूरी। यहां बुलडोज़र ने जहां लगभग 10-12 लोगों के घरों को नष्ट कर दिया, वहीं कुछ घर इस विध्वंश से बच गए। लोगों का कहना था कि समय हो गया था इसलिए उन लोगों ने बचे हुए घर नहीं तोड़े वरना उनके घर भी टूट जाते।
“तीन-चार बार तोड़ चुके हैं झुग्गी”
बिहार से रोज़गार के लिए पलायन करके आईं 60 वर्षीय तारा देवी चिल्ला खादर में 40 सालों से रह रही हैं। उन्होंने बताया,
“नोटिस-वोटिस कुछ नहीं दिया और झुग्गी तोड़ दिया। कहा, जाओ यहां से। डीडीए वाला आया था और कहा कि जल्दी-जल्दी सामान निकालो और जाओ हटाओ यहां से जल्दी। टाइम कुछ नहीं दिया। 4 बजे आया और तोड़कर चला गया। 5-6 आदमी थे, एक जेसीबी लेकर शुक्रवार को आये थे। कहा, कहीं भी चले जाओ। हमारा आधार और राशन कार्ड सब बना है और यही घर का पता भी दे रखा है।
इस बार से तीन-चार बार हो गया तोड़ने। दो साल, तीन साल मानकर तोड़ ही देता है। कुछ नहीं बताते हैं। बस कहता है डीडीए की ज़मीन है, सरकार कहता है खाली कर दो।”
वह यहां अपने पति के साथ किसानी करती हैं और रहती हैं। इस समय उन्होंने अपने खेत में तोरी और मिर्ची उगा रखी है। खेत भी जमा पर ले रखा है जिसमें एक बीघा का वह 10 हज़ार रुपए देती हैं। वह कहती हैं, इसमें इतना मुनाफा तो नहीं होता है लेकिन दाल-रोटी खाने तक का हो जाता है।
“पन्नी भी बरसात से नहीं बचा पाती” – चिल्ला खादर निवासी
“अरे! अगर भगाना है तो सबको एक बारी में ही भगा दो न। क्यों दस झुग्गी तोड़ते हैं, दस झुग्गी छोड़ते हैं। सबको भगा दो एक ही बार में” – चिल्ला खादर में 25 सालों रह रहीं 50 वर्षीय रीता देवी ने कहा।
आगे कहा, “किसी का तोड़ा अचानक, किसी को बोला सामान निकालो। किसी को मौका मिला सामान निकालने का, किसी को मौका भी नहीं मिला। ऐसे आकर तोड़-फोड़ दिया। फटाफट सामान छींट दिया खेत में, पन्नी-वन्नी अपने आप खोल-खालके। उसमें रोज़ बारिश हो रही है, रोज़ भीग रहा है, कपड़े-लत्ता, बच्चे सब भीग रहे हैं। बहुत परेशानी हो रही है। मन तो दुःखी होता है कि चले जाएंगे लेकिन अचानक जाएंगे कहां पर।”
कहती हैं, “अभी पन्नी डालकर रहते हैं। कितना बचाएंगे, हवा उठ जाएगा तो सारा पन्नी उड़ा देगा। पन्नी में जान कहां है। वोट लेने के लिए जो आते हैं मदद के लिए कोई नहीं आता। हम लोगों को नोटिस-वोटिस नहीं पता। रात में आकर कहीं चिपका दिया होगा।”
रीता देवी का 7 लोगों का परिवार है। बच्चों के साथ वह खेत में दिन-भर काम करती हैं। खेत में मिर्ची और भिंडी उगा रखी है। बताती हैं, वही तोड़ते हैं और बेचते हैं, पेट भरने के लिए।
डीडीए के झुग्गी तोड़ने के बाद बच्चे नहीं गए स्कूल
मज़दूरी का काम करने वाली 42 वर्षीय सुलेखा देवी बताती हैं,”बच्चे का सामान भी इधर-उधर हो गया है, स्कूल भी नहीं जा पाता है। चिल्ला स्कूल में जाता है। बगल में ही था नर्सरी एनजीओ की तरफ से, वो भी तोड़ दिया। कॉपी-किताब भी सारा इधर-उधर हो गया। ड्रेस भी नहीं मिल रहा है, कैसे जाएगा बच्चा पढ़ने के लिए। मेरे सामने एक बार और तोड़ा था।”
अन्य महिला सोनी ने बताया, “ घुसने भी तो नहीं दे रहा था न। वो खाने-पीने वाला सामान, थरिया,लोटा-बर्तन जितना था, ओढ़ने-बिछाने वाला, पलंग सारा चीज़, हमारा तो बिलकुल ही नहीं निकला। सारा बर्बाद हो गया। बच्चे का कपड़ा, जूता-जुराब, बैग जितना भी था, सारा अंदर ही रहा। 5 तारीख को तोड़ा था। आज तक मेरा बच्चा स्कूल नहीं गया है।
स्कूल वालों को तो पता है, लेकिन सरकारी स्कूल है, वो थोड़ी न देखेगा कि कौन बच्चा आ रहा है, नहीं आ रहा। दिक्कत तो हमारे ऊपर रहेगा न।”
सिर्फ कुछ ही बच्चे हैं जो बस्ती से स्कूल जा पा रहे हैं, जिनके स्कूल के कपड़े घर/ मलवे के ढेर से निकल पाए हैं।
डीपीसीसी के अध्यक्ष व अदालत
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (डीपीसीसी) के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने भी लगभग 200 घरों को तोड़े जाने की आलोचना की। इसके साथ ही उन्होंने केजरीवाल और मोदी सरकार पर भी गरीबों के कल्याण को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “ये परिवार यहां 40 सालों से यमुना ग्रसित क्षेत्र में रह रहे हैं और खेती कर रहे हैं। इनके पास अपने निवास को साबित करने वाले सभी दस्तावेज़ भी है।”
वहीं डीपीसीसी के पूर्व अध्यक्ष अनिल चौधरी ने भी अदालत के आदेशों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए डीडीए की कार्रवाई की निंदा की। उन्होंने कहा, “डीडीए ने चिल्ला खादर में लगभग 200 घरों को ध्वस्त कर दिया, जिससे सैकड़ों गरीब लोगों के पास रहने के लिए कोई वैकल्पिक जगह नहीं है। वे सुबह-सुबह बुलडोजर लेकर आए और अदालत में गलत बयानी की कि निवासी व्यावसायिक गतिविधियां चला रहे थे।”
आगे कहा, “ओखला बैराज से चिल्ला खादर तक, लगभग 1,500 परिवार इन ज़मीनों पर खेती करती है। डीडीए की कार्यवाहियों ने न केवल इन परिवारों को विस्थापित किया है बल्कि उनकी फसलें भी नष्ट कर दीं।”
दिल्ली में हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क ने कहा, “आज (5 जुलाई) दिल्ली के चिल्ला खादर में बड़े पैमाने पर विध्वंस अभियान में कम आय वाले परिवारों के 1,000 से अधिक घर नष्ट हो गए। बिना किसी पुनर्वास के एक दिन के नोटिस पर परिवारों को बेघर कर दिया गया। आने वाले दिनों में और भी मकानों के ध्वस्त होने की आशंका है।”
आगे कहा, “अजीब बात यह है कि जबकि आदेश में कहा गया था कि बेदखल किए गए परिवारों को बेघरों के लिए आश्रयों में रखा जाना चाहिए, वहीं पास के एक आश्रय को भी ध्वस्त कर दिया गया।”
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2 जुलाई 2024 को दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार, “सभी मौजूदा मामले यमुना बाढ़ के विभिन्न क्षेत्रों पर मौजूद झुग्गियों/अस्थायी संरचनाओं के विध्वंस के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (“डीडीए”) की कार्यवाही से संबंधित हैं। याचिकाकर्ताओं ने अन्य बातों के साथ-साथ डीडीए को संबंधित अस्थायी संरचनाओं को तोड़ने से रोकने, संबंधित क्षेत्रों का सर्वेक्षण करने और याचिकाकर्ताओं का पुनर्वास करने का आग्रह किया है।”
इसमें लिखा था कि डीडीए अपना तोड़फोड़ जारी रख सकता है। जोकि यह दिखाता है कि डीडीए आगे भी लोगों के घर तोड़ने के लिए स्वतंत्र है, जहां भी ऐसी कार्यवाही (यानी जहाँ अभी घर नहीं तोड़े गए हैं) पहले से ही नहीं की गई है।
फैसले में आगे कहा गया, “हालांकि, उक्त क्षेत्र के निवासियों को सीमित अवधि के लिए DUSIB (दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड, दिल्ली में बेघरों को संबोधित करने वाली एक एजेंसी) द्वारा बनाए गए आश्रयों में आवास दिया जाएगा जब तब ये लोग अपने रहने के लिए कोई और इंतज़ाम नहीं कर लेते।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार,दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के उपाध्यक्ष को यमुना के किनारे, “सभी अतिक्रमण और अवैध निर्माण” को हटाने का निर्देश दिया है।
यमुना बाढ़ ग्रसित क्षेत्र में रहने वाले परिवार आर्थिक रूप से गरीब हैं और रोज़गार के लिए किसानी पर ही निर्भर करते हैं जिससे उनकी जीविका चलती है व बच्चों की पढ़ाई हो पाती है। यहां भी हमने देखा कि लोगों ने खेती के लिए ज़मीन किराये पर ले रखी है जिससे उन्हें ज़्यादा मुनाफा तो नहीं होता पर गुज़ारा हो जाता है।
दिल्ली के आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey of Delhi) रिपोर्ट की बात की जाए तो यह कृषि पर शहरीकरण के दबाव को दर्शाता है, जिसमें खेती का क्षेत्र लगातार घट रहा है। जैसे-जैसे गांवों की संख्या कम होती जा रही है और शहरी क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है, किसान खुद को तेजी से हाशिये पर पा रहे हैं। यहां अधिकतर किसान बिहार से पलायन होकर आये हैं। गांव में इनकी अपनी कोई ज़मीन नहीं है और न ही रोज़गार है। रोज़गार की वजह से ये लोग पलायन होकर यहां रह रहे हैं और खेती करते हैं।
2021-22 की दिल्ली के आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey of Delhi (2021-22) की रिपोर्ट बताती है,“तेजी से शहरीकरण, व्यापार और उद्योग की अन्य आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि की वजह से दिल्ली में कृषि गतिविधि में लगातार गिरावट आ रही है। ग्रामीण गांवों की संख्या भी कम हो रही है। यह संख्या 1981 में 214 से घटकर 2011 की जनगणना में 112 हो गई है।”
इसके अलावा चिल्ला खादर में रह रहे लोगों के अनुसार इससे पहले 2019 में भी व एक-दो बार और लोगों के घर तोड़े गए थे।
20 सालों से चिल्ला खादर में रह रही 42 वर्षीय सुनीता बताती हैं कि, “हम लोगों का पहले भी घर तोड़ा था। फिर पैसे लगाकर घर बनाया। अब इस बार ऐसा तोड़ दिया है कि बिल्कुल खराब कर दिया है। हमारे बच्चे वो सोलर लगा हुआ उसके नीचे पढ़ते थे। आया जेसीबी वाला, वो भी धक्का मारकर लाइट गिरा दिया।
“बरसात का समय है,हम लोगों को बेघर कर दिया। ऐसे ही तिरपाल डालकर हम लोग सो रहे हैं, पानी-बुनी में। हम लोगों के पास पैसे भी नहीं है कि तुरंत बना लेंगे। दो दिन तो हम लोग खाना नहीं खाये।
हम लोग गरीब हैं तभी तो झोपड़ी में रहते हैं। हम लोगों का घर-द्वार होता तो हम लोग भी अपने घर में अच्छे से रहते। हम लोगों के पास उतना क्षमता ही नहीं है। गरीब आदमी है कहां बना पाएंगे जो रह लेंगे बढ़िया से।”
इस समय चिल्ला खादर में रह रहे लोगों की सबसे बढ़ी चिंता बरसात से अपने परिवार को सुरक्षित रखना व बचे हुए सामान को बचाना है। सरकार की तरफ से उन्हें कोई उम्मीद नहीं दी गई है कि उनकी मदद की जायेगी। उनके सामने सवाल यह है कि मेहनत-मज़दूरी और खेती करके घर चलाये या दोबारा से घर बनाये जोकि दोनों ही कर पाना उनके लिए हर रोज़ एक चुनौती है।
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